इस आर्टिकल में हम गौतम बुद्ध का जीवन परिचय (Gautam Buddha Ka Jivan Parichay) पढेंगे, तो चलिए विस्तार से पढ़ते हैं Gautam Buddha Biography in Hindi – बहुत ही सरल भाषा में लिखा गया है जो परीक्षा की दृष्टि से बहुत ही उपयोगी है।
बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध थे| इन्हें एशिया का ज्योति पुज्ज कहा जाता हैं।
गौतम बुद्ध का जीवन परिचय | Gautam Buddha Biography in Hindi
नाम | गौतम बुद्ध |
अन्य नाम | गौतम बुद्ध, महात्मा बुद्ध |
जन्म | 563 ई० पू०, शाक्य क्षत्रिय कुल में वैशाख कृष्ण पूर्णिमा |
जन्म – स्थान | लुंबिनी, कपिलवस्तु |
बचपन का नाम | सिद्धार्थ |
मृत्यु | 483 ई०पू० |
मृत्यु – स्थान | कुशीनगर |
पिता का नाम | शुद्धोधन |
माता का नाम | महामाया |
पत्नी का नाम | यशोधरा |
पुत्र का नाम | राहुल |
गौतम बुद्ध का जीवन परिचय (Gautam Buddha Biography in Hindi) | महात्मा बुद्ध की जीवनी इन हिंदी PDF
प्रस्तवना
महात्मा बुद्ध (Mahatma Buddha) बौद्ध धर्म के प्रवर्तक थे। महात्मा बुद्ध बहुत महान, अच्छे तथा सच्चे व्यक्तित्व वाले व्यक्ति थे। इनका नाम इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। ये अपनी समस्त जनता को प्रसन्न देखना चाहते थे। ये बहुत ही नम्र स्वभाव के प्राणी थे। इन्होंने तपस्या करके अनेक प्रकार की दिव्य शक्तियां और ज्ञान की प्राप्ति की तथा संपूर्ण भारत में भ्रमण करते हुए अपने ज्ञान का प्रचार प्रसार किया तथा और भी लोगों को अंधकार भरे जीवन से उभारा इनके जैसे महान व्यक्तित्व वाला व्यक्ति अभी तक दुनिया में नहीं जन्मा। ये सभी ब्राह्मणों में श्रेष्ठ माने जाते हैं।
महात्मा बुद्ध का जन्म
महात्मा बुद्ध का जन्म 563 ई० पू०, शाक्य क्षत्रिय कुल में वैशाख कृष्ण पूर्णिमा को हुआ था।
जन्म – स्थान
महात्मा बुद्ध का जन्म कपिलवस्तु के लुंबिनी नामक ग्राम में हुआ था।
महात्मा बुद्ध के पिता का नाम
इनके पिता का नाम शुद्धोधन था जो शाक्य गण के मुखिया थे।
माता का नाम
इनके माता का नाम महामाया था जो कोलियवंशीय थी।
महात्मा बुद्ध के बचपन का नाम
महात्मा बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था।
पत्नी का नाम
इनके पत्नी का नाम यशोधरा था जो शाक्य कुल की कन्या थी। 16 वर्ष की अवस्था में महात्मा बुद्ध का विवाह हो गया था। इनकी पत्नी का अन्य नाम – बिम्बा, गोपा, भदकच्छना भी था।
पुत्र का नाम
महात्मा बुद्ध के पुत्र का नाम राहुल था
महात्मा बुद्ध का प्रारंभिक जीवन
महात्मा बुद्ध के प्रारंभिक जीवन में अनेक कठिनाई आई महात्मा बुद्ध के जन्म के कुछ दिन बाद इनकी माता महामाया का देहांत हो गया। इनका पालन-पोषण माता विमाता महा प्रजापति गौतमी ने किया। सांसारिक समस्याओं से व्यथित होकर सिद्धार्थ ने 29 वर्ष की अवस्था में गृह त्याग दिया। इस त्याग को बौद्ध ग्रंथों में महाभिनिष्क्रमण कहा गया। गृह त्याग के उपरांत सर्वप्रथम वे वैशाली के नजदीक अलारकलाम के आश्रम में आये और वहां से उरुवेला (बोधगया) के लिए प्रस्थान किए। अलारकलाम सांख्य दर्शन का आचार्य था। तथा अपनी साधना शक्ति के लिए जाना जाता था और यहां सिद्धार्थ को कौण्डिन्य आदि 5 साधक मिले।
महात्मा बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति
बिना अन्न जल ग्रहण किए हुए 6 वर्ष की कठिन तपस्या के बाद 35 वर्ष की आयु में वैशाख पूर्णिमा की रात बोधगया (बिहार) में एक पीपल के वृक्ष के नीचे सिद्धार्थ को ज्ञान प्राप्त हुआ। ज्ञान प्राप्ति के बाद इन्हें बुद्ध के रूप में जाना जाने लगा। बुद्ध का एक अन्य नाम तथागत भी मिलता है। तथागत का अर्थ है – सत्य है ज्ञान जिसका, महात्मा बुद्ध का शाक्यमुनि के रूप में भी वर्णन मिलता है।
महात्मा बुद्ध के शिष्य
गौतम बुद्ध (Gautam Buddha) को जब बोधगया (बिहार) में ज्ञान प्राप्ति हुआ। तब वहाँ दो बनजारे आए – तपुस्स तथा मल्लिक नामक बुद्ध ने इन सौदागरों (बनजारा) को सर्वप्रथम अपना शिष्य बनाया और उपदेश दिया था।
महात्मा बुद्ध द्वारा सारनाथ में दिया गया उपदेश तथा काशी और उरुवेला के शिष्य
महात्मा बुद्ध (Mahatma Buddha) उरुवेला (बोधगया) से सारनाथ (ऋषिपन्तनम्) या मृगदाव आये यहां पर उन्होंने पांच ब्राम्हण सन्यासियों को अपना प्रथम उपदेश दिया, जिसे बौद्ध ग्रंथ में धर्म चक्र परिवर्तन के नाम से जाना जाता है। सारनाथ में ही बुद्ध ने 5 सन्यासियों के साथ बौद्ध संघ की स्थापना की। सारनाथ से चलकर बौद्ध काशी गए जहां पर यस नामक धनी व्यापारी को अपना शिष्य बनाए। काशी के बाद उरुवेला गए वहां तीन भाई मुख्य कश्यप, नदी कश्यप तथा गया कश्यप को अपना शिष्य बनाया।
महात्मा बुद्ध का सम्राट बिम्बिसार के महल में स्वागत
उरुवेला के बाद बुद्ध राजगृह पहुंचे जहां सम्राट बिम्बिसार ने उनका स्वागत किया तथा वेलुवन दान में दिया / राजगृह में काशी के दो ब्राम्हण, सारिपुत्र और महामौद्गलायन उनके शिष्य बने। भ्रमण करते हुए बुद्ध कपिलवस्तु पहुंचे यहीं पर उनकी मौसी महाप्रजापति गौतमी ने प्रवज्जा ग्रहण करने की इच्छा व्यक्त की लेकिन बुद्ध ने इंकार कर दिया। परंतु इनकी मौसी के पुत्र नंद ने महात्मा बुद्ध से दीक्षा लेकर उनके शिष्य बन गये। और वैशाली चले गये। बाद में इनकी मौसी गौतमी वैशाली में पहुंच, उनके शिष्य आनंद के द्वारा प्रार्थना करने पर संघ में महाप्रजापति गौतमी के रूप में प्रथम नारी का प्रवेश हुआ।
महात्मा बुद्ध के शिष्य एवं शिष्याएँ
वैशाली में ही लिच्छिवियो ने उनके निवास के लिए महावन में प्रसिद्ध कुटाग्रशाला का निर्माण करवाया। वैशाली की प्रसिद्धि नगरबधु आम्रपाली उनकी शिष्या बनी तथा भिक्षु संघ के विकास के लिए आम्रवाटिका प्रदान की। वैशाली से बुद्ध भागो की राजधानी सुगसुभारगिरि गए। यहां पर उन्होंने अपना आठवां वर्षाकाल व्यतीत किया तथा बोधिकुमार को अपना शिष्य बनायाय। यहाँ के बाद वे वत्सराज्य उदयन की राजधानी कौशाम्बी गए। जहां पर अपना नवाॅ वर्षाकाल बिताया। यहीं पर बौद्ध भिक्षु पिण्डोला के प्रभाव से वत्सराज उदयन बौद्ध बना उसने भिक्षु संघ को घोषितराम बिहार प्रदान किया। इनकी नजदीकी शिष्यों में आनन्द, उपालि, सारिपुत्र, मौद्गल्यायन, देवदत्त था। जिसमें बुद्ध के सबसे निकट आनन्द थे।
महात्मा बुद्ध के द्वारा अनेक राज्यों में दिये गये उपदेश
महात्मा बुद्ध (Mahatma Buddha) ने अपने उपदेश मगध, कोशल, वैशाली, कौशाम्बी एवं अनेक राज्यों में दिए बुद्ध अपने जीवन में सबसे अधिक उपदेश कोशल देश की राजधानी श्रावस्ती में दिए। इनके मुख्य बौद्ध अनुयायी शासकों में बिम्बसार, प्रसेनजित तथा उदयन थे।
महात्मा बुद्ध की मृतु एवं मृत्यु- स्थान
महात्मा बुद्ध की मृत्यु 483 ई०पू० में 80 वर्ष की अवस्था में कुशीनगर (कुशीनारा) में हुआ। जिसे बौद्ध ग्रंथ में महापरिनिर्वाण कहा गया हैं। तत्कालीन समय में कुशीनगर मल्लो के नियंत्रण में था मृत्यु के बाद बुध के शरीर के अवशेष को 8 भागों में बांटकर उस पर आठ स्टापो का निर्माण कराया गया। महापरीनिवार्ण के अनुसार बुद्ध के शरीर धातु के दावेदार के नाम थे –
- पावा तथा कुशीनारा के मल्ल
- कपिलवस्तु के शाक्य
- वैशाली के लिच्छिवि
- अलकप्प के बुली
- रामगाम के कोलिय
- पिप्पलिवनके मोरिय
- वेठद्वीप के ब्राह्मण
- मगधराज के अजातशत्रु
महात्मा बुद्ध के चार आर्य सत्य
महात्मा बुद्ध के चार आर्य सत्य निम्न है –
- दुःख
- दुःख समुदाय
- दुःख निरोध
- दुःख निरोधगामिनी प्रतिपदा
इन सांसारिक दु:खों से मुक्त हेतु बुद्ध अष्टांगिक मार्ग की बात कहे थे
साधन है-
- सम्यक् दृष्टि
- सम्यक् संकल्प
- सम्यक् वाणी
- सम्यक् कर्मान्त
- सम्यक् आजीव
- सम्यक् व्यायाम
- सम्यक् स्मृति
- सम्यक् समाधि
बुद्ध के अनुसार इन अष्टांगिक मार्गों का पालन करने वाले मनुष्य की भव तृष्णा नष्ट हो जाती है और उसे निर्वाण प्राप्त हो जाता है।
संसार में व्याप्त हर – प्रकार के दु:ख को सामूहिक नाम हैं – जरामरण |
जरामरण का कारण है –
- जाति
- भव
- उपादान
- तृष्णा
- वेदना
- स्पर्श
- षडायतन
- नामरूप
- विज्ञान
- संस्कार
- अविद्या
यह अविद्या ही जरामरण मूलभूत कारण हैं। गौतम बुद्ध (Gautam Buddha) द्वारा विवेचित इस कारण कार्य श्रृंखला में बारह कड़ियाँ हैं इसलिए इसे द्वादश निदान चक्र कहा जाता हैं। इसे प्रतीत्यसमुत्षाद्चक्र, दुःख चक्र, जरामरण चक्र, संसार चक्र और भव चक्र भी कहा जाता हैं।
बौद्ध धर्म की बौद्ध संगीतियां
क्रम | वर्ष | स्थान | अध्यक्ष | शासन |
प्रथम | 483 ई०पू० | राजगृह | महाकस्सप | अजातशत्रु |
द्वितीय | 383 ई०पू० | वैशाली | साबकमीर | कालाशोक |
तृतीय | 250 ई०पू० | पाटलिपुत्र | मोगलीपुत्त तिस्स | अशोक |
चतुर्थ | 98 ई० | कुण्डलवन | वस्नुमित्र | कनिष्क |
बौद्ध धर्म की शाखाएँ
बौद्ध धर्म दो शाखाओं में विभाजित हैं –
- हीनयान
- महायान
महात्मा बुद्ध के त्रिपिटक
नाम | स्वरूप | विषय |
सुत्तपिटक | पिटकों में बृहतम | बुद्ध के उपदेशों का संवादों का संकलन |
विनयपिटक | पिटकों में लघुतम | बौद्ध संघ के आचार – विचार व नियम निषेध का संकलन |
अभीधम्मपिटक | पिटकों में मध्यम | बुद्ध के अध्यात्मिक व दार्शनिक विचारों का संकलन |
बुद्ध के जीवन की घटनाएँ एवं उनके प्रतीक
घटना | प्रतीक |
गर्भ | हाथी |
जन्म | कमल |
निर्वाण | पदचिन्ह |
प्रथम प्रवचन | चक्र |
ज्ञान प्राप्ति | बोधिवृक्ष |
यौवन | साँड़ |
समृद्धि | शेर |
मृत्यु | स्तूप |
गृह त्याग | घोड़ा |
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