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भाषा व्यवहार क्या हैं? स्पष्ट कीजिए

By ATUL

भाषा – व्यवहार प्रयोग का विषय है। यह व्यक्तिगत होने के कारण वक्ता तक ही सीमित होता है, प्रत्येक व्यक्ति अपनी उच्चारण क्षमता, मानसिकता, परिस्थिति, शिक्षा के अनुरूप ही अपनी भाषा को व्यवहार में लाता है। यहस्थूल और यथार्थ होता है।

एवं स्वनिमों (वाच्य – श्रव्य ध्वनियों) या लेखिमों (लिखित रूप में लिपि संकेतों) के सांचे में सीमित होता है। कोई वक्ता ज्यादा ज्ञान ग्रहण करने के लिए जितना समय पुस्तकालय समाज विद्यालय विभिन्न भाषा और साहित्य के संस्थानों में व्यतीत करता है उसकी भाषिक क्षमता में उतनी अधिक वृद्धि होती है। साथ ही वह जितना ज्यादा भाषिक क्षमता और योग्यता से संपन्न होता है। उतना ही उसके भाषा – व्यवहार में चमक आती है। वह निरंतर साधना के बल पर एक दक्ष और वाक्पटु वक्ता बन जाता है।

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