आज के इस पोस्ट में हम वीर रस के बारे में पढेंगे | इससे पहले हमने अलंकार, प्रत्यय के बारे में पढ़ चुके हैं। तो चलिए जानते हैं – वीर रस की परिभाषा उदाहरण सहित लिखिए (Veer Ras Ki Paribhasha Udaharan Sahit).
वीर रस की परिभाषा उदाहरण सहित लिखिए | Veer Ras Ki Paribhasha Udaharan Sahit
रस का नाम | वीर रस |
स्थायी भाव | उत्साह |
आलम्बन विभाव | अत्याचारी शत्रु |
उद्दीपन विभाव | शत्रु का पराक्रम, अहंकार, रणवाद्य, यश की इच्छा आदि |
अनुभाव | रोमांच, गर्वपूर्ण उक्ति, प्रहार करना आदि |
संचारी भाव | उग्रता, आवेश, गर्व, चपलता, धृति, हर्ष, उत्सुकता, आदि |
वीर रस की परिभाषा | Veer Ras Ki Paribhasha
युध्द अथवा किसी कठिन कार्य को करने के लिए हृदय में जो उत्साह ज्रागत होता है उसे वीर रस कहते है |
वीर रस के उपकरण
- वीर रस स्थायी भाव – उत्साह |
- वीर रस आलम्बन विभाव – अत्याचारी शत्रु |
- वीर रस उद्दीपन विभाव – शत्रु का पराक्रम, अहंकार, रणवाद्य, याचक का आर्त्तनाद, यश की इच्छा आदि |
- वीर रस अनुभाव – रोमांच, गर्वपूर्ण उक्ति, प्रहार करना, कम्प, धर्मानुकूल आचरण आदि |
- वीर रस संचारी भाव – उग्रता, आवेश, गर्व, चपलता, धृति, मति, स्मृति, हर्ष, उत्सुकता, असूया आदि |
वीर रस का उदहारण — Veer Ras Ki Udaharan
उदाहरण -1
वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो |
सामने पहाड़ हो, सिंह की दहाड़ हो ||
तुम निडर डटे रहो, मार्ग में रुको नहीं |
तुम कभी रुको नहीं, तुम कभी झुको नहीं ||
उदाहरण -2
मैं सत्य कहता हूँ सखे
सुकुमार मत जानो मुझे |
यमराज से भी युद्ध में
प्रस्तुत सदा मानो मुझे |
है और की बात क्या,
गर्व करता है नहीं,
मामा तथा निज तात से
समर में डरता नहीं ||
उदाहरण -3
साजि चतुरंग सैन अंग मैं उमंग धारि,
सरजा सिवाजी जंग जीनत चलत है |
भूषन भनत नाद विहद नगारन के,
नदी नद मद गैबरन के रलत है ||
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