अविकारी कृदन्त की परिभाषा दीजिए

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अविकारी कृदन्त को अपरिवर्तनीय कृदन्त भी कहते हैं। इसके तीन भेद होते हैं, जो इस प्रकार हैं –

(1) पूर्वकालिक कृदन्त:- पूर्वकालिक कृदन्त के भीतर हम उस विषय का अध्ययन करते हैं जिसमें कथन के क्षणों में कार्य हो चुका होता है।

जैसे – वह स्नान करके मंदिर आया

(2) अपूर्ण क्रिया बोधक कृदन्त:- अपूर्ण क्रिया बोधक कृदन्त में क्रिया की पूर्णता का बोध होता है।

जैसे- देश को आजादी मिले बहुत वर्ष हो गये।

(3) तात्कालिक क्रिया:- तात्कालिक क्रिया में किसी कार्य के तत्काल होने और बचे हुए कार्य के प्रभाव को प्रकट किया जाता है।

जैसे- माँ के आते ही बालक प्रसन्न हो गया।

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