मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय | Maithili Sharan Gupt Biography in Hindi

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मैथिलीशरण गुप्त –  गुप्त जी भारतीय संस्कृति के व्याख्याता, राष्ट्रीयता के उन्नायक तथा स्वस्थ परम्पराओं के प्रबल पोषक कवि है। गुप्त जी भारतीय संस्कृत के प्रतिनिधि कवि है। गुप्त जी को दो बार राज्य-सभा का सदस्य बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। गुप्त जी सच्चे अर्थों में राष्ट्र के महत्तम मूल्यों के प्रतीक और आधुनिक भारत के सच्चे राष्ट्रकवि थे। ये द्विवेदी युग के सबसे अधिक लोगप्रिय कवि माने जाते हैं। चलिए अब हम जानते हैं कि मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय कैसे लिखें।

विषय-सूची

मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय (संक्षिप्त परिचय) – Maithili Sharan Gupt Biography in Hindi

नाममैथिलीशरण गुप्त
जन्म 3 अगस्त, सन् 1886 ई०
जन्म – स्थानउत्तर प्रदेश में झाँसी जिले के चिरगाँव
मृत्यु12 दिसम्बर, 1964 ई०
पिता का नामसेठ रामचरन गुप्त
माता का नामकाशीबाई
गुरुआचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी
पेशानाटककार, लेखक, कवि
भाषाब्रजभाषा
पदराष्ट्रकवि, सांसद (राज्यसभा)
पुरस्कार एवं सम्मानपद्मभूषण, हिन्दुस्तानी अकादमी पुरस्कार, मंगला प्रसाद पारितोषिक, साहित्य वाचस्पति, डी.लिट्. की उपाधि।
प्रमुख रचनाएंसाकेत, रंग में भंग, मातृभूमि, भारत-भारती, जयद्रथ वध, विकट भाटी, प्लासी का युद्ध, गुरुकुली, किसान, पंचवटी, निर्झारो, यशोधरा, मानुष्यता, किरानो का खेल, द्वापर, अनघ।
मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय, Maithili Sharan Gupt Biography in Hindi

मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय – Maithili Sharan Gupt Biography in Hindi

प्रस्तावनाः –

मैथिलीशरण गुप्त एक युगपुरुष के रूप में हिन्दी अवतरित हुए। इनका कृत्तित्व बहुत विशाल और बहुआयामी है, जिससे इन्होंने अनेक साहित्यिक क्षेत्रों को अलंकृत किया। काव्य-रचना की ओर बाल्यावस्था से ही गुप्त जी का विशेष लगाव था। गुप्त जी बड़े ही विनम्र, हँसमुख और सरल स्वभाव के व्यक्ति थे।

गुप्त जी के पिता स्वयं एक अच्छे कवि थे। पिता के काव्यानुरागी स्वभाव का गुप्त जी के जीवन पर प्रभाव पड़ा और बाल्याकाल में ही उन्होंने एक कविता रच डाली। पिता ने प्रशन्न होकर उन्हें महान कवि बनने का आशीर्वाद दिया, जो आगे चलकर फलीभूत हुआ । श्री मैथिलीशरण गुप्त जी का जीवन अत्यन्त सरल था । आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी के सम्पर्क में आने के कारण गुप्त जी को अपने प्रतिभा के अनुरूप क्षेत्र प्राप्त हुआ और उनकी काव्य-चेतना का विस्तार हुआ। गुप्त जी अपनी मातृभूमि की सेवा करना अपनी परम कर्त्तव्य मानते थे। इस दृष्टि से हिन्दी के प्रमुख कवियों में गुप्त जी का एक विशिष्ट और महत्वपूर्ण स्थान है।

जन्म

श्री मैथिलीशरण गुप्त जी का जन्म 3 अगस्त, सन् 1886 ई. में हुआ था ।

जन्म-स्थान

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी का जन्म उत्तर प्रदेश में झाँसी जिले के चिरगाँव नामक स्थान पर हुआ था ।

माता-पिता

श्री मैथिलीशरण गुप्त के पिता का नाम सेठ रामचरन गुप्त था । सेठ रामचरन गुप्त जी स्वयं एक अच्छे कवि थे। इनकी माता का नाम काशीबाई था ।

गुरु

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी के गुरु का नाम आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी था । आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी से इन्हें बहुत प्रेरणा मिली। इसलिए ये द्विवेदी जी को अपना गुरु मानते थे ।

शिक्षा

मैथिलीशरण गुप्त जी की शिक्षा-दीक्षा घर पर ही सम्पन्न हुई। घर के साहित्यिक वातावरण के कारण बचपन से ही इनमें काव्य के प्रति अभिरुचि जाग्रत हुई। गुप्त जी की प्रारम्भिक शिक्षा गाँव में ही हुई। आगे पढ़ने के लिए वे झाँसी गये, परन्तु वहाँ मन न लगने के कारण घर लौट आये और घर पर ही रहकर स्वाध्याय करने लगे स्वाध्ययन से ही इन्होंने अनेक विषयों जैसे— अंग्रेजी, संस्कृत और हिन्दी आदि का ज्ञान प्राप्त किया। गुप्त जी की शिक्षा का कोई अन्त नहीं था ।

मैथिलीशरण गुप्त की मृत्यु

12 दिसम्बर, 1964 ई. को माँ भारती का यह महान साधक पंचतत्व में विलीन हो गया ।

मैथिलीशरण गुप्त का साहित्यिक परिचय

गुप्त जी भारतीय संस्कृति के प्रतिनिधि कवि थे। इसलिए इन्होंने भारत के गौरवशाली अतीत का बड़ा दिव्य ज्ञान किया था। गुप्त जी प्रमुख रूप से प्रबंध-काव्य की रचना में सिद्धहस्त थे। खड़ीबोली के स्वरूप का निर्धारण करने एवं उसके विकास में गुप्तजी ने अपना अमूल्य योगदान दिया है । आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी जी के सम्पर्क में आने के पश्चात् उनकी प्रेरणा से काव्य-रचना करके इन्होंने हिन्दी-काव्य की धारा को समृद्धि प्रदान किया।

इनकी कविता में राष्ट्रभक्ति एवं राष्ट्रप्रेम का स्वर प्रमुख रूप से मुखरित हुआ है। इसी कारण हिन्दी-साहित्य के तत्कालीन विद्वानोंने इन्हें राष्ट्रकवि की उपाधि से विभूषित किया । गुप्त जी ने प्राचीन भारतीय संस्कृति एवं राष्ट्रीय भाव की अपने काव्य में प्रस्तुति कर इन्होंने युगधर्म का निर्वाह किया और अतीत के आदर्श को वर्तमान की प्रेरणा के रूप में प्रस्तुत किया ।

मैथिलीशरण गुप्त जी को प्राप्त सम्मान

गुप्त जी को उनके काव्य की सर्वोत्कृष्टता पर सम्मानित करते हुए आगरा विश्वविद्यालय साहित्य-वाचस्पति की मानद्-उपाधि से विभूषित किया। गुप्त जी को हिन्दी साहित्य-सम्मेलन ने इनकी रचना ‘साकेत’ पर ‘मंगलाप्रसाद पारितोषिक पुरस्कार’ प्रदान किया। सन् 1945 ई. में भारत सरकार द्वारा गुप्त जी को ‘पद्म भूषण’ पुरस्कार से अलंकृत किया गया। गुप्त जी को दो बार राज्य-सभा के सदस्य होने का सम्मान भी प्राप्त हुआ ।

द्विवेदी-युग के सर्वश्रेष्ठ कवि के रूप में श्री मैथिलीशरण गुप्त

गुप्त जी द्विवेदी-युग के देदीप्यमान नक्षत्र है । यद्यपि गुप्तजी के पौढ़ काव्यों की रचना 1920 ई. के उपरान्त हुई है और उनकी काव्य रचना का आरम्भ 1900 ई. के आस-पास हुआ, परन्तु उनके काव्य जिन प्रवृत्तियों का विकास हुआ है, उनका जन्म द्विवेदी-काल में ही हुआ।

मैथिलीशरण गुप्त जी अपनी काव्य-रचना के आरम्भ के कुछ समय बाद लगभग 1903 ई. में आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी जी के सम्पर्क में आ गये थे तथा गुप्त जी द्विवेदी-युग के सबसे बड़े और प्रतिनिधि कवि हैं। विषय, रीति और परिणाम- सभी दृष्टियों से वे इस काल के सबसे बड़े कवि सिद्ध होते हैं। द्विवेदी युग के श्रेष्ठ रचनाकारों में कविवर मैथिलीशरण गुप्तजी को विशिष्ट स्थान प्राप्त है। इस प्रकार गुप्त जी द्विवेदी युग के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं।

मैथिलीशरण गुप्त को राष्ट्रीय कवि क्यों कहा जाता है?

राष्ट्र की आत्मा को वाणी देने के कारण मैथिलीशरण गुप्त जी को राष्ट्रकवि कहा जाता है। हिन्दी काव्य को श्रृंगार रस की दलदल से निकालकर उसमें राष्ट्रीय भावनाओं की पुनीत गंगा को बहाने का श्रेय गुप्त जी को ही है। इस प्रकार गुप्त जी को राष्ट्रकवि होने का भी गौरव प्राप्त हुआ था।

मैथिलीशरण गुप्त को राष्ट्रीय कवि किसने कहा

महात्मा गाँधी ने इनकी राष्ट्रीयता की भावना से ओत-प्रोत रचनाओं के आधार पर ही इन्हें राष्ट्रकवि की उपाधि से विभूषित किया था ।

एक सच्चे युग-प्रतिनिधि कवि के रूप में गुप्त जी का परिचय

श्री मैथिलीशरण गुप्त के काव्य की कतिपय विशेषताएँ उन्हें समन्वयकारी युग-प्रतिनिधि और राष्ट्रीय कवि सिद्ध करती है। गुप्त जी राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत, आर्य संस्कृति के प्रति निष्ठावान् गाँधीवाद के समर्थक और युग-धर्म के संयोजक थे। साहित्य समाज का दर्पण है। देश की सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनितिक, आर्थिक, धार्मिक सभी परिस्थितियाँ उसमें साफ-साफ दिखाई पड़ती हैं।

जिस समय की सामाजिक स्थिति जैसी होती है उसी के अनुरूप उस समय का साहित्य रचा जाता है। गुप्त जी का साहित्य उच्च कोटि का साहित्य है। उन्होंने युगानुकूल साहित्य का सृजन किया है। गुप्त जी एक मर्यावादी कवि थे। प्राचीन बारतीय सामाजिक परम्पराओँ तथा नितिपरक मर्यादाओं में उनकी दृढ़ आस्था है। मर्यादावादी होते हुए भी गुप्त जी पुरुषार्थ में विश्वास करने वाले चिन्तक है।

परम्परागत मर्यादाओं का ग्रहण भी वे युगीन परिवेश के अनुकूल ही करना चाहते थे। यही कारण है कि उनके काव्य प्राचीन कथानकों पर आधारित होते हुए भी नवीन दृष्टिकोणों एवं युगानुरूप सन्देशों से युक्त हैं। इस प्रकार गुप्त जी एक सच्चे युग-प्रतिनिधि कवि के रूप में भी जाने जाते हैं।

मैथिलीशरण गुप्त की भाषा

मैथिली शरण गुप्त जी खड़ीबोली के प्रतिनिधि कवि हैं। खड़ीबोली को साहित्यिक रूप प्रदान करने में गुप्त जी का जितना बड़ा योगदान है, उतना किसी अन्य कवि का नहीं है। भाषा पर इनका पूर्ण आधिकार था। गम्भीर विषय को भी सुन्दर और सरल शब्दों में प्रस्तुत करने में ये सिद्ध हस्त थे। इनकी भाषा में माधुर्य भावों में तीव्रता और शब्दों का सौन्दर्य देखते ही बनता है। गुप्त जी का साहित्य वास्तव में भाषा, भाव, लोक-कल्याण, जनता को जगाने एवं भारतीय संस्कृति के चित्रण की दृष्टि से उच्च कोटि का है।

शैली

गुप्त जी की शैली में प्रसाद, माधुर्य तथा ओज तीनों गुण हैं। गुप्त जी के काव्य में शैली के तीन रूप मिलते हैं—

  1. प्रबंध शैली
  2. रूपक शैली
  3. गीति शैली।

तीनों शैलियों पर द्विवेदी युग का विशेष प्रभाव परिलक्षित होता है। इनकी शैली में गेयता, सहज प्रवाहमयता, सरसता और संगीतात्मकता की अजस्त्र धारा प्रवाहित होती दिखाई पड़ती है।

मैथिलीशरण गुप्त की रचनाएँ

गुप्त जी की रचना-सम्पदा विशाल है। गुप्त जी की रचनाएँ उद्देश्य परक हैं। उनकी कविताओँ में राष्ट्रीयतावादी एवं मानवतावादी विचारों की अभिव्यक्ति का उद्देश्य किसी-न-किसी सन्देश से अवगत कराता है। ऐसे स्थल उनके काव्य में भरे पड़े हैं जिनमें देशवासियों को कोई न कोई सीख दी गयी है। गुप्त जी की समस्त रचनाएँ दो प्रकार की हैं—

1. अनूदित

2. मौलिक

  • अनूदित रचनाएँ— ‘वीरांगना‘, ‘मेघनाद-वध’, ‘वृत्त-संहार’, ‘स्वप्नवासदत्ता’, ‘प्लासी का युद्ध’, ‘विरहिणी’, ‘ब्रजांगना’ आदि इनकी अनूदित रचनाएँ हैं।
  • मौलिक रचनाएँ— ‘साकेत’, ‘भारत-भारती’, ‘यशोदरा’, ‘द्वापर’, ‘जयभारत’, ‘विष्णुप्रिया’ आदि आपकी मौलिक रचनाएँ हैं।
  • साकेतः- यह उत्कृष्ट महाकाव्य है, श्रीरामचरितमानस के पश्चात् हिन्दी में राम काव्य का दूसरा स्तम्भ यही महाकाव्य है।
  • भारत-भारतीः- इसमें देश के प्रति गर्व और गौरव की भावनाओं पर आधारित कविताएँ हैं। इसी रचना के कारण गुप्त जी राष्ट्रकवि के रूप में विख्यात् हैं।
  • यशोधराः- इसमें बुद्ध की पत्नी यशोधरा के चरित्र को उजागर किया गया है।
  • द्वापर, जयभारत, विष्णुप्रियाः- इसमें हिन्दू संस्कृति के प्रमुख पात्रों का चरित्र का पुनरावलोकन कर कवि ने अपनी पुनर्निर्माण कला को उत्कृष्ट रूप में प्रदर्शित किया है।

गुप्त जी की अन्य प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं—

‘रंग में भंग’, ‘जयद्रथ-वध’, ‘किसान’, ‘पंचवटी’, ‘हिन्दू-सैरिन्धी’, ‘सिद्धराज’, ‘नहुष’, ‘हिडिम्बा’, ‘त्रिपथमा’, ‘काबा और कर्बला’, ‘गुरुकुल’, ‘वैतालिक’, ‘मंगलघट’, ‘अजित’ आदि।
‘अनघ’, ‘तिलोत्तमा’, ‘चन्द्रहास’ नामक तीन छोटे-छोटे पद्यबन्ध रूपक भी गुप्त जी ने लिखे हैं। इस प्रकार गुप्त जी का साहित्य विशाल और विषय-क्षेत्र बहुत विस्तृत है।

मैथिलीशरण गुप्त का साहित्य में स्थान

गुप्त जी सच्चे अर्थों में राष्ट्र के महनीय मूल्यों के प्रतीक और आधुनिक भारत के सच्चे राष्ट्रकवि थे। राष्ट्र की आत्मा को वाणी देने के कारण ये राष्ट्रकवि कहलाये और आधुनिक हिन्दी काव्य की धारा के साथ विकास-पथ पर चलते हुए युग-प्रतिनिधि कवि स्वीकार किये गये। इन्होंने राष्ट्र को जगाया और उसकी चेतना को वाणी दी।

गुप्त जी के अन्दर राष्ट्रीय चेतना की भावना तथा देशभक्ति बचपन से ही विद्यमान थी। गुप्त जी के हृदय में नारी के प्रति सदैव श्रद्धाभाव रहा है। इन्होंने नारी-जाति को समाज का अत्यन्त महत्वपूर्ण अंग माना है। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त भारतीय संस्कृति के यशस्वी उद्गाता एवं परम बैष्णव होते हुए भी विश्व-बंधुत्व की भावना से ओत-प्रोत थे। गुप्त जी की राष्ट्रीयता ऐसी थी, जिसमें देश की दुर्दशा पर आँसू नहीं बहाया जाता। हाथ-पर-हाथ रखकर अकर्मण्य बनकर नहीं बैठा जाता है। उनकी चेतना अतीतोन्मुखी है, किन्तु यह स्वर्णिम अतीत, भविष्य को उज्ज्वल अलोक प्रदान करता है।

FAQs – मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय से संबंधित प्रश्न और उत्तर

मैथिलीशरण गुप्त का जन्म कब और कहाँ हुआ था ?

मैथिलीशरण गुप्त जी का जन्म सन् 1886 ई. में झाँसी के चिरगाँव नामक स्थान पर हुआ था|

मैथिलीशरण गुप्त जी का स्वर्गवास कब हुआ था?

12 दिसम्बर, 1964 ई ०

मैथिलीशरण गुप्त को पदमभूषण सम्मान कब दिया गया?

सन् 1945 ई०

मैथिली शरण गुप्त की माता का क्या नाम था?

काशीबाई

राष्ट्रकवि के रूप में कौन प्रसिद्ध है?

मैथिलीशरण गुप्त

गुप्तजी की प्रमुख रचनाओं का नामोल्लेख कीजिए?

साकेत, जयद्रथ वध, पंचवटी, द्वापर, यशोधरा, भारत – भारती, चंद्रहास आदि|

‘दोनों ओर प्रेम पलताहैं’ पंक्तियाँ किसकी हैं?

मैथिलीशरण गुप्त जी की

मैथिलीशरण गुप्त जी की प्रथम काव्य – रचना कौन – सी हैं?

मैथिलीशरण गुप्त जी की प्रथम काव्य – रचना ‘रंग में भंग’ हैं

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