सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ का जीवन परिचय

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सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ — सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ को आधुनिक काव्य जगत में ‘प्रयोगवाद‘के प्रवर्तक एवं प्रसारक के रूप में जाना जाता है | ‘अज्ञेय’ प्रयोगवादी काव्यधारा के प्रवर्तक है नये युग के पुरोधा है | अधुनातन बोधो के साहित्य – सर्जक है | व्युत्पत्ति ने तो सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ बेमिसाल ही है | उनके जैसा बहु – श्रुत, बहु- अधित, बहु- भाषी – मर्मी, बहु – अभ्यासी, बहु – श्रम साहित्यकार चालीसोत्तर हिंदी साहित्य में ढूंढे से भी नहीं मिलेगा |

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय का जीवन परिचय,  Sachchidananda Hiranand Vatsyayan ‘Agyeya’ Biography in Hindi

युगांतकारी, नूतन चेतना संवलित, नव्य साहित्य – धारा के प्रयोग धर्मी, युग – चेतना, अज्ञेय – जैसे विलक्षण प्रतिभा – शक्ति, पैनी – खोजी सूक्ष्म दृष्टि , क्रान्तिकारी एवं विद्रोही भावना, मर्यादावादिता , गत्वरता तथा नित्यनवता की उपासना करने की वृत्ति आज के किसी कवि और लेखक में एक साथ नहीं देखी जा सकती है | अत: इन सब विशिष्टताओ ने अज्ञेय को हिन्दी कहानी का एक विशिष्ट स्तम्भ बना दिया है | हिंदी – साहित्य की विकास – यात्रा में उनके योगदान का महत्व अप्रतिम है |

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ का संक्षिप्त जीवन परिचय – Sachchidananda Hiranand Vatsyayan ‘Agyeya’ Biography in Hindi

नामसच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’
जन्म7 मार्च सन् 1911 ई०
जन्म – स्थानकसया (कुशीनगर)
मृत्यु4 अप्रैल, 1987
पत्नी का नामकपिला
पिता का नामपंडित हीरानन्द शास्त्री
माता का नामवयन्ती देवी
रचनाएँआँगन के पार द्वार, विपथगा , नदी के दीप, चिन्ता आदि |

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय का जीवन परिचय

प्रस्तावना—

अज्ञेय प्रयोगवादी नूतन काव्यधारा के प्रतिनिधि कवि है | अज्ञेय दो बहनों के साथ आठ भईयो में तीसरे भाई थे | अज्ञेय का बचपन किसी एक स्थान पर नहीं व्यतीत हुआ | अपने पिता के तबादलों के कारण लखनऊ, कश्मीर, नालन्दा, पटना, उटकमण्ड आदि स्थानों पर उनका जीवन – क्रम चलता रहा | साहित्य के अतिरिक्त अज्ञेय चित्रकला, मृत्तिका – शिल्प, चर्म – शिल्प, फोटोग्राफी, बढ़ईगीरी, बागवानी, पर्वतारोहण आदि में रूचि लेते रहे | पशु – पंक्षी, वन – पर्वत, सागर – तट, बीहड़ – प्रदेश, ग्राम – नगर, देश – विदेश आदि में घूमने एवं भटकने का उन्हें शौक था |

अज्ञेय का स्वाभाव व्यवस्था – प्रियता का था | उनकी यह व्यवस्था – प्रियता ही कभी – कभी निकट के लोगो के लिए झुंझलाहट का कारण बन जाती थी | अज्ञेय जी का शौशव अवस्था अपने पिता के साथ वन और पर्वतो में बिखरे पुरातत्व अवशेषों के मध्य व्यतीत हुआ | पढाई के समय क्रांतिकारी आन्दोलन में सहयोगी होने के कारण वे फरार हो गये और सन् 1930 ई० में गिरफ्तार कर लिए गए | अज्ञेय जी को चार वर्ष जेल में और दो वर्ष घर में ही नजर बन्द रहकर व्यतीत करना पड़ा | अज्ञेय को पेड़ – पौधे और जीव – जन्तुओ को देखने का सुअवसर बचपन से ही मिलता रहा |

जंगलो , बिरानो और खण्डहरो में रहकर , मानवेतर सृष्टि को कुछ अधिक निकट से देखने का सुयोग उन्हें मिला था | यही कारण है कि वे जीवन पर्यन्त पर्वत , सागर एकान्त , झील आदि प्राकृतिक उपादानो कि ओर खिचे रहे | अज्ञेय के बचपन के कुछ सपने , कुछ घटनाएँ ऐसी है , जिनका उनके जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा और जिन्होंने उनके व्यक्तित्व निर्माण में पूरा योगदान दिया | घुमक्क्ड प्रकृति के वशीभूत होकर इन्होने अनेक बार विदेश यात्राये भी की |

जन्म – स्थान

प्रयोगवादी विचारधारा के प्रवर्तक पं० सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ का जन्म 7 मार्च सन् 1911 ई० को कसया (कुशीनगर) के पुरातत्विक विभाग के एक खुदाई – शिविर में हुआ था |

माता – पिता

अज्ञेय जी के पिताश्री का नाम पंडित हीरानन्द शास्त्री था | इनके पिता भारत के सुप्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता थे | तथा इनकी माँ का नाम श्रीमती वयन्ती देवी था |

‘अज्ञेय’ जी का पूरा नाम

अज्ञेय जी का पूरा नाम सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ था |

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय जी वात्स्यायन क्यों कहे जाते है ?

अज्ञेय जी वत्स गोत्र के और सारस्वत ब्रह्मण परिवार के थे | संकीर्ण जातिवाद से ऊपर उठकर वत्स नामक गोत्र के होने के कारण ‘वात्स्यायन‘ कहलाये | अत: अज्ञेय जी वत्स गोत्रीय होने के कारण ‘वात्स्यायन‘ कहे जाते है |

शिक्षा

अज्ञेय की घरेलू शिक्षा का प्रारम्भ लखनऊ में और विद्यालीय शिक्षा का समापन लाहौर में हुआ | स्वाध्याय के बल पर उन्होंने संस्कृत , फारसी , बंगला, अंग्रेजी और तमिल आदि का ज्ञान प्राप्त कर लिया | अज्ञेय ने सन् 1925 में पंजाब से मैट्रिक परीक्षा व्यक्तिगत परीक्षार्थी के रूप में उत्तीर्ण की और मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से इण्टरमीडिएट की परीक्षा सन् 1927 में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की | लाहौर के फाॅरमन कॉलेज से सन् 1929 में बी० एस० सी० की परीक्षा उत्तीर्ण की | लाहौर में ही सन् 1930 में एम०ए० पूर्वाध्द अग्रेजी की परीक्षा दी और प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए पर उत्तराध्द की परीक्षा न दे सके और क्रान्तिकारी संगठन में सम्मिलित हो गये |

विवाह

6 जुलाई, 1956 को अज्ञेय का कपिला के साथ विवाह सम्पन्न हुआ | इनकी धर्मपत्नी का नाम “कपिला” था |

मृत्यु – स्थान

4 अप्रैल, 1987 को करीब साढ़े सात बजे सुबह अज्ञेय ने सीने में दर्द की शिकायत की और सुबह करीब साढ़े आठ बजे हिन्दी साहित्य का यह अनुपम यायावर रचनाकार अपनी महायात्रा पर प्रस्थान कर गया — ऐसी यात्रा पर जहाँ से कोई वापस नहीं लौटता और इसी के साथ एक साहित्यिक युग का पटाक्षेप हो गया | इन्हें मरणोपराण्त भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया |

अज्ञेय जी द्वारा किये गये महत्वपूर्ण कार्य

अज्ञेय जी द्वारा किये गये कार्यो में सबसे महत्वपूर्ण कार्य ‘तारसप्तक के सम्पादन – प्रकाशन‘ का है | जिससे अज्ञेय जी को सर्वाधिक ख्याति प्राप्त हुआ | तथा सन् 1943 – 1946 ई० में उन्होंने सेना में भर्ती होकर असम – वर्मा सीमा पर और युध्द समाप्त हो जाने पर पंजाब – पश्चिमोत्तर सीमा पर एक सैनिक के रूप में सेवा की | सन् 1952 से 1955 तक आकाशवाणी के भाषा सलाहकार रहे | सितम्बर, 1961 से जुलाई, 1964 तक के लिए अज्ञेय की नियुक्ति कैलीफोर्निया वि० वि० , बर्कले (अमेरिका) में भारतीय संस्कृति और साहित्य विषय के अध्यापन हेतु हुई |

फरवरी, 1965 में अज्ञेय की अगुवाई में दिनमान का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ | जुलाई 1971 से सितम्बर 1972 तक जोधपुर वि०वि० में तुलनात्मक साहित्य में प्रोफेसर पद पर रहते हुए अज्ञेय ने विधिवत् अध्यापन – कार्य किया | जयप्रकाश नारायण के आग्रह पर सन् 1973 की जनवरी में ‘एवरीमैन्स‘ का सम्पादन स्वीकार कर दिसम्बर, 1973 में ही इससे त्यागपत्र दे दिया | एवरीमैन्स के अनन्तर अज्ञेय ने दिसम्बर, 1973 में ही नया प्रतीक संज्ञक साहित्यिक मासिक पत्रिका निकालना शुरू किया |

अगस्त, 1977 से अज्ञेय ने दैनिक नवभारत टाइम्स के सम्पादक का पद – भार ग्रहण किया और वहाँ वे 1979 तक रहे | उन्होंने भारतीय ज्ञानपीठ से मिली धनराशि का उपयोग वत्सल निधि की स्थापना हेतु किया और वत्सल निधि के अंतर्गत व्याख्यान – मालाये आयोजित की | सन् 1983 में सुगा (युगोस्लाविया) के अंतर्राष्ट्रीय काव्य -समारोह की संचालन – समिति द्वारा अज्ञेय को स्वर्णमाल पुरस्कार के लिए चैनित किया गया , जिसके परिप्रेक्ष्य में उन्होंने युगोस्लाविया की यात्रा की |

अज्ञेय जी को प्राप्त पुरस्कार एवं सम्मान

अज्ञेय जी को जो प्रमुख पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हुए, उनमे से कुछ विशेष पुरस्कार इस प्रकार है—

(1) नागरी प्रचारिणी सभा पुरस्कार— शेखर: एक जीवनी के लिए सन् 1943 में |

(2) साहित्य अकादमी पुरस्कार— ‘आँगन के पार द्वार’ पर सन् 1962 में प्राप्त हुआ |

(3) भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार— ‘कितनी नावो में कितनी बार’ पर सन् 1978 में मिला था |

(4) स्वर्णमाल पुरस्कार— मई 1983 में सुगा (युगोस्लाविया) में अंतर्राष्ट्रीय काव्य – समारोह की संचालन – समिति द्वारा प्रदान हुआ |

(5) भारत – भारती पुरस्कार— मार्च 1987 में वर्ष 1983 – 84 के लिए उत्तरप्रदेश संस्थान द्वारा प्राप्त हुआ |

(6) उपाधियाँ — अज्ञेय को हिन्दी साहित्य सम्मलेन प्रयाग द्वारा ‘साहित्य वाचस्पति‘ की उपाधि सन् 1968 में और विक्रम वि०वि० उज्जैन द्वारा डी० लिट० की उपाधि सन् 1971 में प्रदान की गयी थी |

साहित्यिक – परिचय

अज्ञेय जी ने सन् 1934 ई० के आस – पास लेखन – कार्य आरम्भ किया था | इनका समय प्रगतिवादी साहित्य का उत्कर्ष काल था | इन्होने कविता और गद्य दोनों क्षेत्रो में सशक्त रचनाए की | गद्य के क्षेत्र में इन्होने निबन्ध, यात्रावृत, इन्टरव्यू, टिप्पणी, प्रशानोतर आदि नवीन विधाओ के अतिरिक्त गद्यकाव्य, उपन्यास और कहानी के क्षेत्र में भी उच्च कोटि की रचनाये की | सम्पादक और पत्रकार के रूप में अज्ञेय जी की विशेष ख्याति की |

इन्होने सैनिक, विशाल भारत, प्रतीक, दिनमान, वाक (अग्रेजी) पत्रों का सफल सम्पादन किया | ये युगान्तकारी साहित्यकार थे | प्रयोगात्मकता एवं नवीनता को लेकर की गयी अनेक अलोचनाओ के उपरांत भी इस सत्य की अवहेलना नहीं की जा सकती की अज्ञेय उन साहित्य – निर्माताओ में से थे, जिन्होंने आधुनिक हिंदी – साहित्य को एक नया सम्मान और नया गौरव प्रदान किया | वस्तुतः हिन्दी साहित्य को आधुनिक बनाने का श्रेय उन्ही को है | स्वंय में समर्थ कलाकार होने के साथ – साथ अज्ञेय जी को हिंदी – साहित्य के सन्दर्भ में ऐतिहासिक व्यक्तित्व भी थे | इस प्रकार कवि, गद्यकार, सम्पादक और पत्रकार के रूप में अज्ञेय जी ने हिन्दी – साहित्य की महत्वपूर्ण सेवा की है |

रचनाएँ

अज्ञेयप्रयोगवाद के परावर्तक तथा समर्थ साहित्यकार थे | वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे | उनकी प्रतिभा गद्य – क्षेत्र में नवीन प्रयोगों में दिखाई देती है | अज्ञेय हिन्दी – साहित्य के ऐसे रचनाकार है, जिन्होंने लगभग प्रत्येक विधा पर कुशलता के साथ अपनी लेखनी चलाई है | अज्ञेय जी की प्रमुख कृतियाँ निम्नलिखित इस प्रकार है

अज्ञेय की रचनाएँ

निबन्ध – संग्रह— आत्मनेपद, सब रंग और कुछ राग, लिखि कागद कोरे आदि इनके वैयक्तिक या आत्मपरक निबन्ध – संग्रह है |

आलोचना या समीक्षा – ग्रन्थ— ‘हिन्दी – साहित्य: एक आधुनिक परिदृश्य ‘ , त्रिशंकु तथा तीनो सप्तको की भूमिकाएँ आदि |

काव्य – रचनाएँ —

  1. अरी ओ करुणा प्रभामय
  2. आँगन के पार द्वार
  3. बावरा अहेरी
  4. कितनी नावो में कितनी बार
  5. हरी घास पर क्षण भर
  6. इत्यलम
  7. इन्द्रधनुष रौदें हुए ये
  8. पहले मै सन्नाटा बुनता हूँ
  9. चिन्ता
  10. पूर्वा
  11. सुनहले शैवाल
  12. भग्नदूत

कहानी – संग्रह —

  1. विपथगा (1937)
  2. परम्परा (1944)
  3. कोठरी की बात (1945)
  4. शरणर्थी (1948)
  5. जयदोल (1951)
  6. ये तेरे प्रतिरूप (1961)

नाटक— उत्तरप्रियदर्शी (1967) आदि |

उपन्यास—

  1. शेखर: एक जीवनी – भाग 1 (सन्1941) & शेखर: एक जीवनी – भाग 2 (सन्1944)
  2. नदी के दीप
  3. अपने – अपने अजनबी (1961)

यात्रा – साहित्य—

  1. अरे यायावर रहेगा याद (1953)
  2. एक बूंद सहसा उछली (1960)

सम्पादन— ‘विशाल भारत’, ‘सैनिक’, ‘प्रतीक’, ‘दिनमान’, ‘वाक्’ आदि |

इसके अतिरिक्त अज्ञेय जी ने अन्य अनेक ग्रंथो का सम्पादन भी किया | इनके द्वारा सम्पादित किये गए ग्रन्थ है ‘आधुनिक हिंदी – साहित्य’ (निबन्ध – संग्रह), ‘तार सप्तक’ (कविता – संग्रह) एवं नये एकांकी आदि | इनकी उपन्यास और कहानियाँ उच्च कोटि की है |

भाषा

अज्ञेय जी का अध्ययन और अनुभाव विशाल था | इनके शब्दों में और प्रतीको में भी जीवन के यथार्थ को उद्घाटित करने की शक्ति थी | इन्होने भाषा के विविध रूपों का प्रयोग किया है | इनकी भाषा विषय और प्रसंग के अनुसार बदलती रहती है | इन्होने संस्कृतनिष्ठ भाषा से लेकर आम बोलचाल की भाषा तथा उर्दू व अग्रेज़ी के शब्दों का भी नि:संकोच प्रयोग किया है | अत: अज्ञेय नवीन चेतना के संचालक, नवीन बोध के संवाहक तथा भाषा के अनूठे शिल्पी – कवि साहित्यकार है |

शैली

अज्ञेय की शैली विविधरूपिणी है | अज्ञेय जी के गंभीर व्यक्तित्व की छाप इनकी रचना – शैली पर विशेष रूप से दिखाई देती है | शैली के क्षेत्र में इन्होंने अनेक नवीन प्रयोग एवं मानक स्थापित किये है | इनकी रचनाओं में निम्नलिखित शैलियों के दर्शन होते है 

  1. वर्णनात्मक शैली
  2. विवेचनात्मक शैली
  3. अलोचनात्मक शैली
  4. भावात्मक शैली
  5. व्यंग्यात्मक शैली

इसके अतिरिक्त अज्ञेय जी ने प्रश्नोत्तर शैली, उध्दरण शैली, टिप्पणी शैली, डायरी शैली, इन्टरव्यू शैली आदि शैलियों का भी कलात्मक प्रयोग किया है |

अज्ञेय जी का हिन्दी साहित्य – जगत में स्थान

अज्ञेय जी प्रबुद्ध साहित्यकार थे | अज्ञेय जी हिन्दी काव्य साहित्य के पूर्ववर्ती छायावादी स्वरूप का परित्याग कर ययार्थ का चित्रण करने वाले और हिंदी – साहित्य में अनेक मौलिकताओ का समावेश करने वाले कवि थे | उन्हें हिन्दी साहित्य – जगत में प्रयोगवादी कविता का पवर्त्तक एवं नई कविता का कर्णधार माना जाता है | दृश्य जगत का ययार्थ चित्रण करने की दृष्टि से, उनकी समता कर पाना कठिन है |

जो प्रत्यक्ष है, उसका यथावत चित्रण करने वाले वे सर्वप्रथम साहित्यकार थे | देश और समाज के प्रति उनके मन में आपार वेदना थी, जो उनकी अनेक रचनाओ में मुखरित होकर सामने आई है | सम्पादक और पत्रकार के रूप में इन्होने विशेष ख्याति प्राप्त की ही, साहित्य को आधुनिकतम रूप देने का सर्वाधिक श्रेय भी प्राप्त किया | आधुनिक गद्य और पद्य दोनों ही क्षेत्रो में इनका महत्वपूर्ण स्थान है |

इसलिए अज्ञेय हिंदी की इस नई काव्यधारा के पुरोधा और प्रवर्तक ही नहीं, अपितु कवि, वकील और जज भी है | इन तीनो गुणों से अभिमंडित होने के कारण अज्ञेय जी इस प्रयोगवादी काव्यधारा में मूर्धन्य स्थान के अधिकारी है | वे हिन्दी साहित्य के शीर्षस्थ साहित्यकारों में महत्वपूर्ण स्थान रखते है | किसी भी भाषा के साहित्य में अज्ञेय जैसे बहुत कम लेखक होते है, जो अपने जीवन और लेखन दोनों में ही महान होते है |

“अज्ञेय जी हिन्दी साहित्य – जगत में एक युग प्रवर्तक साहित्यकार के रूप में सदैव चिरस्मरणीय रहेगे | “

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