भारत छोड़ो आंदोलन या अगस्त क्रांति भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की अंतिम महान लड़ाई थी। जिसने ब्रिटिश शासन की नींव को हिलाकर रख दिया। क्रिप्स मिशन के बाद खाली हाथ भारत में वापस जाने पर भारतीयों को अपने छले जाने का अहसास हुआ। तथा दूसरे विश्व युद्ध के कारण परिस्थितियां अत्यधिक गंभीर होती जा रही थी। जापान सफलतापूर्वक सिंगापुर, मलाया, वर्मा पर कब्जा कर भारत की ओर बढ़ने लगा।
दूसरी ओर युद्ध के कारण तमाम वस्तु के मूल्य तेजी से बढ़ रहे थे जिसके कारण अंग्रेजी सत्ता के खिलाफ भारतीय जनमानस में असन्तोष फैलने लगा। भारत के बढ़ते हुए प्रभुत्व को देखकर 5 जुलाई 1942 को गांधी जी ने हरिजन में लिखा अंग्रेजों भारत को जापान के लिए मत छोड़ो बल्कि भारत को भारतीयों के लिए व्यवस्थित रूप से छोड़ जाओ।
वर्धा प्रस्ताव 14 जुलाई 1942
महात्मा गांधी ने अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा प्रस्तावित किया था। कांग्रेस कार्यसमिति ने वर्धा प्रस्ताव 14 जुलाई 1942 में संघर्ष के गांधीवादी प्रस्ताव को अपनी स्वीकृति दे दी।
संघर्ष प्रारम्भ होने का कारण
- संवैधानिक गतिरोध को हल करने के लिए क्रिप्स मिशन की असफलता ने संवैधानिक विकास के मुद्दे पर ब्रिटेन के अपरिवर्तित रूप को उजागर कर दिया तथा यह बात स्पष्ट हो गयी कि भारतीयों की ज्यादा समय तक चुप्पी उनके भविष्य को ब्रिटेन के हाथों में सौंपने के समान होगी।
- मूल्यों में बेतहाशा वृद्धि तथा चावल, नमक इत्यादि आवश्यक वस्तुओं के अभाव के कारण सरकार के विरुद्ध जनता में असंतोष था। जापान के आक्रमण के भय से सरकार ने बगांल और उड़ीसा की नावो को जप्त कर लिया। जापानी आक्रमण के भय से ब्रिटेन ने असम बगांल एवं उड़ीसा में दमनकारी एवं भेदभाव पूर्ण भू नीति का सहारा लिया।
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक – ग्वालिया टैंक, बम्बई
- आंदोलन के दौरान 7 अगस्त 1942 को अखिल भारतीय कांग्रेश की बैठक बम्बई के ऐतिहासिक ग्वालिया टैंक में हुई। गांधी जी के ऐतिहासिक भारत छोड़ो प्रस्ताव को कांग्रेस कार्य समिति ने कुछ संशोधनों के बाद 8 अगस्त 1942 को स्वीकार कर लिया।
- भारत में ब्रिटिश शासन को तुरंत समाप्त किया जाये।
- युद्ध की तैयारी में सहयोग देने के प्रस्ताव के साथ-साथ सरकार को तत्काल कदम उठाने की चुनौती दी गयी। कहा गया कि भारत की स्वतंत्रता की घोषणा के साथ एक स्थायी सरकार गठित हो जायेगी और स्वतंत्र भारत संयुक्त राष्ट्र संघ का एक मित्र बनेगा।
- ब्रिटिश शासन के विरुद्ध सविनय अवज्ञा आंदोलन का समर्थन किया गया।
- गांधीजी को संघर्ष का नेता घोषित किया गया।
विभिन्न वर्गो को गांधी जी द्वारा दिये गये निर्देश
(1) सरकारी सेवक: त्यागपत्र नहीं दे लेकिन कांग्रेस से अपनी राजभक्ति घोषित कर दें।
(2) छात्र: यदि आत्मविश्वास की भावना हो तो, शिक्षण संस्थाओ में जाना बंद कर दें तथा पढ़ाई छोड़ दें।
(3) कृषक: यदि जमीदार सरकार विरोधी हो तो पारस्परिक सहमति के आधार पर तय किया गया लगान उनदा करते रहें किंतु यदि जमीदार सरकार समर्थक हो तो लगान अदा करना बंद कर दें।
(4) सैनिक: सेना से त्यागपत्र नहीं दे किंतु अपने सहयोगियों एवं भारतीयों पर गोली नहीं चलाये। करो या मरो का मंत्र गांधी जी ने दिया था। जो इस आंदोलन की सबसे महत्वपूर्ण बात थी।
आंदोलन का प्रसार
(1) जन विद्रोह: जनता ने सरकारी सत्ता के प्रतिको पर अक्रमण किया तथा सरकारी भवनों पर बलपूर्वक तिरंगा फहराया। सत्याग्रहियों ने गिरफ्तारियाँ दी पुल उखाड़ दिये गये। रेल की पटरियाँ उखाड़ दी गयी तथा तार एवं टेलीफोन की लाइने काट दी गई।
(2) भूमिगत गतिविधियाँ: भूमिगत गतिविधियाँ के संचालन का कार्य मुख्यतः समाजवादी, फारवर्ड ब्लाक के सदस्य, गांधी आश्रम के अनुयायी तथा क्रांतिकारियों के हाथों में रहा। बंबई, पूना, सतारा, बड़ौदा तथा गुजरात के अन्य भाग कर्नाटक, केरल, आंध्रप्रदेश, संयुक्त प्रांत, बिहार एवं दिल्ली इन गतिविधियों के मुख्य केंद्र थे।
भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement) भारत को स्वतंत्र भले न करवा पाया हो पर इसका दूरगामी परिणाम सुखदायी रहा। इसलिए इसे भारत की स्वाधीनता के लिए किया जाने वाला अंतिम महान प्रयास कहा गया।
निष्कर्ष,
इस आर्टिकल में हमने भारत छोड़ो आंदोलन (Bharat Chhodo Andolan) के बारे में पड़ा। हमें उम्मीद हैं कि, आपको यह जानकारी अच्छी लगी होगी।
यह भी पढ़ें:
- भारत का राष्ट्रीय ध्वज – National Flag of India in Hindi – तिरंगा झंडा
- हड़प्पा सभ्यता का इतिहास – प्रमुख विशेषताएँ, हड़प्पा सभ्यता का अन्त
- भीमराव अम्बेडकर का जीवन परिचय
- हरित क्रांति (Harit Kranti)
अगर आपको यह आर्टिकल अच्छा लगे तो सोशल मीडिया पर अपने दोस्तों के साथ शेयर जरूर करें।