भारतेंदु-युग और द्विवेदी युग में अंतर क्या है?

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इस लेख में भारतेंदु-युग और द्विवेदी युग में अंतर क्या है? बहुत ही सरल भाषा में लिखा गया है जो परीक्षा की दृष्टि से बहुत ही उपयोगी है। Bharatendu Yug Aur Dwivedi Yug Mein Antar.

भारतेंदु युग क्या है?

भारतेंदु युग: हिन्दी साहित्य के इतिहास में 1850 ई० से 1900 ई० तक का समय भारतेन्दु काल के नाम से जाना जाता है। भारतेंदु युग का नामकरण भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के नाम पर है।

द्विवेदी युग क्या है?

द्विवेदी युग: हिन्दी साहित्य के इतिहास में भारतेन्दु युग के पश्चात् 1900 ई० से 1918 ई० तक समय द्विवेदी युग के नाम से जाना जाता है। द्विवेदी युग का नामकरण महावीर प्रसाद द्विवेदी के नाम पर है।

भारतेंदु-युग और द्विवेदी युग में अंतर बताइए

भारतेंदु-युग और द्विवेदी युग में निम्नलिखित अंतर इस प्रकार है:

क्रमांकभारतेन्दु युगद्विवेदी युग
1.भारतेंदु युग का नामकरण भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के नाम पर है।द्विवेदी युग का नामकरण महावीर प्रसाद द्विवेदी के नाम पर है।
2.हिन्दी साहित्य के इतिहास में 1850 ई० से 1900 ई० तक का समय भारतेन्दु काल के नाम से जाना जाता है।हिन्दी साहित्य के इतिहास में भारतेन्दु युग के पश्चात् 1900 ई० से 1918 ई० तक समय द्विवेदी युग के नाम से जाना जाता है।
3.भारतेन्दु हरिश्चन्द्र आधुनिक काल के उन्नायकों में से है।आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी हिन्दी साहित्य के आधार स्तम्भों में से है।
4.गद्य को अधिक विकसित करने का कार्य भारतेन्दु जी ने ही किया तथा इन्होने भाषा को सरल, सुबोध और सौष्ठवपूर्ण बनाते हुए सम्प्रेषणीयता के गुण से भी जोड़ा।भाषा को परिष्कृत करने और व्याकरण – सम्मत बनाने में द्विवेदी युग के आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की भूमिका अविस्मरणीय है।
5.कवि – वचन – सुधा का प्रकाशन काशी में 1868 ई० में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जी द्वारा भारतेन्दु युग में ही किया गया।द्विवेदी युग में पंडित महावीर प्रसाद द्विवेदी जी ने वर्ष 1903 ई० में ‘सरस्वती’ पत्रिका के सम्पादक बने।
6.भारतेन्दु युग के हिन्दी गद्य में सरलता और संप्रेषणीयता तो विद्यमान थी ही, किन्तु व्याकरण की व्यवस्था ठीक नही थी।द्विवेदी जी ने हिन्दी के लेखको का ध्यान व्याकरण विषयक अशुध्दियों की ओर दिया और इसके लिए इन्होने हिन्दी की वर्तमान अवस्था शीर्षक से एक लेख भी लिखा।
7.भारतेन्दु मण्डल के गद्य लेखकों में बालकृष्ण भट्ट, प्रतापनारायण मिश्र, अम्बिकादत्त व्यास, बदरीनारायण चौधरी प्रेमधन, जगमोहन सिंह और राधाचरण गोस्वामी आदि के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है।द्विवेदी युग के गद्य को परिमार्जित, पुष्ट और व्याकरण सम्मत बनाने में गोविन्दनारायण मिश्र, बालमुकुन्द गुप्त, माधव प्रसाद मिश्र, सरदार पूर्णसिंह, पद्म सिंह शर्मा, चन्द्रधर शर्मा गुलेरी, ब्रज रत्नदास और मन्नन द्विवेदी, आदि के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है।

अगर आपको भारतेंदु हरिश्चंद्र के जीवनी पढ़नी हो तो आप ये लेख पढ़ें – भारतेंदु हरिश्चंद्र की जीवनी – Bhartendu Harishchandra Biography In Hindi

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