Dr Bhimrao Ambedkar Speech In Hindi | डॉ भीमराव आंबेडकर पर भाषण | डॉ भीमराव आंबेडकर स्पीच
आदरणीय प्रिंसिपल सर, अध्यापक गण तथा प्रिय अभिभावकों और मेरे प्यारे साथियों आप सभी को 14 अप्रैल (डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की 132वीं जयंती) की हार्दिक शुभकामनाएं।
मैं आप सभी के सामने बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर के बारे में कुछ कहना चाहता हूं अगर कोई त्रुटि होगी तो कृपया क्षमा करने की कृपया करना। मेरा नाम ………………….है। मैं क्लास ……………….. का छात्र हूँ।
डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का जन्म इस पावन धरती पर सन् 1891 ई० को अम्बादावेकर नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम रामजी सकपाल था। तथा माता का नाम भीमा सकपाल था। बाबा साहब जी 14 भाई – बहन थे। जिसमें से 3 भाई और 2 बहन थे तथा और अन्य भाई-बहन बचपन में ही गुजर गये थे। तथा ये एक दलित वर्गीय व्यक्ति थे इनके पिता ब्रिटिश कम्पनी के सूबेदार थे।
इनके जाति के लोगों को पढ़ने – लिखने और उसे सुनने तक का भी अधिकार नहीं था उस समय छुआ – छूत नामक ऐसी भयानक बीमारी थी, कि कोई उच्च वर्गीय व्यक्ति निम्न वर्गीय व्यक्ति को न ही छूता तथा न ही उनके साथ अच्छा व्यवहार करता था। इनके पिता ब्रिटिश कंपनी के सूबेदार थे जिनके कारण इन्हें और इनके बड़े भाई को स्कूल में एडमिशन तो मिल गया लेकिन उन्हें कक्षा में बैठने नहीं दिया जाता था और न ही कोई स्कूली सुख – सुविधा प्राप्त थी।
जबकि ये अपने घर से फटी – पुरानी बोरी लेकर जाते थे तथा कक्षा के बाहर बैठते थे जब कोई टीचर क्लास में पढ़ाते समय कोई प्रश्न क्लास के बच्चों से पूछे तो क्लास का कोई बच्चा नहीं बता पाता तो उस प्रश्न का उत्तर बाबा साहब को आता तो वो हाथ उठाते किंतु अध्यापक उनसे न पूछते तथा उन्हें स्कूल में पानी का घड़ा भी छूने नहीं दिया जाता था।
बाबा साहब पढ़ने – लिखने में बहुत तेज थे क्योंकि इनके पिता इनको घर पर पढ़ाते थे जैसे – तैसे स्कूली शिक्षा पूरी की। 5 – 6 साल के थे इनके सर से मां का साया उठ गया पिता ने दूसरी शादी की। तो ये सन् 1897 ई० में मुंबई चले गए। और वहां जाकर एलफिंस्टन में पढ़ाई की। इनके गुरु ब्राह्मण कृष्ण केशव अंबेडकर ने इनकी बहुत मद्द की, इसी बीच इनके पिता सूबेदार के पद से रिटायर हो गए।
बाबा साहब के पिता अपनी पेंशन से किसी तरह घर का खर्चे और बच्चों की किताबों की पूर्ति करते थे। मुंबई के एक पार्क में बाबा साहब बैठे किताबें पढ़ रहे थे उसी समय वहां दादा केलुस्कर आते हैं और उन्हें अपने पास बैठने के लिए कहते हैं। किंतु बाबा साहब मना कर देते हैं। दादा केलुस्कर कहते हैं। मैं सभी को एक सामान मानता हूं और उन्हें अपने पास बैठा लेते हैं। और अपने द्वारा लिखी पुस्तक बुद्ध की जीवनी देकर कहते हैं कि तुम बहुत बुद्धिमान हो ये तुम्हारे काम आएगी।
सन् 1913 ई. में इनके पिता का निधन हो गया इनकी किताबे डूब गयी अर्थात उनके पिता अपनी पेंशन से पुस्तकें खरीदकर इन सभी भाई – बहनों को उपहार स्वरुप देते थे। बाबा साहब सोचे अब किताबे कहां से मिलेगी तब इनको दादा केलुस्कर के द्वारा सन् 1913 ई० में US भेजा गया जहां बड़ौदा के गायकवाड सयाजीराव III से उनकी मुलाकात हुई जो उन्हें स्कॉलरशिप देते थे।
इसके बदले में बाबा साहब को उनके यहां काम करना पड़ता था नवल नामक पारसी उनका मित्र था सन् 1917 ई० को उन्हें वापस आना पड़ा क्योंकि स्कॉलरशिप की डेट समाप्त हो गई थी। इनका परिवार महु (मध्यप्रदेश) में रहता था तथा बाद में इनके परिवार के लोग सतारा में रहने लगे।
डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की पत्नी का नाम रामाबाई था इनकी शादी सन् 1906 ई० में हुआ था। US से वापस आने के बाद में इन्हें सेना का सचिव बना दिया गया। इसके बाद सन् 1918 ई० में ये राजनीतिशास्त्र के प्रोफेसर बन गए जब यह प्रोफेसर के पद पर थे तो चपरासी इन्हें पानी पिलाने नहीं जाता था तथा फाईले उनके मेंज पर फेंक देता था उन्हें यहां बर्ताव अच्छा नहीं लगा।
वे सन् 1920 ई० में कोल्हापुर के साह (रियासत), साप्ताहिक पत्र (मूकनायक) पढ़ने के लिए बेचते थे तथा इन्होंने दलितों के लिए एक समिति संगठित की थी जिसका नाम बहिष्कृत हितकारिणी समिति था इसके बाद में इन्होंने स्वयं सन् 1946 ई० में एक पुस्तक लिखी Who Were the Shudras. तथा इन्होंने अन्य पुस्तकें भी लिखी जैसे – The Buddha His Dhamma. आदि।
सन् 1935 ई० में इनकी पत्नी का निधन हो गया तब इन्होंने दूसरी शादी की जो एक ब्राह्मण कन्या थी जिनका नाम शारदा था जो एक डॉक्टर थी बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी ने हमारे भारत देश का संविधान लिखा। जिसको लिखने में 2 वर्ष 11 माह 18 दिन लगे।
बाबा साहब ने दलित वर्गीय तथा मध्यवर्गीय लोगों के लिए बहुत बड़ी लड़ाई लड़ी तथा उसमें जीत भी हासिल की आज इन्हीं के बदौलत हम सभी स्वतंत्र रूप से अपने अधिकारों को प्राप्त कर रहे हैं। इन्होंने केवल स्वयं को ही नहीं बल्कि बच्चों, स्त्रियों और अन्य लोगों को भी इस घुटन भरे जीवन से उभारा बाबा साहब की 4 संताने थी ये सभी बीमारी के कारण ईलाज न मिलने पर मृत्यु को प्राप्त हो गयी तथा बाबा साहब भी एक बहुत बड़ी बीमारी (डाबिटीज) से ग्रसित थे तथा इनका ईलाज इनकी पत्नी शारदा कर रही थी वो ठीक भी हो गए थे।
अचानक एक दिन वे रोज की तरह किताबें पढ़ने के बाद सोए और वे सोते ही रह गए। 6 दिसंबर सन् 1956 ई. में दिल्ली में अपना दम तोड़ दिए। डॉ. भीमराव अंबेडकर जी को प्रारूप समिति का अध्यक्ष भी चुना गया। जो 26 अगस्त 1947 को डॉ भीमराव अंबेडकर ने हम भारत वासियों के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिए ऐसे वीर पुरुष को मेरा शत्-शत् प्रणाम अंत में अपनी वाणी को विराम देते हुए मैं कहना चाहता हूं।
जय भीम, जय भारत
न शृंगार जानता हूं,
न दौलत का हार जानता हूं,
बस बाबा साहब को जानता हूं,
और उनका संविधान जानता हूं।।
हम आग लगाना भी जानते हैं
हम आग बुझाना भी जानते हैं
अगर किसी ने मेरे बाबा साहब
के खिलाफ कुछ बोला तो हम
ईट का जवाब पत्थर से
देना भी जानता हूं
बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने कहा है –
जब तक आप स्वयं नहीं बदलते, तब तक
कुछ भी बदलने की आशा नहीं की जा सकती
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