हड़प्पा सभ्यता का इतिहास – प्रमुख विशेषताएँ, हड़प्पा सभ्यता का अन्त

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हड़प्पा सभ्यता (सिन्धु घाटी सभ्यताIndus Valley Civilization) आज मे सात-आठ दशक पूर्व तक भारत को विश्व की प्राचीनतम् सभ्यताओं की श्रेणी में कोई स्थान नहीं था, किन्तु सर जॉन मार्शल, दयाराम सहनी, डॉ. राखालदास बनर्जी आदि विद्वानों के प्रयत्नों के परिणाम स्वरूप हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में जो उत्खनन कार्य सम्पादित हुआ, उससे कांस्य कालीन साक्षर नागरिक सभ्यता प्रकाश में आयी। और अब विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं की कोटि में भारत की हड़प्पा सभ्यता का एक अप्रतिम स्थान बन गया है। History of Harappan Civilization (Indus Valley Civilization) in Hindi. चलिए जानते हैं हड़प्पा सभ्यता इतिहास क्या है

विषय-सूची

हड़प्पा सभ्यता का इतिहास – प्रमुख विशेषताएँ, हड़प्पा सभ्यता का अन्त

हड़प्पा सभ्यता

सिन्धुघाटी सभ्यता (हड़प्पा सभ्यता) की खोज

भारतीय पुरातत्व विभाग के महानिर्देशक जॉन मार्शल के निर्देशन में राय बहादुर दयाराम साहनी जी ने 1921 ई. में हड़प्पा की खुदाई करवायी। इसलिए इस अज्ञात सभ्यता की खोज का श्रेय राय बहादुर दयाराम साहनी जी को जाता है तथा राखालदास बनर्जी ने 1922 ई. में मोहनजोदड़ो की खुदाई करवायी थी।

सिन्धुघाटी सभ्यता के अन्य नाम

सिन्धुघाटी सभ्यता (Indus Valley Civilisation) को सिन्धु सभ्यता, हड़प्पा सभ्यता एवं सैन्धव सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है।

सिन्धुघाटी सभ्यता का विस्तार

सिन्धुघाटी की सभ्यता में पुष्पित एवं पल्लवित यह सभ्यता प्रथमतः एवं मोहनजोदड़ो इन दो प्रमुख केन्द्रों से प्रकाश में आयी थी। इन दोंनों के मध्य की दूरी 400 मील है। इस सभ्यता का विस्तार पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान, गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, जम्मू और पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक था। इसका विस्तार उत्तर में जम्मू से लेकर दक्षिण में नर्मदा के मुहाने तक और पश्चिम में बलूचिस्तान के मकरान तट से लेकर पूर्व में मेरठ तक था। यह सभ्यता पूरब से पश्चिम में 1600 किमी. तथा उत्तर से दक्षिण में 1100 किमी. तक फैली थी।

सिन्धुघाटी (हड़प्पा सभ्यता) की समयावधि

रेडियो कार्बन ‘C- 14’ जैसी नवीन विश्लेषण पद्धति द्वारा हड़प्पा सभ्यता का सर्वमान्य काल 2500 ईसा पूर्व से 1750 ईसा पूर्व को माना जाता है।

हड़प्पा सभ्यता के चार भौगोलिक स्थल

  1. माण्डा (जम्मू-कश्मीर) – यह स्थल अखनूर जिले में चिनाब नदी के दक्षिणी तट पर स्थित है। यह विकसित हड़प्पा सभ्यता का सर्वाधिक उत्तरी स्थल है। इसका उत्खनन 1982 ई. में गणपति जोशीमधुबाला ने कराया था। माण्डा में तीन सांस्कृतिक स्तर – प्राक् सैन्धव, विकसित सैन्धव एवं उत्तर सैन्धव है।
  2. आलमगीरपुर (मेरठ) – यह हड़प्पा सभ्यता का सर्वाधिक पूर्वी स्थल है। यह स्थल मेरठ जिले में डिंडन नदी ( यमुना की सहायक) के तट पर स्थित है।
  3. दैमाबाद (महाराष्ट्र) – दैमाबाद सैन्धव सभ्यता का सबसे दक्षिणी स्थल है। यह स्थल महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में प्रवरा नदी के बायें किनारे पर स्थित है।
  4. सुत्कांगडोर (बलूचिस्तान) – यह दाश्क नदी के किनारे स्थित हड़प्पा सभ्यता का सबसे पश्चिमी स्थल है। इसकी खोज 1927 ई. में सर मार्क आरेल स्टाइन ने की थी। केवल सात सैन्धव स्थलों को नगर (Town) की संज्ञा दी गयी है। जो निम्नलिखित है- हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, चन्हुदड़ो, लोथल, कालीबंगा, बनावली और धौलावीरा

सिन्धुघाटी सभ्यता (हड़प्पा सभ्यता) की प्रमुख विशेषताएँ

नगर योजना और संचार

  1. इस सभ्यता की महत्वपूर्ण विशेषता नगर योजना थी।
  2. नगरों में सड़के व मकान विधिवत् बनाये गये थे। मकान पक्की ईंटों के बने होते थे तथा सड़के सीधी थीं।
  3. मोहनजोदड़ों का सबसे महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्थल विशाल स्नानागार है। यह 11.88 मी. लम्बा, 7.01 मी. चौड़ा और 2.43 मी. गहरा है। इसमें उतरने के लिए उत्तर तथा दक्षिण की ओर सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। स्नानागार का फर्श पक्की ईंटों का बना है।
  4. हड़प्पा के दुर्ग में 6 अन्नागार मिलें है। जो ईंटों के बने चबूतरों पर दो पंक्तियों में खडे़े हैं। प्रत्येक अन्नागार 15.23 मी. लम्बा और 6.09 मी. चौड़ा है।
  5. लोथल की सबसे प्रमुख विशेषता जहाजों की गोदी ( Dockyard) है। यह विश्व की प्राचीनतम् गोदी बाड़ा है।
  6. मैके ने चन्हुदड़ों में मनका बनाने का कारखाना (Bead Factory) कहा तथा भट्टी की खोज की ।

सिन्धुघाटी (हड़प्पा सभ्यता) के लोंगो का आर्थिक जीवन

सैन्धव वासियों के जीवन का मु्ख्य उद्यम कृषि कर्म था। यहाँ के प्रमुख खाद्यान्न गेंहूँ तथा जौ थे। नगरों में अनाज के भण्डारण के लिए अन्नागार होते थे।

1. कृषि – Agriculture

  • वर्तमान में सिन्धु प्रदेश में पहले की अपेक्षा बहुत कम वर्षा होती है। इसलिए यह प्रदेश अब उतना उपजाऊ नहीं रहा।
  • सूती वस्त्रों के अवशेषों से ज्ञात होता है कि यहाँ के निवासी कपास उगाना भी जानते थे। विश्व में सर्वप्रथम यहीं के निवासियों ने कपास की खेती प्रारम्भ की थी। कपास को सिन्डन भी कहा जाता था। इसलिए यूनान के लोग इसे सिन्डन (Sindon) कहने लगे।
  • चावल उत्पादन के साक्ष्य लोथल रंगपुर से मिले हैं। परन्तु गन्ना का कोई साक्ष्य नहीं मिला है। लोथल एवं सौराष्ट्र से बाजरे की खेती एवं रोजदी ( गुजरात) से रागी के साक्ष्य मिलें हैं।

2. पशुपालन – Animal Husbandry

  • हड़प्पाई लोग बैल, गाय, भैस, बकरी, भेड़ और सू्अर पालते थे। इन्हें कूबड़ वाला साँड विशेष प्रिय था। इसके अतिरिक्त ये गधे और ऊँट भी रखते थे।
  • घोड़े के अस्तित्व का संकेत मोहनजोदड़ों की ऊपरी सतह से तथा लोथल में मिली एक संदिग्ध मृण्मूर्ति (टेराकोटा) से मिला है।

3. शिल्प तथा उद्योग-धंधे एवं तकनीकी ज्ञान

  • कृषि तथा पशुपालन के अतिरिक्त यहाँ के निवासी शिल्पों तथा उद्योग-धंधों में भी रुचि लेते थे।
  • यहाँ के निवासी धातु निर्माण उद्योग, बर्तन निर्माण उद्योग, आभूषण निर्माण उद्योग, हथियार – औजार निर्माण उद्योग व परिवहन उद्योग से परिचित थे।
  • ताँबा, राजस्थान की खेतड़ी के ताम्र-खानों से मगाया जाता था जबकि टिन, अफगानिस्तान से मगाया जाता था।
  • मोहनजोदड़ों से बुने हुए सूती कपड़े का एक टुकड़ा मिला है तथा अनेक वस्तुओं पर कपड़े की छाप देखने को मिलती है। उस काल में कताई के लिए तकलिये का प्रयोग होता है।

4. व्यापार

इस सभ्यता के लोगों की महरें एवं वस्तुएँ पश्चिम एशिया तथा मिस्र में मिली हैं, जो यह दिखाती है कि उन देशों के साथ इनका व्यापारिक सम्बंध था। यहाँ के निवासी वस्तु विनिमय द्वारा व्यापार किया करते थे। मोहनजोदड़ों से मिट्टी व कांसे की दो पहियों वाली खिलौना गाड़ी एवं चन्हुदड़ों से मिट्टी की पहियों वाली गाड़ी मिली हैं। मेसोपोटामिया के पुरालेखों में दो मध्यवर्ती व्यापार केन्द्रों का उल्लेख मिलता है- दिलमुन और माकन । दिलमुन की पहचान फारस की खाड़ी के बहरीन से की जाती है।

हड़प्पा सभ्यता (सैन्धव) निवासियों का सामाजिक जीवन

  • हड़प्पा कालीन समाज सम्भवतः मातृसत्तात्मक था।
  • सैन्धव निवासियों का सामाजिक जीवन सुखी तथा सुविधापूर्ण था व सामाजिक व्यवस्था का मुख्य आधार परिवार था।
  • समाज व्यवसाय के आधार पर चार भाँगों में विभाजित था – विद्वान , योद्धा, व्यापारी तथा शिल्पकार और श्रमिक।
  • सैन्धव निवासी आमोद-प्रमोद के प्रेमी थे। जुआ खेलना, शिकार करना, नाचना, गाना-बजाना आदि लोगों के आमोद-प्रमोद के साधन थे। पासा इस युग का प्रमुख खेल था।

हड़प्पा सभ्यता धार्मिक प्रतीक चिन्ह

प्रतीक चिन्हमहत्व
ताबीजभूत – प्रेत से बचने के लिए
बैलशिव का वाहन
स्वास्तिकसूर्य उपासना का प्रतीक
योगी शिवयोगीश्वर
बकराबलि हेतु
श्रृंगशिव का रूप
नागपूजा हेतु
भैंसादेवता की शत्रुओं पर विजय का प्रतीक
युगल शवाधानपति के साथ पत्नी का सटी होना

1. हड़प्पा सभ्यता की माप-तौल

  • बाट के रुप में मनके एवं जवारात की अनेक वस्तुएँ पायी गयी हैं। जिनसे प्रकट होता है कि तौल में 16 या इसके आवर्तकों का प्रयोग होता था। जैसे – 16, 64, 160, 320 और 640 ।
  • मोहनजोदड़ो से सीप और लोथल से हाथी दाँत का बना एक स्केल मिला है। सुरकोतदा से तराजू का साक्ष्य मिला है।

2. मृदभांड

  • मृदभांड अधिकांशत लाल व गुलाबी रंग से हुआ था। मृदभाण्डों पर सिन्धु लिपि मिलती है।
  • लोथल से प्राप्त मृदभांड मे एक वृक्ष पर मुँह में मछली पकड़े हुए एक पक्षी को दर्शाया गया है। तथा नीचे एक लोमड़ी का चित्र है। यह पंचतंत्र की प्रसिद्ध कथा चालाक लोमड़ी को दर्शाता है।

3. हड़प्पा सभ्यता की मुहरें

  • मुहरों पर लघुलेखों के साथ-साथ एक श्रृंगी पशु, भैंस, बाघ, सांड, बकरी और हाथी की आकृतियाँ बनायी गयी है।
  • मुहरों के बनाने में सेलखड़ी (Stealite) का सर्वाधिक उपयोग किया गया है।
  • लोथल और देसलपुर से ताँबे की बनी मुहरें प्राप्त हुई है। सैन्धव मुहरें प्रायः बेलनाकार, वर्गाकार, आयताकार एवं वृत्ताकार हैं।
  • मोहनजोदड़ों एवं लोथल से नाव की आकृति अंकित मुहर मिली है।

हड़प्पा सभ्यता (सैन्धव) निवासियों का धार्मिक जीवन

  • मातृदेवी के समप्रदाय का सैन्धव संस्कृत में प्रमुख स्थान था। मातृदेवी की ही भाँति देवता की उपासना में भी बलि का विधान था।
  • यहाँ पर पशुपति महादेव, लिंग, योनि, वृक्षों, पशुओं की पूजा की जाती थी। ये लोग भूत-प्रेत, अंधविश्वास व जादू टोना पर भी विश्वास करते हैं।
  • बैल को पशुपति नाथ का वाहन माना जाता था। फाख्ता एक पवित्र पक्षी माना जाता था।
  • स्वास्तिक चिन्ह सम्भवतः हड़प्पा सभ्यता की देन है । मोहनजोदड़ो से प्राप्त मुहर पर स्वास्तिक का अंकन सूर्य पूजा का प्रतीक माना जाता था।

हड़प्पा सभ्यता (सैन्धव) निवासियों का लेखन कला

  • दुर्भाग्यवश् अभी तक सिन्धु सभ्यता की लिपि को पढ़ा नहीं जा सका है। इसमें चित्र और अक्षर ( लगभग 400 अक्षर एवं 600 चित्र) दोनों ही ज्ञात होते हैं।
  • यह लिपि प्रथम पंक्ति में दायें से बायें एवं द्वितीय पंक्ति में बायें से दायें लिखी गयी है। यह तरीका बाउस्ट्रोफिडन (Boustrophedon) कहलाता है।

सिन्धु घाटी सभ्यता का नाम ‘सिन्धु घाटी सभ्यता’ कैसे पड़ा ?

बीसवीं सदी की शुरुआत तक इतिहासवेत्ताओं की यह धारणा थी कि ‘वैदिक सभ्यता‘ भारत की सबसे प्रचीनतम सभ्यता है । लेकिन बींसवी सदी के तीसरे दशक मे खोजे गये स्थलों से यह साबित हो गया कि वैदिक सभ्यता से पूर्व भी भारत में एक अन्य सभ्यता विद्यमान थी। इसे हडप्पा सभ्यता या सिन्धु घाटी सभ्यता के नाम से जाना जाता है । आरम्भिक स्थलों में से अधिकांश सिन्धु नदी के किनारे अवस्थित थे । इसलिए इस सभ्यता का नाम ‘सिन्धु घाटी सभ्यता‘ पड़ा ।

सिन्धु घाटी सभ्यता का नाम ‘हड़प्पा सभ्यता’ कैसे पड़ा ?

इसके प्रथम अवशेष हड़प्पा नाम सभ्यता स्थान से प्राप्त हुए थे इसलिए इस का नाम ‘हड़प्पा सभ्यता‘ पड़ा ।

हड़प्पा सभ्यता का अन्त – End of Harappan Civilization

यह सभ्यता तकरीबन एक हजार साल रही। इसके अन्त के कारणों के बारे में इतिकार एकमत नहीं हैं और अलग-अलग मत दिये गये हैं। जिसमें प्रमुख है- जलवायु परिवर्तन, नदियों के जलमार्ग में परिवर्तन, आर्यों का आक्रामण, बाढ़, सामाजिक ढाँचे में विखराव एवं भूकंप आदि सम्मिलित हैं।

हड़प्पाकालीन स्थल

स्थलवर्तमान क्षेत्रउत्खननकर्त्तावर्षनदी
हड़प्पामोंटगोमरी जिला, पश्चिमी पंजाब (पाकिस्तान)राय बहादुर दयाराम साहनी, व्हीलर1921 ई.रावी
मोहनजोदड़ोलारकाना जिला, सिंध प्रांत (पाकिस्तान)राखालदास बनर्जी, मार्टिमर व्हीलर1922 ई.सिंधु
लोथलअहमदाबाद (गुजरात)रंगनाथ राव1954 एवं 1962 ई.भोगवा
चन्हुदड़ोसिंध (पाकिस्तान)अर्नेस्ट मैके व एन. जी. मजूमदार 1931 ई.सिंधु
कालीबंगाहनुमानगढ़ (राजस्थान)अमलानंद घोष एवं ब्रजवासी लाल 1952 एवं 1960 ई.घग्घर
राखीगढ़ीहिसार (हरियाणा)सूरज भान 1969 ई.घग्घर
कोटदीजीसिंध (पाकिस्तान)धुर्ये एवं फजल एवं अहमद खान1935 एवं 1955 ई.सिंधु
बनावलीहिसार (हरियाणा)आर. एस. बिष्ट1973 ई.सरस्वती
रोपड़रूपनगर (पंजाब)धुर्ये एवं फजल एवं अहमद खान1955 ई.सतलज
रंगपुरकाठियावाड़ (गुजरात)आर. एस. बिष्ट1954 ई.भादर/मादर
आलमगीरपुरमेरठ (उत्तर प्रदेश)यज्ञदत्त शर्मा1958 ई.हिंडन
सुत्कांगेडोरबलूचिस्तान (पाकिस्तान)ऑरेज स्टाइन एवं जार्ज डेल्स1927 एवं 1962 ई.दाश्क
माण्डाजम्मू (जम्मू – कश्मीर)जगपति जोशी1982 ई.चेनाब
सुत्काकोहपेरिन (बलूचिस्तान)जाॅर्ज डेल्स1962 ई.शादी कौर
सुरकोटदाकच्छ (गुजरात)जगपति जोशी1964 ई.सरस्वती

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