कबीर दास का जीवन परिचय | Kabir Das Biography In Hindi

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इस आर्टिकल में हम कबीर दास का जीवन परिचय (Kabir Das Jeevan Parichay) पढेंगे, तो चलिए विस्तार से पढ़ते हैं कबीर दास का जीवन परिचय हिंदी में | Sant Kabir das Biography in Hindi. जो परीक्षा की दृष्टि से बहुत ही उपयोगी है।

कबीर दास का जीवन परिचय | Kabir Das Biography In Hindi

सन्त कबीर एक उच्चकोटि के सन्त तो थे ही, हिंदी साहित्य में एक श्रेष्ठ एवं प्रतिभावान कवि के रूप में भी प्रतिष्ठित हैं | कबीर एक सन्त भी थे और संसारी भी, समाज – सुधारक भी थे और एक सजग कवि भी | वे अनाथ थे, किंतु सारा समाज उनकी छत्र – छाया की अपेक्षा करता था |

कबीर दास का जीवन परिचय, Kabir Das Biography In Hindi
कबीर दास का जीवन परिचय

कबीर के महान व्यक्तित्व एवं उनके काव्य के सम्बन्ध में हिंदी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ० प्रभाकर माचवे ने लिखा है – कि “कबीर में सत्य कहने का अपार धैर्य था और उसके परिणाम सहन करने की हिम्मत भी | कबीर की कविता इन्हीं कारणों से एक अन्य प्रकार की कविता है | वह कई रूढ़ियों के बन्धन तोड़ती है | वह मुक्त आत्मा की कविता है” कबीर में एक सफल कवि के सभी लक्षण विद्यमान थे | अतः वे हिंदी साहित्य के श्रेष्ठतम विभूति थे | कबीरदास जी को ‘वाणी का डिक्टेटर’ भी कहा जाता है |

Kabir Das Biography In Hindi – कबीर दास का जीवन परिचय

नामसन्त कबीरदास (Sant Kabirdas)
जन्मसं० 1455 वि० (सन् 1398 ईसवी)
जन्म – स्थानकाशी (वाराणसी)
मृत्युसंवत् 1575 वि० (सन् 1518 ई०)
मृत्यु – स्थानमगहर
पिता का नामनीमा
माता का नामनीरु
पत्नीलोई
पुत्र – पुत्रीकमाल – कमाली
भाषाअरबी, फारसी, भोजपुरी, पंजाबी, ब्रजभाषा, खड़ीबोली (पंचमेल खिचड़ी)
रचनाएंबीजक (साखी, सबद, रमैनी)

कबीर दास का प्रारम्भिक जीवन – Kabir Das Biography In Hindi

सन्त कबीरदास अपने युग के सबसे महान समाज – सुधारक, प्रतिभा – संपन्न एवं प्रभावशाली व्यक्ति थे | ‘भक्त परम्परा’ में प्रसिद्ध है कि किसी विधवा ब्राह्मणी को स्वामी रामानंद के आशीर्वाद से पुत्र उत्पन्न होने पर उसने लोक – लाज के भय से काशी के समीप लहरतारा (लहर – तालाब) के किनारे फेंक दिया था, जहां से नीरू नामक एक जुलाहा एवं उसकी पत्नी ने नीमा नि:सन्तान होने के कारण उन्हें उठा लाये | उन्होंने इनका पालन – पोषण किया और इनका नाम कबीर रखा |

कबीर अनेक प्रकार के विरोधी संस्कारों में पले थे और किसी भी बाहन आडम्बर, कर्मकाण्ड और पूजा – पाठ की अपेक्षा पवित्र, नैतिक और सादे जीवन को अधिक महत्व देते थे | सत्य, अहिंसा, दया तथा संयम से युक्त धर्म की सामान्य स्वरूप में ही विश्वास करते थे | जो भी सम्प्रदाय इन मूल्यों के विरुद्ध कहता था, उसका ये निर्ममता से खण्डन करते थे | इसी कारण इन्होंने अपनी रचनाओं में हिंदू और मुसलमान दोनों के रूढ़िगत विश्वासों एवं धार्मिक कुरीतियों का विरोध किया है |

डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने तो इनके व्यक्तित्व के बारे में यहां तक कह दिया है कि – “मस्ती, फक्काड़ाना स्वभाव और सब – कुछ को झाड़ -फटकर चल देने वाले स्वभाव ने कबीर को हिंदी साहित्य का अद्वितीय व्यक्ति बना दिया | उनकी वाणियों में उनका सर्वजयी व्यक्तित्व विराजता है | इसी ने कबीर की वाणीयों में अनन्य जीवन – रस भर दिया है |” कबीर बड़े निर्भीक और मस्तमौला स्वभाव के थे | ये बड़े सारग्राही एवं प्रतिभाशाली थे|

जन्म

प्रमाणिक साक्ष्य उपलब्ध ना होने के कारण भक्तिकालीन धारा की निर्गुणाश्रयी शाखा के अन्तर्गत ज्ञानमार्ग का प्रतिपादन करने वाले महान सन्त कबीरदास की जन्मतिथि के सम्बन्ध में अनेक जनश्रुतियां एवं किंवदन्तियाँ प्रचलित हैं | ‘कबीर पन्थ‘ में कबीर का जन्मकाल सं० 1455 वि० (सन् 1398 ईसवी) में ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को सोमवार के दिन हुआ था | कबीरदास के जन्म के सम्बन्ध में निम्न काव्य – पंक्तियां प्रसिद्ध हैं –

“चौदह सौ पचपन साल गये, चन्द्रवार एक ठाठ ठये |
जेठ सुदी बरसायत को, पूरनमासी प्रगट भये ||
धन गरजे दामिन दमके, बूँदे बरसे झर लाग गये |
लहर तालाब में कमल खिलिहैं, तहँ कबीर भानु परकास भये ||”

जन्म – स्थान

इनके जन्म – स्थान के सम्बन्ध में भी विद्वानों में मतभेद है, परंतु अधिकतर विद्वान इनका जन्म “काशी” (वाराणसी) में ही मानते हैं, जिसकी सिद्धी स्वयं सन्त कबीरदास का यह कथन भी करता है – “काशी में परगट भये, हैं रामानन्द चेताये |” इससे इनके गुरु का नाम भी पता चलता है |

माता – पिता

सन्त कबीरदास जी के पिता का नाम “नीरु” एवं माता का नाम “नीमा” था |

कबीर दास के नाम गुरु और शिक्षा:—

सन्त कबीरदास जी के गुरु प्रसिद्ध वैष्णव सन्त आचार्य रामानन्द जी थे | इन्हीं से इन्होंने दीक्षा ग्रहण की थी | गुरुमंत्र के रूप में इन्हे ‘राम‘ नाम मिला, जो इनकी समग्र भावी साधना का आधार बना | व्यापक देशाटन एवं अनेक साधु – संतों के सम्पर्क में आते रहने के कारण इन्हें विभिन्न धर्मों एवं सम्प्रदायों का ज्ञान प्राप्त हो गया था |

कबीर दास की पत्नी

जनश्रुतियों के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि सन्त कबीरदास विवाहित थे | इनकी पत्नी का नाम ‘लोई‘ था |

कबीर दास की पुत्र और पुत्री

सन्त कबीरदास जी की दो सन्ताने थी – एक पुत्र और एक पुत्री | पुत्र का नाम ‘कमाल‘ था और पुत्री का नाम ‘कमाली‘ था |

कबीर दास की मृत्यु – स्थान

अधिकांश विद्वानों के अनुसार कबीर संवत् 1575 वि० (सन् 1518 ई०) में स्वर्गवासी हो गये| इसके समर्थन में निम्नलिखित दोहा प्रसिद्ध है –

संवत् पंद्रह सौ पछत्तरा, कियो मगहर को गौन |
माघे सुदी एकादशी, रलौ पौन में पौन ||

कुछ विद्वानों का मत है कि इन्होंने स्वेच्छा से ‘मगहर‘ में जाकर अपने प्राण त्यागे थे | सन्त कबीरदास की दृढ़ मान्यता थी कि मनुष्य को अपने कर्मों के अनुसार ही गति मिलती है, स्थान विशेष के प्रभाव से नहीं | अपनी इसी मान्यता को सिद्ध करने के लिए अंत समय में ये मगहर चले गये | क्योंकि लोगों की मान्यता थी कि ‘काशी‘ में मरने वाले को स्वर्ग प्राप्त होता है और “मगहर” में मरने वाले को नरक |

इस प्रकार अपनी मृत्यु के समय भी उन्होंने जनमानस में व्याप्त उस अंधविश्वास को आधारविहीन सिद्ध करने का प्रयास किया | “कबीर परचई” के अनुसार बीस वर्ष में कबीर चेतन हुए और सौ वर्ष तक भक्ति करने के बाद मुक्ति पाई अर्थात् इन्होंने 120 वर्ष की आयु पायी थी जो कबीर के दोहे से स्पष्ट होता है –

बालपनौ धोखा में गयो, बीस बरिस तैं चेतन भयो |
बरिस सऊ लगि कीन्हीं भगती, ता पीछे सो पायी मुकती ||

कबीर दास का साहित्यिक व्यक्तित्व

कबीर हिन्दी साहित्य के अद्वितीय रहस्यवादी कवि हैं | रहस्यवाद की सारी स्थितियां इनके काव्य में विद्यमान हैं | डॉ० श्यामसुंदरदास ने कबीर के रहस्यवाद की मुक्त कंठ से प्रशंसा करते हुए लिखा है — “रहस्यवादी कवियो में कबीर का आसन सबसे ऊंचा है | शुद्ध रहस्यवाद केवल उन्हीं का है |” कबीर पढ़े – लिखे नहीं थे | उन्होंने स्वयं ही कहा है — “मसि कागद छुयो नहीं, कमल गह्यो नहीं हाथ |

” इससे स्पष्ट है कि इन्होंने भक्ति के आवेश में जिन पदों एवं साथियों को गाया, उन्हें इनके शिष्यों ने संग्रहित कर लिया | उसी संग्रह का नाम ‘बीजक‘ है | इन ग्रंथों द्वारा सन्त कबीरदास की विलक्षण प्रतिभा का परिचय मिलता है | कबीर पढ़े-लिखे नहीं थे, किंतु ये बहुश्रुत होने के साथ-साथ उच्च कोटि की प्रतिभा से संपन्न थे | आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने भी स्पष्ट कहा है कि “कविता करना कबीर का लक्ष्य नहीं था, कविता तो उन्हें सेत मेत में मिली वस्तु थी, उनका लक्ष्य लोकहित था |

सन्त कबीरदास भावना की प्रबल अनुभूति से युक्त उत्कृष्ट रहस्यवादी, समाज – सुधारक, पाखण्ड के अलोचक मानवतावादी और समानतावादी कवि थे | इनकी काव्य में दो प्रवृत्तियाँ मिलती हैं— एक में गुरु एवं प्रभुभक्ति, विश्वास, धैर्य, दया, विचार, क्षमा, संतोष आदि विषयों पर रचनात्मक अभिव्यक्ति तथा दूसरे में धर्म, पाखण्ड के आलोचक, कुरीतियां आदि के विरुद्ध आलोचनात्मक अभिव्यक्ति देखने को मिलती है | इन दोनों प्रकार के काव्यो में कबीर की अद्भुत प्रतिभा का परिचय मिलता है|

कबीरदास की रचनाएं

सन्त कबीरदास की वाणियों का संग्रह ‘बीजक‘ के नाम से प्रसिद्ध है | जिसके तीन भाग हैं — साखी, सबद (पद), रमैनी | आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार ‘बीजक‘ का सर्वाधिक प्रमाणिक अंश ‘साखी‘ है इसके बाद ‘सबद‘ और अन्त में ‘रमैनी‘ का स्थान है |

साखी :—

साखी संस्कृत के ‘साक्षी‘ शब्द का विकृत रूप है और धर्मोपदेश के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है | अधिकांश साखियां दोहों में लिखी गयी हैं , पर उनमें सोरठे का प्रयोग भी मिलता है | सन्त कबीरदास की शिक्षाओं और सिद्धांतों का निरूपण अधिकाशत: का साखी में हुआ है |

सबद:—

इसमें सन्त कबीरदास के गेय – पद संगृहित हैं | गेय – पद होने के कारण इनमें संगीतात्मकता का पूर्ण रूप से विद्यमान है | इन पदों में के अलौकिक प्रेम और उनकी साधना – पद्धति की अभिव्यक्ति हुई है |

रमैनी:—

रमैनी चौपाई छन्द में रची गयी है इनमें कबीर के रहस्यवादी और दार्शनिक विचारों को प्रकट किया गया है |

कबीर दास के दोहे हिंदी में – Kabir das Ke Dohe

दुर्बल को न सताइए, जाकी मोटी हाय ।
मुई खाल की स्वाँस सो, सार भसम ह्वै जाय ।।

मधुर बचन है औषधी, कटुक बचन है तीर ।
स्रवन द्वार ह्वै संचरे, सालै सकल सरीर ।।

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपनो, मुझ-सा बुरा न कोय ।।

साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय ।
सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय ।।
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।
माली सींचे सौ घड़ा ऋतु आए फल होय ।।

कबीर दास जी की भाषा

सन्त कबीरदास पढ़े – लिखे नहीं थे | उन्होंने तो संतों के सत्संग से ही सब – कुछ सीखा था | इसलिए उनकी भाषा साहित्यक नहीं हो सकी | उन्होंने व्यवहार में प्रयुक्त होने वाली सीधी – सादी भाषा में ही अपने उपदेश दिए | उनकी भाषा में अनेक भाषाओं जैसे — अरबी, फारसी, भोजपुरी, पंजाबी, ब्रजभाषा, खड़ीबोली आदि शब्दों की खिचड़ी मिलती है |

इसी कारण इनकी भाषा को आचार्य रामचंद्र शुक्ल जैसे विद्वान भी ‘पंचमेल खिचड़ी‘ या ‘सुधक्कड़ी‘ भाषा कहते हैं | भाषा पर कबीर का पूरा अधिकार था | उन्होंने आवश्यकता के अनुरूप शब्दों का प्रयोग किया | इसलिए आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने उन्हें ‘वाणी का डिक्टेटर‘ बताते हुए लिखा है कि — “भाषा पर कबीर का जबरदस्त अधिकार था | अतः वे वाणी के डिक्टेटर” थे |

कबीर दास जी की शैली

कबीर ने सहज, सरल और सरस शैली में उपदेश दिए हैं, इसलिए उनकी उपदेशोत्मक शैली बोझिल नहीं है | उसमें स्वाभाविकता एवं प्रवाह है | व्यंग्यात्मकता एवं भावात्मकता उनकी शैली की प्रमुख विशेषताएं हैं | इसलिए कबीर की शैली उपदेशात्मक, व्यंग्यात्मक एवं भावात्मक है |

कबीर दास साहित्य में स्थान

वास्तव में कबीर महान विचारक, श्रेष्ठ समाज – सुधारक, परम योगी और ब्रह्म के सच्चे साधक थे | उनकी स्पष्टवादिता, कठोरता, अक्खड़ता यद्यपि कभी-कभी नीरसता की सीमा तक पहुंच जाती थी | परंतु उनके उपदेश आज भी सद्मार्ग की ओर प्रेरित करने वाले हैं | उनके द्वारा प्रवाहित की गयी ज्ञान – गंगा आज भी सबको पावन करने वाली है | कबीर के जीवन और संदेश के सामान ही उनकी कविता भी आडम्बरशून्य है |

कविता की सादगी ही उसकी सबसे बड़ी शक्ति है | न जाने कितने सहदय तो उनके साधक रूप की अपेक्षा उनके कवि रूप पर मुग्ध है और उन्हें हिंदी के सिद्धहस्त महाकवियों की पंक्ति में अग्र स्थान का अधिकारी मानते हैं | ईश्वर को विभिन्न धर्मों के अनुयायी अलग-अलग नामों से पुकारते हैं | कबीर ने इसे राम नाम से पुकारा है, पर उनके राम दशरथ – पुत्र श्री राम न होकर ‘निर्गुण – निराकार राम‘ हैं | संत कबीर केवल राम जपने वाले जड़ साधक नहीं थे, सत्संगति से इन्हीं जो बीज मिला उसे इन्होंने अपने पुरुषार्थ से वृक्ष का रूप दिया |

कबीर ने भक्तिकाल की ज्ञानाश्रयी व सन्त काव्यधारा के प्रतिनिधि कवि के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त की है | उनका दृष्टिकोण सारग्राही था और ‘अपनी राह तू चलै कबीरा‘ ही उनका आदर्श था | डॉ० हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कहा था — “हिंदी – साहित्य के हजार वर्षों के इतिहास में कबीर जैसा व्यक्तित्व लेकर कोई लेखक उत्पन्न नहीं हुआ | महिमा में यह व्यक्तित्व केवल एक ही प्रतिद्वन्दी जानता है तुलसीदास 

“निश्चय ही निर्गुण भक्तिधारा के पथप्रदर्शक के रूप में कबीर का नाम युगो – युगान्तर तक स्वर्ण अक्षरों में अंकित रहेगा |”

FAQ: कबीर दास के जीवन परिचय से सम्बंधित प्रश्न – उत्तर

Q 1. कबीर का जन्म कब और कहां हुआ था?

Ans: कबीर का जन्मकाल सं० 1455 वि० (सन् 1398 ईसवी) में ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को सोमवार के दिन हुआ था। कबीर का जन्म काशी के लहरतारा नामक तालाब के किनारे माना जाता हैं।

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