इस आर्टिकल में हम काव्य किसे कहते हैं? तथा पद्य (काव्य) से संबंधित सम्पूर्ण जानकारियाँ – Kavya Hindi पढेंगे, जो बहुत ही सरल भाषा में लिखा गया है जो परीक्षा की दृष्टि से बहुत ही उपयोगी है।
पद्य किसे कहते हैं?
पद्य (काव्य) उस छन्दोबद्ध वं लयात्मक साहित्यिक रचना को कहते है, जो श्रोता या पाठक के मन में भावात्मक आनन्द की सृष्टि करती है। व्यापक अर्थ में पद्य (काव्य) से तात्पर्य सम्पूर्ण गद्य एवं पद्य में रचित भावात्मक सामग्री से है, किन्तु संकुचित रूप में इसे कविता का पर्याय समझा जाता है।
काव्य के दो पक्ष होते हैं — भाव पक्ष और कला पक्ष।
भाव पक्ष में काव्य (Poetry) के समस्त वर्ण्य-विषय(वर्णन करने योग्य विषय) आ जाते है। और कला पक्ष में वर्णन-शैली के सभी अंग सम्मिलित हे। ये दोनों एक-दूसरे के सहायक और पूरक होते हैं। भाव-पक्ष का सम्बन्ध काव्य की विषय वस्तु से है और कला-पक्ष का संबन्ध आकार-शैली से है। वस्तु या आकार एक-दूसरे से पृथक नहीं हो सकते, क्योंकि कोई भी वस्तु आकारहीन नहीं हो सकती।
काव्य के दो भेद हैं
- श्रव्य काव्य (सुना या पढ़ा जाने वाला काव्य)
- दृश्य काव्य (दृश्यों आदि के चित्रण के माध्यम से रसास्वादन कराने वाला काव्य)।
श्रव्य काव्य में रसानुभूति पढ़कर या सुनकर होती है, जबकि दृश्य काव्य में रसानुभूति अभिनय एवं उपभेद के द्वारा ही सम्भव है। श्रव्य काव्य के भी दो उपभेद हैं- प्रबंध काव्य और मुक्तक काव्य। प्रबंध काव्य में किसी कथा का आश्रय लेकर रचना की जाती है, जबकि मुक्तक काव्य में स्वतंत्र पदों के रूप में भावाभिव्यक्ति की जाती है। प्रबंध काव्य के भी दो प्रकार हैं- महाकाव्य और खण्डकाव्य।
काव्य से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण शब्दावली की व्याख्या—
काव्य या पद्य | Kavya OR Padya
पद्य उस छन्दबद्ध एवं लयात्मक साहित्यिक रचना को कहते हैं, जो श्रोता या पाठक के मन में भावात्मक आनन्द की सृष्टि करती है।
काव्य के दो भेद होते हैं—
- श्रव्य काव्य- सुना या पढ़ा जाने वाला काव्य।
- दृश्य काव्य- दृश्यों आदि के चित्रण के माध्यम से रसास्वादन कराने वाला काव्य।
श्रव्य काव्य के भी दो भेद होते हैं—
- प्रबंध काव्य
- मुक्तक काव्य
प्रबंध काव्य-
प्रबंध काव्य में एक धारावाहिक कहानी होती है। अर्थात् किसी कथा-युक्त काव्य को प्रबंध काव्य कहा जाता है। इसमें किसी घटना या क्रिया का काव्यात्मक वर्णन होता है,
जैसे- जयशंकर प्रसाद की काव्यकृति कमायनी।
मुक्तक काव्य-
मुक्तक काव्य, काव्य का वह रूप है, जिसमें पद तो कई हो सकते हैं, किन्तु प्रत्येक पद स्वतंत्र होता है और उन पदों में परस्पर सम्बन्ध होना आवश्यक नहीं होता । सब पद स्वयं में ही पूर्ण होते हैं।
जैसे- महाकवि बिहारी की – बिहारी सतसई।
महाकाव्य किसे कहते हैं?
लम्बे कथानक पर आधारित कई सर्गों (खण्डों) में विभाजित तथा किसी लोकप्रिय नायक तथा उसके सहयोगी अन्य पात्रों के चरित्र-चित्रण पर आधारित काव्य महाकाव्य कहलाता है। इसमें लोकादर्श, उदान्त शैली एवं रचना सम्बंधी युग सम्पूर्ण सामाजिक परिवेश का चित्रण होता है।
उदाहरण- हरिऔधजी का काव्य-ग्रंथ- प्रियप्रवास
खण्डकाव्य किसे कहते हैं?
जब किसी लोकनायक के जीवन के किसी एक अंश या खण्ड पर आधारित काव्य की रचना की जाती है तो उसे खण्डकाव्य कहते हैं।
उदाहरण- दिनकर जी का खण्डकाव्य –रश्मिरथी
गीत किसे कहते हैं?
स्वर, शब्द, तुक और ताल से युक्त गान ही गीत कहलाता है।
गीतिकाव्य किसे कहते हैं?
जिस काव्य में हृदय के भावों की अभिव्यक्ति गेय छन्दों और संगीतात्मक रूप में होती है, उसे गीतिकाव्य कहते हैं.।
गितिनाट्य-
गीतिनाट्य ऐसा काव्यरूप है जिसकी मूल भावना और शैली अभिव्यंजनात्मक होती है। इसमें नाटकीय कथोपकथनों के आधार पर कथासूत्र आगे बढ़ता है।
उदाहरण- जयशंकर प्रसाद का काव्य करुणालय।
अलंकार किसे कहते हैं?
काव्य की शोभा बढ़ाने वाले और उसे सजाने वाले धर्म को अलंकार कहते हैं।
गुण-
काव्य के उन धर्मों को गुण कहा जाता है, जिनसे रस के उत्कर्ष में सहायता मिलती है। इसके निम्नलिखित भेद होते हैं—
ओज गुण किसे कहते हैं?
काव्य में ऐसे शब्दों का प्रयोग, जिनसे वीर-भावनाओं का स्फुरण होता है, भाषा का ओज गुण कहलाता है।
उदाहरण- भूषण जी के काव्य में।
प्रसाद गुण किसे कहते हैं?
जिसमें स्वच्छ, सरल और सहज ग्राह्य शब्दों का प्रयोग हो अर्थात् सुनते ही अर्थ समझ में आ जाए, वह प्रसाद गुण कहलाता है।
उदाहरण- हरिऔध जी के काव्य में।
माधुर्य गुण-
माधुर्य का अर्थ है मधुर होने की विशेषता, मिठास और रोचकता । इस गुण में समास-रहित, भावमय और सरल शब्दों का प्रयोग किया जाता है।
उदाहरण- सूरदास जी के काव्य में।
छन्द किसे कहते हैं?
जातीय संगीत एवं भाषावृत्ति के आधार पर निर्मित लय के आदर्श नियमों को छन्द कहते हैं। इसे पिंगलशास्त्र भी कहा जाता है।
बिम्ब-
शब्दों के माध्यम से निर्मित चित्र को बिम्ब कहा जाता है।
नयी कविता-
नयी कविता प्रयोगवादी कविता का विकसित रूप है और प्रयोगवाद को मुक्तभाव से आत्मसात् करते हुए इसका विकास हुआ है।
उदाहरण- अज्ञेय, मुक्तिबोध आदि कवियों की कविताएँ।
प्रतीक-
प्रतीक एक विशेष संकेत होता है जिसका प्रयोग अन्य अर्थ के प्रतिनिधित्व के लिए होता है। उदाहरण- महादेवीजी की कविताओं में प्रतीकों का प्रयोग हुआ। उनकी नीर भरी दुःख की बदली कविता करुणा से पूर्ण जीवन का प्रतीक है।
काव्य-दोष-
काव्य रचना के अन्तर्गत भावों की अभिव्यक्ति में अवरोध उत्पन्न करने वाले दोष को ही काव्य-दोष कहा जाता है।
रस – Ras
रस काव्य की भावमूलक कलात्मक स्थिति है जो विभाव, अनुभाव और संचारी भावों के द्वारा अभिव्यक्त की जाती है।
शब्दशक्ति-
शब्द के आन्तरिक अर्थ को व्यक्त करने वाली शक्ति को शब्दशक्ति कहते हैं। शब्दशक्ति के निम्नलिखित तीन भेद होते हैं—
[i] अभिधा शब्दशक्ति – भाषा की जिस शक्ति से शब्द के सामान्य प्रचलित अर्थ का बोध होता है, उसे अभिधा शब्दशक्ति कहते हैं।
उदाहरण- हाथी, ऊंट आदि।
[ii] लक्षणा शब्दशक्ति- जब शब्द के मुख्य अर्थ से काम नहीं चलता और उस शब्द के लक्षण के आधार पर अर्थ निकाला जाता है तो उसे लक्षणा शब्दशक्ति कहते हैं।
उदाहरण- लक्षणा में किसी मोटे व्यक्ति को हाथी और किसी लम्बे व्यक्ति को ऊँट कहा जाता है।
[iii] व्यंजना शब्दशक्ति- अभिधा और लक्षणा द्वारा अपना-अपना अर्थ बताकर शान्त हो जाते पर जिसके द्वारा अन्य अर्थ का बोध होता है उसे व्यंजना शब्दशक्ति कहते हैं।
उदाहरण- शाम हो गई है –वाक्य के अन्य अर्थ हो सकते हैं- दीपक जलाईए, खेलना बंद करो, भोजना पकाना है आदि।
विभिन्न वाद-
[i] छायावाद- काव्य की वह विशिष्ट पद्धति, जिसमें व्यक्तिवादी भावनाएं प्रकट की जाती हैं, छायावाद कहलाती है। यह काव्य पद्धति थोथी नैतिकता और रुढ़वादी आदर्शों के प्रति विद्रोह प्रकट करती है। इसमें माध्यम वर्ग की असंगति की भावना तथा जीवन-संघर्ष से पलायन की प्रवृत्ति भी विद्यमान है।
उदाहरण- प्रसाद, पन्त, निराला तथा महादेवी वर्मा का काव्य ।
[ii] प्रगतिवाद- प्रगति वाद साहित्य की वह धारा है, जिसमें कवि पूँजीवादी व्यवस्था और शोषण की प्रवृत्ति के विरुद्ध रोष प्रकट करता है। इसमें किसानों व श्रमिकों, मजदूरों आदि के प्रति महानुभूति दर्शाई जाती है।
उदाहरण- निराला तथा दिनकर का काव्य।
[iii] प्रयोगवाद- काव्य की वह धारा, जो नवीन और साहसपूर्ण काव्य प्रयोगों को अपनाकर अग्रसर हुई, प्रयोगवाद कहलाती है।
उदाहरण- धर्मवीर भारती एवं मुक्तिबोध की कविताएँ।
[iv] रहस्यवाद- जिस काव्यधारा में अज्ञात और अव्यक्त सत्ता के प्रति जिज्ञासा के भाव प्रकट किये जाते हैं, उसे रहस्यवाद कहते हैं।
उदाहरण– कबीर के काव्य में प्रस्तुत रहस्यवादी भावना।
काव्य की संरचना के तत्व—
भाव-पक्ष- काव्य के संरचनात्मक त्तवों में उसके भाव की अभिव्यक्ति का अत्यन्त महत्व होता है। इसे काव्य की आत्मा कहते हैं। भाव का तात्पर्य काव्य के विषय एवं उसकी रस-अभिव्यक्ति से होता है।
कला-पक्ष- किसी काव्य में प्रयुक्त भाषा, छन्द-योजना, अलंकार, उक्ति-वैचित्र्य, उक्ति-लाघव आदि को उस काव्य का कला-पक्ष कहा जाता है। आलंकारिक रूप में विद्वान काव्य के कला पक्ष को काव्य का शरीर कहते हैं।
पदमैत्री- समान ध्वनि के एक से अधिक शब्दों का बार-बार प्रयोग करके जो कलात्मक सौन्दर्य प्रस्तुत किया जाता है, उसे पदमैत्री कहते हैं।
नाद-सौन्दर्य- शब्दों की ध्वनि के कलात्मक संयोजन को नाद-सौन्दर्य कहा जाता है। इसमें शब्दों का चयन और प्रयोग इस प्रकार किया जाता है, जिससे कि वे कानों को सुनने में प्रिय, आकर्षक और संगीतमय लगें।
सामासिक भाषा- जब कवि किसी काव्य में दो अथवा दो से अधिक पदों या शब्दों को किसी संयाजक चिन्ह के माध्यम से जोड़कर प्रस्तुत करता है तो उस काव्य की वह भाषा सामासिक भाषा कहलाती है।
अनगढ़ भाषा- जिस भाषा में व्याकरण के नियमों एवं शब्दों के स्वरूप की वैज्ञानिकता का ध्यान नहीं रखा जाता है, वह अनगढ़ भाषा कहलाती है।
उक्ति-लाघव-जब कुछ ही शब्दों का प्रयोग इस कुशलता से किया जाए कि उनका अर्थ व्यापकता एवं घम्भीरता से युक्त हो तो उसे उक्ति-लाघव कहते हैं।
उक्ति-वैचित्र्य-किसी बात को कहने का अनोखा ढंग ही उक्ति-वैचित्र्य कहलाता है।
उदाहरण-
करौं कुबत जगु कुटिलता, तजौ न दीनदयाल।
दुःखी होहुगे सरल हिय, बसत त्रिभंगी लाल।।
हिन्दी काव्य (पद्य) साहित्य का विकास
हिन्दी काव्य (पद्य) साहित्य का विकास संक्षेप में
(क) हिन्दी काव्य साहित्य का काल-विभाजन-
हिन्दी काव्य साहित्य का काल-विभाजन निम्न आधार पर है-
काल | काल-विभाजन |
आदिकाल (वीरगाथाकाल) | सन् 769 ई. से सन् 1343 ई. तक |
पूर्व-मध्यकाल (भक्तिकाल) | सन्1343 ई. से सन् 1643 ई. तक |
उत्तर-मध्यकाल (रीतिकाल) | सन् 1643 ई. से सन् 1868 ई. तक |
आधुनिक काल( गद्यकाल) | सन् 1868 ई. से निरन्तर अबतक |
हिन्दी काव्य साहित्य के विभिन्न कालों से सम्बंधित शाखाएँ हिन्दी काव्य साहित्य के कालों की शाखाएँ निम्नलिखित है |
हिन्दी काव्य साहित्य में विभिन्न कालों के प्रसिद्ध कवि एवं उनकी प्रसिद्ध रचनाओँ का विवरण निम्नलिखित है—
विभिन्न कालों के प्रसिद्ध कवि एवं उनकी प्रसिद्ध रचनाएँ
काल | कवि | रचनाएँ |
भक्तिकाल (वीरगाथाकाल) | चन्द्रबरदाई | पृथ्वीराज रासो |
नरपति नाल्ह | बीसलदेव रासो | |
दलपति विजय | खुमान रासो | |
भक्तिकाल (पूर्व-मध्यकाल) | कबीर | बीजक, कबीर ग्रन्थावली, कबीर-वचनावली |
सूरदास | सूरसागर, साहित्य लहरी, गोवर्धन-लीला, सूर-पचीसी | |
गोस्वामी तुलसीदास | श्री रामचरितमानस, विनय-पत्रिका, रामाज्ञा-प्रश्न, दोहावली, गीतावली आदि | |
रीतिकाल( उत्तर-मध्यकाल) | बिहारी | बिहारी सतसई |
भूषण | शिवराज-भूषण, शिवाबावनी, छत्रसाल-दशक | |
आचार्य केशवदास | नखसिख आदि | |
आधुनिक काल | मैथिलीशरण गुप्त | साकेत, जयद्रथ-वध, यशोधरा |
जयशंकर प्रसाद | आँसू, कामायनी, करुणालय | |
अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ | प्रियप्रवास, कृष्ण-शतक, पद्य-प्रसून आदि |
विभिन्न काव्यधाराओं की विशेषताएँ, कवि एवं उनकी प्रसिद्ध रचनाएँ-
हिन्दी साहित्य में विभिन्न काव्यधाराओं की विशेषताएँ उऩके कवि एवं उनकी प्रसिद्ध रचनाओं का विवरण निम्न प्रकार है—
क. वीरगाथा काव्यधारा की विशेषताएँ, कवि एवं रचनाएँ
काव्यधारा | विशेषताएँ | कवि | रचनाएँ |
वीरगाथा काव्यधारा (वीरगाथाकाल अथवा आदिकाल) | रासो ग्रन्थों की रचना | चन्द्रबरदाई | पृथ्वीराज रासो |
वीर एवं श्रृंगार की प्रधानता | |||
आश्रयदाताओं की प्रशंसा | |||
डिंगल एवं पिंगल भाषा | विद्यापति | विद्यापति पदावली | |
प्रबंध एवं मुक्तक काव्य दोनों प्रकार की रचनाएं | कीर्तिलता, कीर्तिपताका |
ख. भक्तिकाल निर्गुण काव्यधारा की विशेषताएँ, कवि एवं रचनाएँ-
काव्यधारा | विशेषता | कवि | रचनाएँ |
भक्तिकाल निर्गुण काव्यधारा या भक्तिधारा सन्त काव्यधारा(ज्ञानाश्रयी शाखा) | निराकार परमात्मा की उपासना भाव | कबीर दास | बीजक, कबीर-ग्रंथावली |
ज्ञान-प्राप्ति एवं गुरु को सर्वाधिक महत्त्व | |||
ऊँच-नीच, जाति-पाति के भेदों की आलोचना | |||
रहस्यवादी भावना | नानकदेव | गरुग्रंथ साहिब | |
पाखण्ड एवं ब्रम्हचारों की आलोचना | |||
सूफी काव्यधारा (प्रेमाश्रयी शाखा) | प्रेम-भावना द्वारा परमात्मा की प्राप्ति | जायसी | पद्मावत, अखरावट, आखिरी कलाम |
लौकिक प्रेम से अलौकिक प्रेम का सृजन | |||
हिन्दू संस्कृति का चित्रण | |||
इतिवृत्तात्मक अतिशयोक्ति | उसमान | चित्रावली | |
फारसी मसनवी पद्धति |
ग. सगुण काव्यधारा की विशेषताएँ, कवि एवं रचनाएँ-
काव्यधारा | विशेषता | कवि | रचनाएँ |
सगुण काव्यधारा या सगुण भक्तिधारा रामभक्ति काव्यधारा | दास्यभावना की प्रधानता | तुलसीदास | श्रीरामचरित मानस, विनय-पत्रिका, रामाज्ञा-प्रश्नावली |
मर्यादा पुरुषोत्तम राम को ईश्वर मानकर उनका गुणगान | |||
समन्वकारी भावना | |||
सामाजिक कल्याण की भावना | अग्रदास | रामाष्टयाम्, रामध्यानमंजरी आदि | |
अवधी एवं ब्रजभाषा का प्रयोग | |||
कृष्णभक्ति धारा | श्रीकृष्ण की लीलाओं का वर्णन | केशवदास | जहाँगीर-जस-चन्द्रिका |
सखाभाव एवं भक्ति-भावना | |||
वात्सल्य एवं श्रृंगार रस की प्रधानता | रतन-बानवी, कविप्रिया | ||
भावुकतापूर्ण सरलता | बिहारी | बिहारी सतसई | |
प्रकृति का उद्दीपन रूप में वर्णन |
घ. आधुनिक काव्यधारा की विशेषताएँ, कवि एवं रचनाएँ-
काव्यधारा | विशेषता | कवि | रचनाएं |
भारतेन्दु युगीन काव्य | राष्ट्रीयता की भावना | भारतेन्दु हरिश्चन्द्र | प्रेम-फुलवारी, प्रेम-प्रलाम, प्रेमाश्रु-वर्षण प्रेम-माधुरी |
भक्ति भावना | |||
सामाजिक चेतना | श्रीधर पाठक | कश्मीर, शुषमा, वनाष्टक, | |
प्रकृति चित्रण एवं हास्य-व्यंग | प्रेमघन | वर्षा-बिन्दु | |
द्विवेदीयुगीन काव्य | यथार्थ प्रधान भाव | अयोध्यासिंह | प्रियप्रवास, वैदेही |
समाज-सुधार की भावना | चौपदे | ||
खड़ीबोली हिन्दी का प्रयोग | मैथिलीशरण गुप्त | साकेत, अनघ, यशोधरा, द्वापर | |
छायावादी काव्य | रहस्यवाद की प्रधानता | ||
मानवतावादी दृष्टिकोण | जयशंकर प्रसाद | झरना, लहर, आँसू, कामायनी आदि | |
राष्ट्रीयता एवं नारीत्व का महत्त्व | |||
प्रतीकात्मकता | महादेवी वर्मा | नीहार, नीरजा, सन्धिनी, सप्तपर्णा आदि | |
व्यक्तिवादी भाव एवं अतिशय भावुकता | |||
प्रगतिवादी काव्य | परम्परा का विरोध | सूर्यकांत त्रिपाठी निराला | जूही की कली, बेला |
शोषितों की दुर्दशा का वर्णन | |||
क्रांति की भावना | |||
मार्क्सवादी भाव की प्रधानता | रामधारी सिंह दिनकर | हुंकार, रेणुका, कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी, परशुराम की प्रतीक्षा आदि | |
सामाजिक विषमताओं का चित्रण | |||
प्रयोगवादी काव्य और नई कविता | घोर वैयक्तिकता | ||
अति यथार्थवादी दृष्टिकोण | अज्ञेय | आँगन के पार द्वार, हरी घास पर क्षणभर आदि | |
कुण्ठा और निराशा | |||
सामाजिक एवं नैतिक व्यस्था के प्रति विद्रोह एवं उपमानों तथा प्रतीकों की नवीनता | भवानी प्रसाद मिश्र | गीत फरोश |
महाकाव्य तथा खण्डकाव्य में अन्तर-
महाकाव्य एवं खण्डकाव्य में निम्नलिखित दृष्टियों से अन्तर होता है |
महाकाव्य | खण्डकाव्य |
महाकाव्य किसी लम्बे कथानक पर आधारित होता है। | जबकि खण्डकाव्य में जीवन के किसी विशेष प्रसंग अथवा घटना को चित्रित किया जाता है। |
महाकाव्य में अनेक पात्र होते हैं। | जबकि खण्डकाव्य सीमित पात्रों के चरित्र-चित्रण पर आधारित होता है। |
कथावस्तु की व्यापकता व महानता की दृष्टि से महाकाव्य नाटक और उपन्यास के समीप है। | जबकि खण्डकाव्य कहानी व एकांकी के अधिक निकट है। |
काव्य किसे कहते हैं? तथा पद्य (काव्य) से संबंधित सम्पूर्ण जानकारियाँ – Kavya Hindi— अगर आपको यह पोस्ट पसंद आया हो तो आप कृपया करके इसे अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें। अगर आपका कोई सवाल या सुझाव है तो आप नीचे दिए गए Comment Box में जरुर लिखे ।