मेजर ध्यानचंद का जीवन परिचय | Major Dhyan Chand Biography in Hindi

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इस आर्टिकल में हम मेजर ध्यानचंद का जीवन परिचय (major dhyan chand biography in hindi) पढेंगे, तो चलिए विस्तार से पढ़ते हैं मेजर ध्यानचंद पर संपूर्ण जानकारी | Major Dhyanchand Biography in Hindi.

“हॉकी के जादूगर” मेजर ध्यानचंद – मेजर ध्यानचन्द एक ऐसा नाम है जिसे दुनिया में भला कौन नहीं जानता | मेजर ध्यानचन्द एक ऐसे महान हॉकीजादूगर का नाम है जिस पर सारे दुनिया को गर्व है | हॉकी की दुनिया में इतिहास रचने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी ध्यानचन्द लाखोँ – करोड़ों लोगो के दिलो में राज करते है | वे अपने खेल में इतने माहिर थे कि उनकी तरह दूसरा कोई खिलाड़ी आज तक न कोई हुआ और शायद न कभी होगा।

मेजर ध्यानचंद का जीवन परिचय Major Dhyanchand Biography In Hindi

मेजर ध्यानचन्द (Major Dhyanchand Hockey Player) जी भारतीय फील्ड हॉकी के भूतपूर्व खिलाड़ी एवं कप्तान थे। भारत एवं विश्व में हॉकी के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों में उनकी गिनती होती है |

विषय-सूची

मेजर ध्यानचंद पर संपूर्ण जानकारी – Major Dhyan Chand ka Jivan Parichay

मूल / वास्तविक नामध्यानचन्द सिंह
पूरा नाम (full name of Dhyanchand)मेजर ध्यानचन्द
अन्य नाम / उपनामद विजार्ड, हॉकी विजार्ड, चाँद, हॉकी का जादूगर, गार्ड ऑफ हॉकी
जन्म ( Birthday)19 अगस्त 1905 ई०
जन्म – स्थान (Place of birth)इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश
गृहनगरझांसी, उत्तर प्रदेश (भारत)
राष्ट्रीयता (Nationality)भारतीय
धर्महिन्दू
जाति (caste)कुशवाहा (मौर्य)
ऊँचाई5 फिट 7 इंच (170 से०मी०)
भार70 किलोग्राम
पेशाभारतीय हॉकी खिलाडी
प्रसिध्दी /लोकप्रियताविश्व के सर्वेश्रेष्ठ हॉकी खिलाड़ी
खेलने का स्थानफॉरवर्ड
पिता का नामसूबेदार समेश्वरदत्तसिंह कुशवाहा (आर्मी में सूबेदार)
माता का नामशारदा सिंह कुशवाहा
पत्नी का नामजानकी देवी
भाईहवलदार मूलसिंह एवं हॉकी प्लेयर रूप सिंह
बहनतीन बहनें (नाम ज्ञात नहीं है)
ध्यानचन्द के बेटेबृजमोहन सिंह, सोहन सिंह, राजकुमार, अशोक कुमार
घरेलू /राज्य टीमझाँसी हीरोज
शिक्षाछठवीं कक्षा पास

मेजर ध्यानचंद का जीवन परिचय – Major Dhyan Chand Biography in Hindi

भारतीय हॉकी के सबसे दिग्गज खिलाड़ी मेजर ध्यानचन्द जी को सर्वकालिक सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों में से एक माना जाता है जिन्होंने भारत के लिए हॉकी खेला है | उनका जन्म एक कुशवाहा परिवार में हुआ था | उन्होंने भारत देश को लगातार तीन बार अंतर्राष्ट्रीय ओलम्पिक में स्वर्ण पदक दिलवाया था वे ओलम्पिक के स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम के सदस्य रहे (जिसमे 1928 का एम्स्टर्डम ओलम्पिक, 1932 का लाॅस एजेल्स ओलम्पिक एवं 1936 का बर्लिन ओलम्पिक ) उन्हें हॉकी का जादूगर भी कहा जाता है |

उनकी जन्म तिथि को भारत में ‘राष्ट्रीय खेल दिवस‘ के रूप में मनाया जाता है |उन्होंने अपने खेल जीवन में 1000 से अधिक गोल दागे | ध्यानचन्द जी को 1956 में भारत के प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान पदमभूषण से सम्मानित किया गया था | ध्यानचन्द ने अपना नाम खेल के इतिहास में ऐसे स्वर्ण अक्षरों में अंकित करवाया है कि जब भी कभी हॉकी पर चर्चा की जायेगी तो उनका नाम जरुर लिया जायेगा |

मेजर ध्यानचन्द सिंह कुशवाहा (मौर्य) को इस खेल में महारत हासिल थी और वो गेंद को अपने नियंत्रण में रखने में इतने निपुण थे कि वो ‘ हॉकी जादूगर’ और ‘द मैजिशियन’ जैसे नामो से प्रसिध्द हो गए |

मेजर ध्यानचन्द ओलम्पिक खेल (पदक प्राप्त) – Dhyanchand in Olympics

स्वर्ण पदक (Gold medal)1928 Amsterdam (Team)
स्वर्ण पदक (Gold medal)1932 Los Angeles (team)
स्वर्ण पदक (Gold medal)1936 berlin (team)
कोंच/मेटरसूवेदार – मेजर भोले /वाले तिवारी (पहले मेंटर)
पंकज गुप्ता (पहले कोच)
सर्विस / ब्रांडबिटिश इंडियन आर्मी एवं इंडियन आर्मी
सर्विस ईयर (Service Year)सन् 1922 – 1956 (भारतीय सेना)
ज्वाइंड आर्मीसिपाही ( सन् 1922 ई०)
आर्मी रिटायर्डमेजर ( सन् 1956 ई० )
भारत के लिए खेलेसन् 1926 से 1948 तक (भारतीय पुरुष हॉकी टीम)
मृत्यु3 दिसम्बर 1979 (74 वर्ष)
मृत्यु – स्थाननई दिल्ली , भारत
मृत्यु के कारणलीवर कैंसर

मेजर ध्यानचन्द का प्रारम्भिक जीवन

मेजर ध्यानचन्द का जन्म एक कुशवाहा परिवार में हुआ था | मेजर ध्यानचंद का वास्तविक नाम ध्यानसिंह था सामान्य बच्चों की तरह ही ध्यानचन्द का जीवन भी बहुत ही साधारण और सरलता से बीता था | पिता आर्मी में एक आम सूबेदार के पद पर कार्यरत थे बाल्यकाल में खिलाड़ीपन के कोई विशेष लक्षण दिखाई नही देते थे इसलिए कहा जा सकता है कि हॉकी के खेल की प्रतिभा इनमे जन्मजात नही थी बल्कि उन्होंने ने अपने सतत साधाना, अभ्यास,लगन, संघर्ष और संकल्प के सहारे यह प्रतिष्ठा अर्जित की थी |

‘हॉकी के जादूगर’ कहलाने वाले मेजर ध्यानचन्द को बचपन में हॉकी खेलने में कोई भी विशेष दिलचस्पी या रूचि नहीं थी | बिट्रिश हुकूमत के दौरान पिता समेश्वरदत्त सिंह कुशवाहा अपने परिवार का गुजारा अच्छी तरह से कर लेते थे |ध्यानचन्द जी का परिवार आर्थिक रूप से स्थिर था | ध्यानचन्द जी बचपन से ही शर्मीले स्वभाव के थे | जिससे वो सभी लोगो में जल्दी घुल – मिल नही पाते है | बचपन में हॉकी खेलने के प्रति उनका कोई विशेष लगाव नहीं था और उन्होंने कभी भी हॉकी खेलने के बारे में सोचा भी नहीं था |

इससे यह बात पता लगती है कि कोई भी व्यक्ति जन्मजात सफल नहीं होता है बल्कि उसे अपनी मेनहत और लगन से ही सफलता प्राप्त होती है इस प्रकार मेजर ध्यानचन्द जी कड़ी मेनहत और लगन ने मेजर ध्यानचंद जी को ‘ हॉकी का भगवान ‘ बना दिया | जिसके कारण आज वे न केवल भारत में वरन् विश्व में भी ‘ गार्ड ऑफ हॉकी ‘ के नाम से विख्यात है | भारत के महान हॉकी प्लयेर मेजर ध्यानचन्द जी ने अपने बल, बुद्धि, परिश्रम तथा अपनी विशिष्ठ क्षमताओं से देश तथा समाज को एक नई दिशा प्रदान की है |

जन्म – स्थान

हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचन्द का जन्म बिटिश इंडिया में 29 अगस्त 1905 ई० में उत्तर प्रदेश में ‘इलाहाबाद (प्रयागराज)’ में हुआ था | इलाहाबाद का वर्तमान नाम प्रयागराज है |

माता – पिता

भारत के महान हॉकी प्लयेर ध्यानचंद जी के पिता का नाम समेश्वर सिंह कुशवाहा था | इनके पिता समेश्वर सिंह कुशवाहा ब्रिटिश इंडिया आर्मी में एक सूबेदार के रूप में कार्यरत थे साथ ही हॉकी गेम भी खेला करते थे | तथा माता का नाम शारदा सिंह कुशवाहा था जोकि एक गृहिणी थी |

भाई – बहन

मेजर ध्यानचन्द जी के दो भाई तथा तीन बहने भी थी | मेजर ध्यानचन्द जी के दो भाई मूल सिंह और रूप सिंह कुशवाहा थे | भाई मूल सिंह कुशवाहा एक हवलदार एवं भाई रूप सिंह कुशवाहा जी एक हॉकी प्लेयर थे।

मेजर ध्यानचन्द की शिक्षा

मेजर ध्यानचन्द जी की प्रारम्भिक शिक्षा झाँसी में हुई, क्योंकि मेजर ध्यानचन्द जी के पिता एक सूबेदार की नौकरी करते थे जिसके कारण उन्हें अपना कार्य स्थल समय-समय पर बदलना पड़ता था। हर बार किसी नयी जगह उनका तबादला होता ही रहता था। बचपन से ही मेजर ध्यानचन्द जी का पढ़ाई के प्रति लगाव कम था जिसके कारण उनके पिता परेशान रहते थे और भविष्य में अच्छे पद पर नौकरी पाने के लिए मेजर ध्यानचन्द जी को पढ़ने लिखने के लिए प्रेरित करते रहते थे।

किन्तु मेजर ध्यानचन्द जी बचपन से ही जिद्दी थे। जो ठान लिया वही करते थे। मैट्रिक्स कक्षा उत्तीर्ण करने के पहले ही ध्यानचन्द जी ने पढ़ायी लिखायी छोड़ दी। पढ़ायी लिखायी छोड़ने के बाद 1922 ई. में ध्यान चन्द जी दिल्ली में प्रथम ब्राह्मण रिजीमेन्ट 16 वर्ष की आयु में एक साधारण सिपाही के पद पर भर्ती किये गये। जब वे सेना के साधारण पद पर नियुक्त हुए, तब उन्हें हॉकी के बारे में कुछ भी ज्ञान नहीं था।

मेजर ध्यानचन्द जी के पहले गुरु / शिक्षक कौन थे?

साधारण शिक्षा प्राप्त करने के बाद 16 वर्ष की अवस्था में वर्ष 1922 ई. में दिल्ली में प्रथम ब्राह्मण रिजीमेंट में सेना में एक साधारण सिपाही की हैसियत से भर्ती हो गये और यहीं से उनके जादूगर बनने का सफ़र शुरु हुआ, जब ये ब्राह्मण रिजीमेन्ट में थे उस समय मेजर बले तिवारी जी जो हॉकी के शौकीन थे।

उन्होंने ही मेजर ध्यानचन्द जी को हॉकी का प्रथम पाठ सिखाया। मेजर ध्यानचन्द जी को हॉकी खेलने के लिए प्रेरित करने का श्रेय रिजीमेन्ट के एक सूबेदार मेजर भोले/बले तिवारी को है। जो कि मेजर ध्यानचन्द जी के पहले गुरू/शिक्षक भी थे।

मेजर ध्यानचंद को हॉकी का जादूगर क्यों कहा जाता है

मेजर ध्यानचन्द जी को फुटबाल में पेले और क्रिकेट में ब्राडमैन के समतुल्य माना जाता है। जिस प्रकार क्रिकेट में सचिन तेंदुलकर को भगवान माना जाता है। ठीक उसी प्रकार हॉकी में मेजर ध्यानचन्द जी को भगवान कहा जाता है मेजर ध्यानचन्द जी हॉकी के सुप्रसिद्ध खिलाड़ी थे।

उन्होंने अपने ओलम्पिक खेलों में अपनी हॉकी स्टिक से इस प्रकार से गोल किये थे कि लोग कहते थे कि वह हॉकी नहीं खेलते बल्कि उनके खेलों में ऐसा जादू है कि वे स्टिक पर गेंद आते ही गोल कर देते थे उनकी इन्हीं चमत्कारों के कारण ही उन्हें हॉकी का जादूगर कहा जाता है। पहले मैच (First Match) में 3 गोल, ओलम्पिक में 35 गोल, अन्तर्राष्ट्रीय ओलम्पिक में 400 गोल. कुल मिलाकर लगभग 1000 से ज्यादा गोलों का आंकड़ा मेजर ध्यानचन्द जी को हॉकी का जादूगर कहलाने के लिए काफी है। हॉकी का ऐसा महान खिलाड़ी इनके बाद न कोई हुआ और शायद न कभी होगा।

ध्यान सिंह का नाम मेजर ध्यानचन्द सिंह कैसे पड़ा और यह नाम उन्हें किसने प्रदान किया

इनका असली नाम ध्यान सिहं था। सूबेदार मेजर भोले/बले तिवारी जो पहले ब्राह्मण रेजीमेन्ट से थे वे आर्मी में मेजर ध्यानचन्द जी के मेंटर बने और उन्हें खेल के बारे में बेसिक ज्ञान दिया। क्योंकि सेना में कार्य के दौरान मेजर ध्यानचन्द जी को समय नहीं मिलता था, इसलिए उन्हें अपनी ड्यूटी के बाद चाँदनी रातों में मेजर तिवारी के साथ हॉकी का अभ्यास करते थे। पंकज गुप्ता (कोच) ने, मेजर ध्यानचन्द जी के खेल को देखकर यह कह दिया था

कि यह एक दिन पूरी दुनिया में चाँद की तरह चमकेगा। उन्होंने ही मेजर ध्यानचन्द जी को चन्द नाम दिया था। इसके बाद उनके करीबी दोस्तों ने भी उन्हें चाँदनी रात में प्रैक्टिस करने के कारण चन्द के नाम से पुकारना शुरु कर दिया। इस प्रकार इनका नाम मेजर ध्यानचन्द सिंह कुशवाहा पड़ा। ध्यान सिंह चाँदनी रात में अपनी हॉकी का अभ्यास करते थे, जिसके कारण उन्हें ध्यानचन्द नाम दिया गया।

मेजर ध्यानचन्द का वैवाहिक जीवन

वर्ष 1936 ई. में मेजर ध्यानचन्द का विवाह जानकी देवी के साथ हुआ था। मेजर ध्यानचन्द जी का वैवाहिक जीवन सुखमय था।

मेजर ध्यानचंद जी के बच्चे

मेजर ध्यानचन्द जी के बेटों का नाम ब्रज मोहन सिंह कुशवाहा, सोहन सिंह कुशवाहा, राज कुमार कुशवाहा और अशोक कुमार कुशवाहा था। इनके पुत्र अशोक कुमार कुशवाहा एक हॉकी प्लेयर हैं।

मेजर ध्यानचंद सिंह जी एक साधारण सिपाही से मेजर कैसे बने

ब्रिटिश भारतीय की रेजीमेन्टल टीम के साथ अपने हॉकी कैरियर की शुरुआत करते हुए युवा ध्यानचन्द जी एक विशेष प्रतिभा थे। लेकिन जिस चीज ने उन्हें आगे पहुँचाया, वो था उनका हॉकी के प्रति समर्पण। ध्यानचन्द को हॉकी खेलने के लिए प्रेरित करने का रेजीमेन्ट के सूबेदार मेजर तिवारी को हैं। मेजर तिवारी स्वयं हॉकी के प्रेमी और खिलाड़ी थे। उनकी देखरेख में ध्यानचन्द हॉकी खेलने लगे देखते ही देखते वह दुनिया एक महान खिलाड़ी बन गये।

सन् 1927 ई. में लाॅस नायक बना दिये गये। सन् 1932 ई. लाॅस एल्जिस जाने पर नायक नियुक्त हुए। सन् 1937 ई. में जब भारतीय दल के कप्तान थे, तो उन्हें वर्ष 1938 ई. में वायसराय का कमीशन मिला। और वे सूबेदार बन गये। उसके बाद एक के बाद एक दूसरे सूबेदार लेफ्टिनेन्ट और कप्तान बनते चले गये। जब द्वितीय विश्व युद्ध प्रारम्भ हुआ, तो सन् 1943 ई. में लेफ्टिनेन्ट नियुक्त हुए। और भारत के स्वतंत्र होने पर सन् 1948 ई. में कप्तान बना दिये गये। केवल हॉकी के खेल के कारण ही सेना में उनकी पदोन्नति होती गयी।

इस प्रकार जैसे-जैसे वे हॉकी में सफलता की ऊँचाईयों को छूते गये, वैसे-वैसे ही उन्हें सूबेदार, लेफ्टिनेन्ट और कैप्टन का पद बेहद आसानी से प्राप्त होता गया। और बाद में ध्यानचन्द सिंह कुशवाहा जी की काबिलियत को देखते हुए उन्हें मेजर पद पर नियुक्त कर दिया गया।

मेजर ध्यानचंद को हॉकी का जादूगर की उपाधि किसने दी

मेजर ध्यानचन्द को द विजार्ड (The wizard of Hokey) हॉकी का जादूगर की उपाधि जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर ने दिया था। मेजर ध्यानचन्द सिंह को इस खेल में महारथ हासिल थी। और वो गेंद को अपने नियंत्रण में रखने में इतने निपुड़ थे, कि वो हॉकी जादूगर और The Magician जैसे नामों से प्रसिद्ध हो गये।

मेजर ध्यानचंद का हॉकी करियर

सौभाग्य से मेजर ध्यानचन्द को सूबेदार मेजर तिवारी का साथ मिला। मेजर तिवारी केवल हॉकी के प्रति रुचि ही नहीं रखते थे, बल्कि एक अच्छे हॉकी खिलाड़ी भी थे। मेजर तिवारी से मुलाकात के बाद ध्यानचन्द अब धीरे-धीरे इस मजेदार खेल हॉकी में दिलचस्पी लेने लगे और इस प्रकार मेजर ध्यानचन्द ने हॉकी को अपने जीवन का हिस्सा बना लिया तथा लगातार संघर्षों से नयी उपलब्धियाँ प्राप्त करते गये। अपने संघर्षों से ध्यानचन्द जी कब इस दुनिया के बेहतरीन हॉकी के खिलाड़ी बन गये, पता भी नहीं लगा। मेजर ध्यानचन्द जी के विषय में ऐसा कहा जाता है कि जब वो मैदान में उतरते, तो विरोधी दल के खिलाड़ियों की हृदय की धड़कने तेज हो जाती थी।

मेजर ध्यानचन्द सिंह कुशवाहा जी को हॉकी का जादूगर यूँ ही नहीं कहा जाता है, बल्कि उन्होंने हॉकी की दुनिया में ऐसे दाव-पेच खेले हैं जिन्हें आम खिलाड़ी एक जादूगर की तरह देखते हैं। ध्यानचन्द ने तत्कालीन ब्रिटिश भारतीय सेना के साथ अपने कार्यकाल के दौरान हॉकी खेलना शुरु किया। और 1922 ई. से 1926 ई. के बीच उन्होंने कई सेना और रेजीमेन्टल खेलों में भाग लिया था।

कहा जाता है कि जब मेजर ध्यानचन्द जी हॉकी खेलते थे तो गेंद इस कदर उनकी स्टिक से चिपके रहती थी कि प्रतिद्वंदी खिलाड़ी को अक्सर आशंका होती थी कि वह जादुई स्टिक से खेल रहे हैं। यहाँ हालैण्ड में उनकी हॉकी स्टिक में चुम्बक होने की आशंका में उनकी स्टिक तोड़ कर देखी गयी। जापान में ध्यानचन्द की हॉकी स्टिक से जिस प्रकार गेंद चिपकी रहती थी उसे देखकर उनकी स्टिक में गोंद लगी होने की बात कही गयी।

लेकिन दोनों की बातें गलत साबित हुयीं। इस प्रकार मेजर ध्यानचन्द सिंह कुशवाहा जी की हॉकी की कलाकारी के जितने किस्से हैं उतने शायद ही दुनिया के किसी अन्य खिलाड़ी के बारे में सुने गये हों। सन् 1922 ई. से सन् 1926 ई. सेना की प्रतियोगिताओं में हॉकी खेला करते थे। दिल्ली में हुई वार्षिक प्रतियोगिता में जब इन्हें सराहा गया तो इनका हौसला और बढ़ा। 13 मई, सन् 1926 ई. को न्यूजीलैण्ड में पहला मैच खेला था।

न्यूजीलैण्ड में 21 मैच खेले, जिनमें 3 टेस्ट मैच भी थे। इन 21 मैचों में 18 जीते, 2 मैच अनिर्णित रहे और एक में हारे। पूरे में 192 गोल बनाये। उन पर कुल 24 गोल ही हुए। 27 मई सन् 1932 ई. को श्रीलंका में 2 मैच खेले। एक मैच 21-0 तथा दूसरे 10-0 से विजयी हुए। सन् 1935 ई. में भारतीय हॉकी दल के न्यूजीलैण्ड के दौरे पर इनके दल ने 49 मैज खेले, जिनमें से 48 मैच और एक वर्षा के कारण स्थागित हो गया। टीम की कमान सँभालते हुए ध्यानचन्द ने फाइनल मुकाबले में 3 गोल किये, भले ही विपक्षी टीम ने उन्हें रोकने के लिए किसी-भी रणनीति का सहारा लिया हो। लेकिन ध्यानचन्द जी को रोकना नामुन्किन साबित हुआ।

मैदान पर अपनी गति बढ़ाने के लिए उऩ्होंने मैच के दूसरे हॉफ में नंगे पैर खेला। लास एन्जिलिश खेलों में भारतीय टीम की कमान उन्हें सौपी गयी। अपने कप्तान से प्रेरित होकर भारतीय टीम ने अपना वर्चस्व कायम रखा। और फाइनल में मेज़बान जर्मनी को 8-1 से हराकर स्वर्ण पदक पर कब्जा किया। इस बार भी भारत अजेय रही। अन्तर्राष्ट्रीय मैचों में उन्होंने 400 से अधिक गोल किये। अप्रैल 1949 ई. को प्रथम कोटि की हॉकी से मेजर ध्यानचन्द जी ने संन्यास ले लिया।

मेजर ध्यानचंद का ओलम्पिक तक का सफर

दूसरे विश्व युद्ध से पहले के वर्षों में हॉकी के खेल पर अपना वर्चस्व कायम करने वाली भारतीय हॉकी टीम के स्टार खिलाड़ी मेजर ध्यानचन्द सिंह कुशवाहा एक महत्त्वपूर्ण खिलाड़ी थे। जिन्होंने 1928, 1932 और 1936 में भारत को ओलम्पिक खेलों में लगातार तीन स्वर्ण पदक जिताने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

ओलम्पिक खेल:

  1. एम्सटर्डम (1928ई.) ओलम्पिक|
  2. लांस एंजिल्स (1932ई.) ओलम्पिक।
  3. बर्लिन (1936) ओलम्पिक।

एम्सटर्डम ओलम्पिक (1928)

सन -1928 में एम्सटर्डम ओलम्पिक खेलों में पहली बार भारतीय टीम ने भाग लिया | एम्सटर्डम में खेलने से पहले भारतीय टीम ने इंग्लैण्ड में 11 मैच खेले और वहाँ मेजर ध्यानचन्द जी को विशेष सफलता प्राप्त हुई । एम्सटर्डम में भारतीय टीम पहले सभी मुकाबले जीत गई।

17 मई सन् 1928 ई० को आट्रिया को 6-0 ,18 मई को बेल्जियम को 9-0, 20 मई को डेनमार्क को 5-0, 22 मई को स्विट्जरलैण्ड को 6-0, तथा 26 मई को फाइनल मैच मे हालैण्ड को 3-0 से हराकर विश्व भर में हाॅकी के चैंपियन घोषित किए गए। और 29 मई पदक प्रदान किया गया। फाइनल में दो गोल मेजर ध्यानचन्द जी ने किए।

लांस एंजिल्स (1932ई.) ओलम्पिक

सन् 1932ई. में लास एंजिल्स में हुई ओलम्पिक प्रतियोगिताओं में भी ध्यानचन्द जी को टीम में शामिल कर लिया गया | उस समय सेंटर फॉरवर्ड के रूप में काफी सफलता और शोहरत प्राप्त कर चुके थे। तब सेना में मेजर ध्यानचन्द जी लैस-नायक’के बाद नायक बन गये।

इस दौरे के दौरान भारत ने काफी मैच खेले । इस सारी यात्रा मे ध्यानचन्द ने 262 मे से 101 गोल स्वंय किये । निर्णायक मैच मे भारत ने अमेरिका को 24-1 से हराया था। तब एक अमेरिका समाचार पत्र ने लिखा था कि भारतीय हॉकी टीम तो पूर्व से आया तूफान था। उसने अपने वेग से अमेरिकी टीम के ग्यारह खिलाड़ियों को कुचल दिया।

बर्लिन (1936ई.) ओलम्पिक

सन 1936 ई० बर्लिनओलम्पिक खेलो मे ध्यानचन्द जी को भारतीय टीम का कप्तान चुना गया । इस पर उन्होंने आश्चर्य प्रकट करते हुए कहा – मुझे जरा भी आशा नहीं थी कि मैं कप्तान चुना जाऊँगा। फिर भी उन्होंने अपने इस दायित्व को बड़ी ईमानदारी के साथ निभाया। अपने जीवन का अविस्मरणीय संस्मरण सुनाते हुए वह कहते है कि 17 जुलाई के दिन जर्मन टीम के साथ हमारे अभ्यास के लिए एक प्रदर्शनी मैच का आयोजन हुआ ।

यह मैच बर्लिन में खेला गया।हम इसमें चार के बदले में एक गोल से हार गए। इस हार से मुझे जो धक्का लगा उसे मैं अपने जीते-जी नहीं भुला सकता।जर्मनी की टीम की प्रगति देखकर हम सब आश्चर्य चकित रह गए और हमारे कुछ साथियों को तो भोजन भी अच्छा नहीं लगा। बहुत से साथियो को तो रात में नींद भी नहीं आयी। 5 अगस्त के दिन भारत का हंगरी के साथ ओलम्पिक का पहला मुकाबला हुआ, जिसमे भारतीय टीम ने हंगरी को 4 गोलों से हरा दिया। दूसरे मैच में, जो कि 7 अगस्त को खेला गया, भारतीय टीम ने जापान को 9-0 से हराया और उसके बाद 12 अगस्त को फ्रांस को 10 गोलो से हराया |

15 अगस्त के दिन भारत और जर्मन की टीमों के बीच फाइनल मुकाबला था । यद्यपि यह मुकाबला 14 अगस्त को खेला जाने वाला था पर उस दिन इतनी बारिश हुई कि मैदान में पानी भर गया और खेल को एक दिन के लिए स्थागित कर दिया गया | अभ्यास के दौरान जर्मनी की टीम ने भारत को हराया था, यह बात सभी के मन में बुरी तरह घर कर गई थी | फिर गीले मैदान और प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण हमारे खिलाड़ी और भी निराश हो गए थे।

तभी भारतीय टीम के मैनेजर पंकज गुप्ता को एक युक्ति सूझी। वह खिलाड़ियों को डेसिंग रूप में ले गए और सहसा उन्होंने तिरंगा झण्डा हमारे सामने रखा और कहा कि इसकी लाज अब तुम्हारे हाथ में है। सभी खिलाडियों ने श्रद्धापूर्वक तिरंगे को सलाम किया और वीर सैनिक की तरह मैदान में उतर पड़े। भारतीय खिलाड़ियों ने अपने जूते उतारकर नंगे पाँव ही जमकर खेले और जर्मन की टीम को 8-1 से हरा दिया। उस दिन सचमुच तिरंगे की लाज रह गई। उस समय कौन जानता था कि 15 अगस्त को भारत देश आजाद होगा और पूरे देश में इसी दिन स्वतन्त्रता दिवस मनाया जायेगा।

मेजर ध्यानचंद की आत्मकथा

मेजर ध्यानचन्द जी के आत्मकथा का नाम “गोल” है। अपने जीवनकाल में अभूतपूर्व उपलब्धियां प्राप्त करने के बाद भी इस महान व्यक्त्वि अपनी आत्मकथा गोल में लिखा है। ‘आपको मालूम होना चाहिए कि मैं बहुत साधारण आदमी हूँ।’ हॉकी ही नहीं खेलों के इतिहास में भी ध्यानचन्द जी का नाम सदैव स्मरणीय रहेगा।

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राष्ट्रीय खेल दिवस

भारत सरकार ने इस महान खिलाड़ी को सम्मानित करते हुए मेजर ध्यानचन्द के जन्मदिन 29 अगस्त‘ को ‘राष्ट्रीय खेल दिवस‘ के रूप में मनाने का फैसला लिया। उन्हे भारत सरकार द्वारा 1956 ई० में ‘पद्मभूषण सम्मान‘ से सम्मानित किया गया है राष्ट्रीय खेल दिवस को राष्ट्रीय स्तर पर भी बड़े तौर पर मनाया जाता है।

इसका आयोजन प्रतिवर्ष राष्ट्रपति भवन में किया जाता है। राष्ट्रीय खेल दिवस के दिन भारत के राष्ट्रपति देश के खेल में अच्छा प्रदर्शन करने वाले खिलाडियों को राष्ट्रीय खेल पुरस्कार’प्रदान करते है। नेशनल स्पोर्टस अवार्ड के अन्तर्गत अनेक पुरस्कार आते है जो निम्न है— अर्जुन अवार्ड, राजीव अवार्ड, द्रोणाचार्य आवार्ड जैसे कई पुरस्कार देकर खिलाड़ियों को सम्मानित किया जाता है। इन सभी सम्मानों के साथ ही मेजर ध्यानचन्द अवार्ड भी इसी दिन प्रदान किया जाता है।


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मेजर ध्यानचन्द का अन्तिम दिन अथवा मृत्यु

मेजर ध्यानचन्द जी का व्यक्तित्व कुछ ऐसा तेजस्वी एवं प्रभावशाली था कि कोई भी व्यक्ति उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रहा।भारत को इतना सम्मान दिलाने के बाद मेजर ध्यानचन्द जी ने हाॅकी से सन्यास लिया था। कुछ समय से ध्यानचन्दजी की तबियत ठीक नहीं रहती थी वे कैंसर की बीमारी से पीड़ित थे। कई बार तो उनका स्वास्थ्य इतना खराब हो जाता था कि उन्हें हास्पिटल में एडमिट करना पड़ता था। सबसे बड़े दुःख की बात तो यह है कि दुनिया के सबसे महान हाकी प्लेयर मेजर ध्यानचन्द जी जब दिल्ली एम्स अस्पाताल में अपने अखिरी वक्त में वे कैंसर से बुरी तरह जूझ रहे थे तो उनके पास इलाज के लिए भी पर्याप्त पैसे नहीं थे।

आखिर वह दुखद दिन आया जब 74 वर्ष की उम्र में अद्भुत व्यक्तित्व के प्रकाश पुरुष मेजर ध्यानचन्द जी ने 3 दिसम्बर सन 1989 ई. को “नई दिल्ली में अपने प्राण त्याग दिये । अपने चाहेते ध्यानचन्द जी के ऐसे स्वर्गवास होने के कारण सभी भारतवासी बहुत दुखी थे | 3 दिसम्बर 1979 को इस हाकी के जादूगर का निधन हो गया। लीवर कैंसर के शिकार होने वाले मेजर ध्यानचन्द जी हमेशा सबसे महान हॉकी खिलाडियो में से एक के रूप में याद किए जाएंगे “अपने विचारों के साथ वे सदैव हमारे बीच है, और रहेंगे

मेजर ध्यानचंद को प्राप्त सम्मान एवं पुरस्कार

अपने जीवन – काल में मेजर ध्यानचन्द जी ने जितने भी खेलों में सफलता प्राप्त की थी उन्होंने इन सबका श्रेय अपनी मातृभूमि भारत को दिया था है। कई बार तो ऐसा मान लिया जाता था कि मेजर ध्यानचन्द जी मैदान में खेलने के लिए उतरते है तो उनके टीम की जीत पक्की हो जाती थी। जब मेजर को ध्यानचन्द जी ने ओलम्पिक खेलों में भारत को कई पुरस्कारों से सुसज्जित किया था,तो वह पल सभी भारतवासियों के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण था। भारतीय युग पुरुष हॉकी टीम के कप्तान रह चुके ध्यानचन्द की जी ने प्रत्येक तीन में से दो मैच जीत कर अपने नाम किया लिया है वे ओलम्पिक स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले भारतीय हाकी खिलाड़ी थे।

ध्यानचन्द 34 साल की सर्विस के बाद अगस्त 1956 में भारतीय सेना से लेफ्टिनेण्ट के रूप में रिटायर्ड हुए और इसके बाद उन्हें भारत के तीसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पदम भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया | उनके जन्म दिन को भारत का राष्ट्रीय खेल दिवस’ घोषित किया गया है। हाल ही में भारतीय जनता पार्टी की सरकार में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने खेल के सबसे बड़े पुरस्कार राजीव गांधी खेल पुरस्कार का नाम बदलकर मेजर ध्यानचन्द खेल रत्न अवार्ड के नाम पर कर दिया. इसके अलावा ध्यानचन्द को खेल के जगत का युगपुरूष भी कहा गया है।

1919 में मेजर ध्यानचन्द की मृत्यु के बाद भारतीय डाक विभाग ने इनके सम्मान में स्टाम्प भी जारी किये थे। दिल्ली के राष्ट्रीय स्टेडियम का नाम भी बदलकर मेजर ध्यानचन्द जी के नाम पर रखा गया और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गयी। दोणाचार्य अवार्ड और राष्ट्रीय अर्जुन पुरस्कार से भी मेजर ध्यानचन्द जी को सम्मानित किया जा चुका है। यह दुःख की बात है कि अब तक हाॅकी के अद्वितीय खिलाड़ी ध्यानचन्द जी को भारत का सर्वोच्च पुरस्कार” भारत रत्न’ नहीं दिया गया। फिलहाल ध्यानचन्द को भारत रत्न देने की मांग भी की जा रही है । भारत रत्न’ को लेकर ध्यानचन्द जी के नाम पर अब भी विवाद जारी है।

Mejar Dhyanchand Puraskar – मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार

6 अगस्त 2021 को भारतीय जनता पार्टी की सरकार में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने खेल के सबसे बड़े पुरस्कार राजीव गांधी खेल पुरस्कार का नाम बदलकर मेजर ध्यान चंद खेल रत्न पुरस्कार (Major Dhyan Chand Khel Ratna Award) के नाम पर कर दिया |

मेजर ध्यानचन्द का खेल के क्षेत्र में महान योगदान अथवा खेल के क्षेत्र में स्थान

राष्ट्रीय एकता, धार्मिक सहिष्णुता तथा देश – प्रेम का अनूठा आदर्श प्रस्तुत करने वाले एक यशस्वी एवं साहसी खिलाड़ी मेजर ध्यानचन्द जी को खेल इतिहास के क्षेत्र में उच्चकोटि का स्थान प्राप्त है। मेजर ध्यानचन्द जी अपने संघर्ष के बल जीवन में तेजी से आगे बढ़े और विभिन्न इंटर- आर्मी मैचों के साथ अपनी टीमों की मदद करने लगे और जल्द ही 1928 के ओलम्पिक के लिए भारतीय टीम में शामिल गये। उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर कभी नहीं दिखा और हॉकी के कमाल से दुनिया पर राज किया,जिसने उन्हें हाकी जादूगर और द मैजिशियन बना दिया।

पूर्व ओलम्पिक गुरुबक्ष सिंह ने rediff. com को बताया,ध्यानचन्द की हॉकी में वैसी ही निपुणता था, जैसी डोनाल्ड ब्रैडमैन की क्रिकेट में थी | हॉकी के इस दिग्गज का करियर 1926 ई० से, 1948 ई.तक चला और भारत के लिए 185 मैचों का प्रतिनिधित्व करने के बाद सबसे महान हाकी खिलाड़ियों में से एक बनकर उन्होंने अपने करियर को अन्जाम दिया |

मेजर ध्यानचन्द ने भारत को तीन स्वर्ण पदक दिला दिलाया है और ओलम्पिक खेलों में भी उन्होंने भारत का तिरंगा पूरी दुनिया में लहराया था जब एम्सटर्डम ओलम्पिक मे सन 1928 ई. में भारतीय टीम ने पहली बार हॉकी के खेल में हिस्सा लिया था, तो वहाँ भी मेजर ध्यानचन्द जी ने 11 मैच खेले थे और सफलता प्राप्त करके भारत को सफलता दिलाई।आस्ट्रिया, बेल्जियम , डेनमार्क, स्विटजरलैंड, हॉलैंड लॉस एंजिल्स बर्लिन और जापान जैसे न जाने कितने बड़े देशों में भी मेजर ध्यानचन्द जी ने भारत का तिरंगा (झण्डा) खड़ा किया था।

भारतीय होने के नाते उन्होंने गुलामी के समय में भी हिन्दुस्तानियों की एक नई पहचान और दिशा दिया था। इस प्रकार अन्तरिक्ष में विलीन होकर भी वह भारत देश का महान बेटा सारे देशवासियों के हृदय मे बस गया।

हॉकी के जादूगर’ के रूप में प्रसिद्ध मेजर ध्यानचन्द सिंह कुशवाहा जी ने अपने निराले व्यक्तित्व से खेल जगत को जो निराला पथ दिखाया,निराला रूप दिया और निराली दिशा प्रदान की | उसके लिए सम्पूर्ण खेल जगत अपनी इस निराली विभूति को कभी विस्तृत न कर सकेगा ।

मेजर ध्यानचन्द द्वारा बनाये गये रिकार्ड्स

  • उन्होने अपने करियर में लगभग 1000 गोल किए है। जिनमें से 400 गोल अन्तर्राष्ट्रीय मैचों में थे। मेजर ध्यानचन्द जी के नाम 3 ओलम्पिक स्वर्ण पदक हैं
  • मेजर ध्यानचन्द जी 1928 ई. के एम्स्टर्डम ओलम्पिक में 14 गोल के साथ तथा 1932 ई. के लास एंजिल्स में 262 में से 101 गोल स्वयं किये और 1936 ई. के बर्लिन ओलम्पिक में भी गोल करने वाले मुख्य खिलाड़ी थे।
  • सन् 1935 ई. न्यूजीलैंड और आस्ट्रेलिया के दौरे में ध्यानचन्द जी ने केवल 43 मैचों में 201 गोल किये, जो सचमुच एक विश्व रिकार्ड है।

मेजर ध्यानचंद को प्राप्त अवार्ड अथवा उपाधि

  • मेजर ध्यानचन्द जी की असाधारण सेवाओं के लिए भारत सरकार ने ध्यानचन्द जी के जन्मदिन (29 अगस्त) को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में 2012 ई. से प्रतिवर्ष मनाने का फैसला लिया।
  • भारतीय डाक सेवा द्वारा उनकी स्मृति में एक डाक टिकट जारी किया।
  • दिल्ली में स्थित ध्यानचन्द नेशनल स्टेडियम का नाम भी इनके नाम पर रखा गया है जहाँ हॉकी के खेल करवाए जाते हैं।
  • मेजर ध्यानचन्द जी की अनेक उपाधियों जैसे- द विजार्ड, हॉकी विजार्ड, चाँद, हॉकी का जादूगर आदि उपाधियों से सम्मानित किया गया था।
  • मेजर ध्यानचन्द जी ने खेल जगत के क्षेत्र में अपना असाधारण योगदान दिया, इसलिए मेजर ध्यानचन्द जी का नाम खेल-जगत के क्षेत्र में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाता है।

मेरे देश की जिम्मेदारी नहीं है मुझे आगे बढ़ाने की, ये मेरी जिम्मेदारी है, अपने देश को आगे बढ़ाने की…. मेजर ध्यानचंद

नोट: सन् 1979 में मेजर ध्यानचंद की मृत्यु के बाद भारतीय डाक विभाग ने उनके सम्मान में स्टांप भी जारी किया था।

FAQs – Major Dhyan Chand Questions and Answers Solutions in Hindi

मेजर ध्यानचन्द जी के जीवन से सम्बन्धित महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तरः-

Q. मेजर ध्यानचन्द जी का जन्म कब हुआ था?

Ans. मेजर ध्यानचन्द जी का जन्म 29 अगस्त. सन् 1905 ई. में हुआ था।

Q. मेजर ध्यानचन्द जी का जन्म कहाँ हुआ था ?

Ans. मेजर ध्यानचन्द जी का जन्म उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में हुआ था, इलाहाबाद का वर्तमान नाम प्रयागराज है।

Q. भारत का राष्ट्रीय खेल दिवस कब मनाया जाता है ?

Ans. 29 अगस्त को ।

Q. राष्ट्रीय खेल दिवस की शुरुआत कब हुई ?

Ans. राष्ट्रीय खेल दिवस को 2012 ई. में पहली बार भारत में उत्सव की सूची में समिल किया गया है।

Q. राष्ट्रीय खेल दिवस किसके जन्म दिन पर मनाया जाता है ?

Ans. हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचन्द कुशवाहा जी के जन्म दिन पर मनाया जाता है।

Q. हम राष्ट्रीय खेल दिवस क्यों मनाते है? तथा राष्ट्रीय खेल दिवस के दिन कौन-कौन से पुरस्कार और किसके द्वारा प्रदान किये जाते हैं?

Ans. राष्ट्रीय खेल दिवस हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचन्द की जयन्ती के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। हरियाणा, पंजाब और कर्नाटक जैसे राज्यों में जीवन में शारीरिक गतिविधियों और खेलों के महत्व के बारे में जागरुगता फैलाने के उद्देश्य से विभिन्न खेल प्रतियोगिताओं और सेमिनार आयोजिक किये जाते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं राष्ट्रीय खेल दिवस एक ऐसा अवसर है, जब देश के प्रतिभाशाली खिलाड़ियों अथवा एथिलिटों को राजीव गाँधी खेल रत्न, अर्जुन पुरस्कार, ध्यानचन्द पुरस्कार और द्रोणाचार्य पुरस्कार जैसी मान्यताओं से सम्मानित किया जाता है। इस दिन राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक विशेष समारोह में भारत के राष्ट्रपति इन पुरस्कारों को देते हैं।

Q. मेजर ध्यानचन्द जी के पिता का नाम क्या था?

Ans. मेजर ध्यानचन्द जी के पिता का नाम समेश्वर सिंह कुशवाहा था। जो ब्रिटिश इंडियन आर्मी में एक सूबेदार के पद पर कार्य करते थे।

Q. मेजर ध्यानचन्द जी की माता का नाम क्या था?

Ans. मेजर ध्यानचन्द जी की माता का नाम शारदा सिंह कुशवाहा था।

Q. मेजर ध्यानचन्द जी के भाई का नाम क्या था? और वे क्या करते थे?

Ans. मेजर ध्यानचन्द जी के दो भाई थे। मूलसिंह कुशवाहा और रूपसिंह कुशवाहा । भाई मूलसिंह कुशवाहा जी एक हवलदार और भाई रूपसिंह कुशवाहा जी एक हॉकी प्लेयर थे।

Q. मेजर ध्यानचन्द जी का विवाह कब हुआ था?

Ans. मेजर ध्यानचन्द जी का विवाह 1936 ई. में हुआ था।

Q. मेजर ध्यानचन्द जी का विवाह किसके साथ हुआ था?

Ans. मेजर ध्यानचन्द जी का विवाह जानकी देवी के साथ हुआ था।

Q. मेजर ध्यानचन्द जी की पत्नी का नाम क्या था?

Ans. जानकी देवी

Q. मेजर ध्यानचन्द जी के बेटे का नाम क्या था?

Ans. मेजर ध्यानचन्द जी के बेटों का नाम- बृज मोहन सिंह, सोहन सिंह, राजकुमार सिंह और अशोक कुमार सिंह हैं। अशोक कुमार एक हॉकी प्लेयर हैं।

Q. मेजर ध्यानचन्द जी का मूल नाम या वास्तविक नाम क्या था?

Ans. इनका वास्तविक नाम ध्यान सिंह था।

Q. मेजर ध्यानचन्द जी के पहले मेंटर का नाम क्या था?

Ans. मेजर ध्यानचन्द जी के पहले मेंटर का नाम मेजर भोले तिवारी या मेजर भले तिवारी था।

Q. मेजर ध्यानचन्द कौन से परिवार में जन्में थे?

Ans. मेजर ध्यानचन्द जी का जन्म कुशवाहा परिवार में हुआ था।

Q. मेजर ध्यानचन्द सिंह जी की उम्र कितनी थी?

Ans. 1905 ई. से 1979 ई. तक (74 वर्ष)

Q. मेजर ध्यानचन्द जी के प्रारम्भिक गुरु कौन थे?

Ans. मेजर तिवारी

Q. मेजर ध्यानचन्द जी की आत्मकथा का नाम क्या है?

Ans. गोल

Q. मेजर ध्यानचन्द जी को किस आयु में तथा कब सेना में नौकरी मिली थी?

Ans. मेजर ध्यानचन्द जी को 16 वर्ष की अवस्था में सन् 1922 ई. में सेना में नौकरी मिली थी।

Q. मेजर ध्यानचन्द का उपनाम क्या था?

Ans. मेजर ध्यानचन्द जी को हॉकी का जादूगर, द विजार्ड, हॉकी विजार्ड, चाँद, गॉड ऑफ हॉकी, द मैजिशियन आदि अनेक उपनामों से जाना जाता है।

Q. मेजर ध्यानचन्द जी की मृत्यु कब हुई थी?

Ans. 03 दिसम्बर, 1979 ई. (74 वर्ष)

Q. मेजर ध्यानचन्द जी की मृत्यु कहाँ हुई थी?

Ans. नयी दिल्ली (भारत)

Q. मेजर ध्यानचन्द जी की मृत्यु किस कारण से हुई थी?

Ans. लीवर कैंसर के कारण

Q. हॉकी के जादूगर के नाम से कौन प्रसिद्ध है?

Ans. मेजर ध्यानचन्द।

Q. 1956 ई. मेजर ध्यानचन्द जी को किस पुरस्कार से सम्मानित किया गया था?

Ans. पदम् भूषण पुरस्कार से।

Q. मेजर ध्यानचन्द जी की प्रारम्भिक शिक्षा कहाँ हुई थी?

Ans. झाँसी।

Q. मेजर ध्यानचन्द जी कितनी बार स्वर्ण पदक जीतने वाले भारतीय ओलम्पिक टीम के सदस्य रहे?

Ans. तीन बार।

Q. मेजर ध्यानचन्द सिंह कुशवाहा कौन थे?

Ans. हॉकी प्लेयर।

Q. मेजर ध्यानचन्द जी ने हॉकी के खेल से कब संन्यास लिया था?

Ans. मेजर ध्यानचन्द जी ने अप्रैल 1949 ई. को प्रथम कोटि से संन्यास लिया था। ध्यानचन्द ने वर्ष 1926 से 1949 तक अन्तर्राष्ट्रीय खेलों में अपना अहम योगदान दिया। जहाँ उन्होंने इस दौरान 500 से अधिक गोल अपने नाम किये।

Q. प्रमुख ध्यानचंद की आत्मकथा की टाइल क्या है?

Ans. मेजर ध्यानचन्द जी के आत्मकथा का नाम “गोल” है।

Q. हॉकी का जादूगर किसे कहा जाता है?

Ans. मेजर ध्यानचन्द जी को हॉकी का जादूगर कहा जाता है।

Q. मेजर ध्यानचंद का उपनाम क्या है?

Ans. मेजर ध्यानचंद का उपनाम – द विजार्ड, हॉकी विजार्ड, चाँद, हॉकी का जादूगर, गार्ड ऑफ हॉकी |

Q. ध्यानचंद की उम्र कितनी थी ?

Ans. ध्यानचंद की उम्र 74 years 3 months 15 days थी।

Q. ध्यानचंद की मौत कैसे हुयी थी ?

Ans. कैंसर के कारण

Q. ध्यानचंद ने कुल कितने गोल किए हैं?

Ans. 500 से अधिक

Q. ध्यानचंद को ‘हॉकी का जादूगर’ का उपाधि किसने दिया?

Ans . हॉकी का जादूगर की उपाधि जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर (Adolf Hitler) ने दिया था।

मेजर ध्यानचंद पर संपूर्ण जानकारी आपको कैसे लगी नीचे दिए गए Comment Box में जरुर लिखे ।

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