मौर्य साम्राज्य का इतिहास – मौर्य साम्राज्य नोट्स (Maurya Empire in Hindi)

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मौर्य साम्राज्य की स्थापना निश्चय ही भारतीय इतिहास में एक युगान्तकारी घटना है। चन्द्रगुप्त मौर्य के समय से ही पहली बार भारत में सही अर्थों में राजनीतिक एकता की स्थापना हुई। राजनीतिक एकीकरण का जो कार्य हर्यकवंशीय नरेशों ने आरम्भ किया था, उसे मौर्यों ने पूर्णता प्रदान की। इस काल में प्रशासनिक तन्त्र का विकास हुआ। मौर्य साम्राज्य की स्थापना की पूर्व संध्या पर सिकन्दर के आक्रमण की घटना भारतीय इतिहास की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है।

इस आक्रमण का चाहे भारतीय राजनीतिक या संस्कृति पर कोई प्रभाव पड़ा या न पड़ा, परन्तु इसके परिणामस्वरूप जो सम्पर्क मध्य एशिया एवं यूनान से बने, उससे समकालीन एवं परवर्ती यूनानी लेखकों ने भारत के सम्बन्ध में काफी कुछ लिखा। इस काल से इतिहास की रूपरेखा तय करने में इन लेखकों से काफी महत्वपूर्ण सामग्री उपलब्ध होती है।


मौर्य साम्राज्य का इतिहास (उदय और पतन के कारण) – मौर्य साम्राज्य नोट्स | Maurya Empire in Hindi


मौर्य वंश की जानकारी के स्रोत | Sources of information on Maurya Dynasty

यूनानी स्रोत— सिकन्दर के साथ लेखकों एवं अन्य विद्वानों की टोली भी थी। इस टोली में नियार्कस, ओनेसिक्रिट्स और अरिस्टोवुलस शामिल थे। इन लेखकों के विवरण से मौर्य वंश के ठीक-पूर्व काल के भारतीय परिदृश्य खासकर पश्चिमोत्तर एवं पश्चिमी भारत का ज्ञान प्राप्त होता है।

चन्द्रगुप्त के दरबार में नियुक्त सेल्यूकस के दूत मेगस्थनीज का विवरण भी भारतीय इतिहास के इस काल-खण्ड की विस्तृत जानकारी देता है, परन्तु दुर्भाग्य से उसकी कृति ‘इण्डिका’ के विलुप्त हो जाने से इतिहासकार प्रामाणिक एवं पर्याप्त सूचनाओं से वंचित रह गया।फिर भी उसके परवर्ती लेखकों द्वारा ‘इण्डिका’ के महत्वपूर्ण अंशों के उद्धरणों से पर्याप्त जानकारी मिलती है। इन समकालीन लेखकों के अतिरिक्त डियोडोरस, स्ट्रैबो, प्लिनी (नेचुरल हिस्ट्री), प्लूटार्क, जस्टिन इत्यादि परवर्ती लेखकों का विवरण महत्वपूर्ण है।

भारतीय स्रोत— विदेशी यूनानी स्रोतों के अलावा इस काल पर भारतीय साहित्यिक स्रोत भी उपलब्ध हैं। इनमें प्रमुख निम्नलिखित हैं—

  1. अर्थशास्त्र— चन्द्रगुप्त के मंत्री चाणक्य (कौटिल्य) द्वारा रचित ‘अर्थशास्त्र’ भारतीय राजनीति एवं राज-शासन के बारे में श्रेष्ठ कृति है। इससे चन्द्रगुप्त मौर्य के काल की राज-व्यवस्था एवं प्रशासन के बारे में अच्छी जानकारी प्राप्त होती है।
  2. साहित्य— ब्राह्मण, जैन एवं बौद्ध ग्रन्थों में चन्द्रगुप्त एवं उसके जीवन पर पर्याप्त प्रकाश पड़ा है। ब्राह्मण स्रोतों में समकालीन अर्थशास्त्र के अलावा पुराण, विशाखदन का मुद्राराक्षस मुख्य है। जैन साहित्य में भद्रबाहु का कल्पसूत्र मुख्य है। परवर्ती ग्रन्थ हेमचन्द्र का परिशिष्ठपर्वन भी इसकी जानकारी देता है। बौद्ध साहित्य में दिव्यावदन, अशोकावदन, महापरिनिब्बासुत्त भी मौर्यों के बारे में पर्याप्त जानकारी प्रदान करते हैं। बौद्ध साहित्य में दीपवंश, महावंश, मिलिन्दपन्हों इत्यादि ग्रन्थों से मौर्य वंश के सम्बन्ध में सामग्री प्राप्त होती है।
  3. अशोक के अभिलेख— अशोक के शिलालेख एवं स्तम्भ-लेख उसके शासन के बारे में प्रभूत ज्ञान कराते हैं। इनके अध्ययन से तत्कालीन शासन, राज्य, समाज-व्यवस्था, धर्म आदि अनेकानेक विषयों की जानकारी उपलब्ध होती है। रुद्रदामन का जूनागढ़ अभिलेख भी मौर्य शासकों का उल्लेख करता है।
  4. पुरातात्विक साक्ष्य— विभिन्न उत्खननों से मौर्यकालीन सामग्री एवं अन्य साक्ष्य मिले हैं। कुम्रहार एवं बुलन्दीबाग (पटना) आदि के उत्खननों में प्रामाणिक सामग्री उपलब्ध करायी है। कंकड़बाग (पटना) मे 1970 में मौर्य अवशेष मिले हैं। जयमंगलगढ़ से भी मौर्य अवशेषों की प्राप्ति हुई है। इन पुरा अवशेषों से तत्कालीन इतिहास के लेखन में बड़ी सहायता मिली है।
  5. अन्य साधन— उपर्युक्त स्रोतों के अलावा पतञ्जलि के महाभाष्य में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष विवरण उपलब्ध है। चीनी यात्री फाह्यान एवं युवानच्वांग के विवरण भी मौर्यकाल पर प्रकाश डालते हैं। तमिल लेखक मामुलनार एवं परनार भी सुदूर-दक्षिण में मौर्य आक्रमण का उल्लेख करते हैं।

मौर्य काल की विशेषतायें | Features of Mauryan period

  • मौर्य साम्राज्य भारत का प्रथम महान् साम्राज्य था। चन्द्रगुप्त मौर्य के समय में पहली बार भारत राजनीतिक एकता के सूत्र में बँधा।
  • बड़े पैमाने पर प्रशासनिक केन्द्रीकरण मौर्य काल की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता है।
  • मौर्य काल से अपेक्षाकृत एक निश्चित तिथि-क्रम का आरम्भ होता है।
  • इस काल से सम्बन्धित विपुल, विविध एवं प्रामाणिक ऐतिहासिक स्रोतों की उपलब्धता होती है।
  • मौर्य प्रशासन की विशेषतायें थीं—लोक कल्याणकारी राज्य का आदर्श, विकसित अधिकारी तन्त्र, कठोर न्याय व्यवस्था, सुव्यवस्थित विशाल सेना, कुशल नगर प्रशासन, सुगठित गुप्तचर प्रणाली, सुविकसित राजस्व प्रशासन, परिवहन तंत्र।
  • मौर्यकाल की भौतिक समृद्धि ने कला को उत्कृष्टता के शिखर पर पहुँचा दिया। मौर्यकालीन कला के सर्वोत्कृष्ट उदारहण एक ही प्रस्तरखण्ड से निर्मित स्तम्भ (एकाश्मक) हैं। ये स्तम्भ अपनी पॉलिश एवं पशु-आकृतियों के अंकन के लिये विश्वविख्यात हैं। अशोक के स्तम्भ अपनी प्रौद्योगिकी के लिये भी इतिहास में विशिष्ट स्थान रखते हैं।
  • मौर्य काल में एक नयी भौतिक संस्कृति का विकास और प्रसार हुआ। इस संस्कृति का प्रमाण हैं—उत्तरी-काली पॉलिश वाले मृदभाण्ड(नॉर्थेन ब्लैक पॉलिश्ड वेयर – एन. बी. पी. डब्ल्यू )। यह संस्कृति प्राचीन भारतीय इतिहास की द्वितीय नगरीय क्रान्ति के प्रमाण प्रस्तुत करती है। सुदूर दक्षिण को छोड़कर इस पात्र-परम्परा का प्रचलन सम्पूर्ण भारत में दिखायी देता है।
  • मौर्य शासन की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण वे नीतियाँ हैं जिनका प्रतिपादन कलिंग युद्ध के पश्चात् ‘युद्धघोष’ के स्थान पर ‘धम्म कोष’ को अंगीकार कर लिया। अब उसके जीवन का उद्देश्य धम्म विजय था।

मौर्य कौन थे ? (Who was Maurya)

मौर्यों की उत्पत्ति एक विवादास्पद समस्या है। मौर्यों के वंश और उत्पत्ति को लेकर इतिहासकारों और विद्वानों में अत्यधिक मतभेद हैं। मौर्यों की उत्पत्ति में प्रमुखतया तीन विचारधारायें हैं—

  1. मौर्य पारसी थे।
  2. मौर्य शूद्र थे
  3. मौर्य क्षत्रिय थे।

मौर्य कला को पारसीक मानते हुए स्पूनर ने मौर्यों को पारसी माना है, किन्तु मौर्य कला निश्चित रूप से पारसी कला से भिन्न थी। अत: मौर्यों को पारसी नहीं कहा जा सकता। इसी प्रकार ब्राह्मण-साहित्य के आधार पर मौर्यों को नीच कुल का अथवा शूद्र मानना असंगत है, क्योंकि ब्राह्मण साहित्य के ग्रन्थ स्वयं ही इस विषय में एकमत नहीं हैं। जैन एवं बौद्ध साहित्य के ग्रन्थों का वर्णन अधिक तर्कसंगत प्रतीत होता है तथा वे इस विषय में एकमत भी हैं। बौद्ध एवं जैन साहित्य के वर्णन की पुष्टि विदेशी लेखकों एवं पुरातात्विक स्रोतों से भी होती है। अत: मौर्यों को शूद्र नहीं वरन् क्षत्रिय मानना ही न्यायप्रिय एवं तर्कसंगत है।

  • मौर्य साम्राज्य भारत की भूमि पर स्थापित किये गये साम्राज्यों में सबसे पहला और सबसे बड़ा साम्राज्य था। यह विशाल साम्राज्य ऑक्सस की घाटी से कावेरी की द्रोणी तक सुगठित रूप से एकछत्र प्रशासन के अन्तर्गत फैला हुआ था।
  • मौर्य शासकों के विषय में जानकारी प्राप्त करने के लिये हमारे पास अभिलेखों, साहित्यिक ग्रन्थों, विदेशी यात्रियों, राजदूतों एवं इतिहासकारों के वृत्तान्तों और पुरातत्त्वीय उत्खनन से प्राप्त सामग्रियों के रूप में अनेक स्रोत उपलब्ध हैं।
  • मानवता के इतिहास में केवल अशोक ही एक ऐसा अकेला राजा हुआ है, जिसने अपने द्वारा पराजित लोगों से इस बात के लिये क्षमा माँगी कि उसने उनके विरुद्ध युद्ध करके उन्हें कष्ट एवं दुःख पहुँचाया। तेरहवाँ शिलालेख एक
  • ऐसा प्रलेख है जो अशोक जैसे महान और उदास्वेता मानव द्वारा ही लिखा जा सकता है

मौर्य शासकों की सूची – List of Maurya Rulers

  1. चंद्रगुप्त मौर्य – 322-298 ईसा पूर्व
  2. बिन्दुसार – 298-271 ईसा पूर्व
  3. अशोक – 269-232 ईसा पूर्व
  4. कुणाल – 232-228 ईसा पूर्व
  5. दशरथ –228-224 ईसा पूर्व
  6. सम्प्रति – 224-215 ईसा पूर्व
  7. शालिसुक –215-202 ईसा पूर्व
  8. देववर्मन– 202-195 ईसा पूर्व
  9. शतधन्वन् – 195-187 ईसा पूर्व
  10. बृहद्रथ – 187-185 ईसा पूर्व

मौर्य साम्राज्य के पतन के कारण | Reasons for the fall of the Maurya Empire

मौर्य साम्राज्य के पतन के कारण जानने के लिए आप इस लेख को पढ़े – मौर्य साम्राज्य के पतन के कारण

मौर्यकालीन सभ्यता एवं संस्कृति | Mauryan Civilization and Culture

सामाजिक जीवन | Social life

मौर्यकालीन में वर्ण-व्यवस्था का विकसित एवं कठोर स्वरूप दिखायी देता है। कौटिल्य ने वर्णाश्रम व्यवस्था को सामाजिक संगठन का आधार माना है और परम्परागत चारों वर्णों तथा उनके कर्त्तव्यों का उल्लेख किया है। कौटिल्य ने शूद्रों को भी जन्मतः आर्य (आर्यप्राण) कहा है। इसके अतिरिक्त उसका मानना था कि सेना के गठन के लिये चारों वर्णों के लोगों का उपयोग किया जा सकता है।

मेगस्थनीज़ भारतीय समाज को सात वर्गों में विभक्त बताता है—

  1. दार्शनिक
  2. कृषक
  3. पशुपालक और शिकारी
  4. कारीगर या शिल्पी
  5. सैनिक
  6. निरीक्षक तथा
  7. मंत्री और सलाहकार।

इसमें कोई संदेह नहीं रह जाता कि मेगस्थनीज़ भारतीय समाज की संरचना को समझने में गलती कर बैठा। कौटिल्य एवं मेगस्थनीज़ दोनों के विवरणों से ब्राह्मणों की विशिष्ट स्थिति का बोध होता है। ब्राह्मणों का वास्तविक कार्य अध्ययन और अध्यापन था। कौटिल्य के अनुसार अपराध करने पर ब्राह्मण को शारीरिक दण्ड अथवा मृत्युदण्ड नहीं दिया जाता था।

विवाह सामान्यतः अपने वर्ण और जाति में होते थे, किन्तु अन्तर्वर्णीय तथा अन्तर्जातीय विवाह के भी उदाहरण मिलते हैं। धर्मशास्त्रों में उल्लिखित आठों प्रकार के विवाह प्रचलित थे—ब्राह्मण, प्रजापत्य, आर्ष, दैव, आसुर, गान्धर्व, राक्षस तथा पैशाच। निर्याकस के एक कथन से स्वयंवर की प्रथा का संकेत मिलता है। दहेज प्रथा लोकप्रिय नहीं थी। पुरुष एवं स्त्रियों दोनों को पुनर्विवाह तथा विवाह-विच्छेद का अधिकार प्राप्त था।

मौर्यकाल में स्त्रियों को उचित सुरक्षा एवं स्वतंत्रता प्राप्त थी। परिवार में स्त्री की स्थिति पर्याप्त रूप से सुरक्षित थी। कौटिल्य के अनुसार पति से प्रताड़ित होने पर स्त्री न्यायालय की शरण भी ले सकती थी। स्ट्रेबो ने लिखा है कि, “कुछ संयासियों के साथ स्त्रियाँ भी दार्शनिकों का जीवन व्यतीत करती थी। कुछ स्त्रियाँ सैनिक शिक्षा प्राप्त करती थीं। कुछ स्त्रियो को गुप्तचरों के रूप में भी नियुक्त किया जाता था।”

मेगस्थनीज़ ने अपने विवरण में लिखा  है कि भारत में दासों का अस्तित्व नहीं था। ऐसा सम्भवतः उसने इस कारण लिखा है क्योंकि यूनानी दासों की तुलना में भारतीय दासों की स्थिति बड़ी अच्छी थी। भारत में दास प्रथा के अस्तित्व का अर्थशास्त्र में उल्लेख है। अशोक के अभिलेखों में भी दासों, सेवकों तथा भृत्यों का उल्लेख है। दासों के साथ उचित व्यवहार किया जाता था। दास-स्त्री से अनाचार करना भी निषिद्ध था। दास स्वयं द्वारा या उसके किसी परिजन द्वारा दासत्व का मूल्य चुका देने पर उन्हें दासत्व से मुक्त कर दिया जाता था।

मेगस्थनीज़ ने भारतीयों के चरित्र एवं स्वभाव का बड़ा प्रशंसात्मक वर्णन किया है। उसने लिखा कि जीवन की सरलता के बावजूद, भारतीय लोग सौन्दर्य-प्रेमी थे। अशोक ने अपने अभिलेखों में समाज का उल्लेख किया है और ऐसे समाजों में होने वाले हिंसात्मक कार्यों को उसने निषिद्ध कर दिया था। मेगस्थनीज़ एवं अन्य यूनानी लेखकों ने मनुष्यों, हाथियों, सांडो एवं अन्य पशुओं के मल्ल-युद्धों का उल्लेख किया है।

आर्थिक जीवन | Economic life

मौर्यकाल में भी भारत एक कृषि प्रधान देश था। कृषि क्षेत्र में मौर्यकाल की महत्वपूर्ण देन सिंचाई के साधनों का विकास था। जूनागढ़ अभिलेख से ज्ञात होता है कि चन्द्रगुप्त के राज्यपाल पुष्यगुप्त वैश्य ने सौराष्ट्र में सुदर्शन झील का निर्माण कराया था। कौटिल्य ने कृष्ट (जुती हुई), आकृष्ट (बिना जुती हुई), स्थल (ऊँची) आदि अनेक प्रकार की भूमियों का उल्लेख किया है।

मौर्यकाल में विविध उद्योग एवं शिल्प विकसित अवस्था में थे। वस्त्र निर्माण सम्भवतः सर्वाधिक महत्वपूर्ण उद्योग था। प्राचीनकाल से वंग का मलमल विश्वविख्यात था। खनन एवं धातुकर्म दूसरा महत्त्वपूर्ण उद्योग था। मेगस्थनीज़ के अनुसार, “इस देश में सोना और चाँदी बहुत होता है। ताँबा और लोहा भी कम नहीं होता है। इनके अतिरिक्त रत्नाभूषण कला, काष्ठ कर्म, हाथी दाँत की कारीगरी, मृद्भाण्ड कला तथा चमड़े का उद्योग भी उन्नत अवस्था में थे। मौर्य प्रशासन के प्रत्यक्ष अधिकार क्षेत्र में एक व्यापक “राजकीय औद्योगिक व्यापारिक प्रतिष्ठान” था। स्वन्त्र रूप से कार्य करने वाले शिल्पियों की अपनी श्रेणियाँ (संगठन) होती थीं।

मौर्यकाल में आन्तरिक और विदेशी व्यापार दोनों उन्नत अवस्था में थे। आन्तरिक व्यापार के लिये पाटलिपुत्र से पश्चिमोत्तर प्रदेशों में तक्षशिला तक जाने वाला राजपथ था, जो 1500 कोस लम्बा था। आन्तरिक व्यापार देश की नदियों के मार्ग से भी होता था। इस समय विदेशी व्यापार भी प्रगति पर था। यूनानी शासकों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध की वजह से पश्चिमी एशिया और मिस्र के साथ भारत के व्यापार के लिये अनुकूल वातावरण बना। भारत से मिस्र को हाथी दाँत, कछुए, सीपियों,  मोती, रंग, नील, और बहुमूल्य वस्तुयें निर्यात होती थी। अर्थशास्त्र में अनेक मौर्यकालीन मुद्राओं के नाम आते हैं।

इनमें प्रमुख हैं— सुवर्ण (स्वर्ण मुद्रा), कार्षापण, पण और धरण (रजत मुद्रा), मापक (ताम्रमुद्रा), काकणी (ताम्रमुद्रा)। उत्खनन से भारी संख्या में प्राप्त ‘आहत’ या पंचमार्क सिक्कों के कुछ समूहों को मौर्यकाल से सम्बन्धित माना है। पंचमार्क सिक्के केवल चाँदी और ताँबे के हैं, लेकिन ताँबे के सिक्के बहुत कम मिलते हैं।

धार्मिक जीवन | Religious life

उपलब्ध साक्ष्यों से विदित होता है कि मौर्यकालीन समाज में अनेक धर्म एवं सम्प्रदाय प्रचलित थे। ब्राह्मण धर्म के अतिरिक्त बौद्ध, जैन और आजीवक धार्मिक सम्प्रदाय विशेष रूप से लोकप्रिय थे। अशोक के काल में हुये बौद्ध के विपुल प्रचार के बावजूद मौर्यकाल में ब्राह्मण धर्म बहुत प्रबल था। इस काल में अशोक द्वारा व्यक्तिगत रूप  से बौद्ध धर्म का अंगीकार किया जाना इस धर्म के प्रचार-प्रसार की दृष्टि से एक युगान्तकारी घटना थी। अशोक के प्रयासों के कारण बौद्ध धर्म भारत की सीमाओं का अतिक्रमण कर श्रीलंका एवं अन्य विदेशी क्षेत्रों में पहुँचा। अशोक के काल में ही पाटलिपुत्र में बौद्ध धर्म की तृतीय बौद्ध संगीति हुई।

मौर्यकाल में आजीवक सम्प्रदाय के अनुयायियों का भी उल्लेख मिलता है। अशोक ने अपने सातवें स्तम्भ-लेख में निर्ग्रन्थ सम्प्रदाय का भी उल्लेख किया है। निर्ग्रन्थ सम्प्रदाय के लोग निर्ग्रन्थ ज्ञातपुत्र अर्थात् महावीर स्वामी के अनुयायी थे। जैन परम्परा के अनुसार आचार्य भद्रबाहु ने चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल  के अन्तिम दिनों में सम्राट को निर्ग्रन्थ सम्प्रदाय का अनुयायी बना लिया। अशोक के पौत्र सम्प्रति को भी जैन मतावलम्बी कहा गया है।

मौर्य कला -Maurya Art

मौर्यकाल की भौतिक समृद्धि एवं सांस्कृतिक वैभव ने कला को उत्कृष्टता के शिखर पर पहुँचा दिया। यूनानी लेखकों ने चन्द्रगुप्त मौर्य के राजप्रासाद के वैभव तथा कलात्मकता की बड़े प्रशंसापूर्ण शब्दों में चर्चा की है और सूसा एवं एकवेटना के राजप्रासादों को इसके सामने तुच्छ बताया है। यह राजप्रासाद फाह्यान के समय में भी विद्यमान था, जिसका उसने अशोक के राजप्रासाद के नाम से उल्लेख किया है।

अशोककालीन मौर्य कला के सर्वोत्कृष्ट उदारहण उसके स्तम्भ हैं। ये कई स्थानों से मिले हैं, जिसमें प्रमुख हैं—सारनाथ स्तम्भ, रामपुरवा स्तम्भ, लौरिया नन्दन स्तम्भ, संकिसा का स्तम्भ। ये संख्या में 30 से 40 हैं। स्तम्भ को कला की दृष्टि से चार भागों में विभक्त कर सकते हैं—दण्ड, शिखर, फलक एवं पशु प्रतिमा। दण्ड एक ही पत्थर का बना होता था, जिस पर सुन्दर पॉलिश की जाती थी। पॉलिश इतनी उत्तम की हुई है कि बहुत से विदेशी यात्री इन्हें धातु का समझने लगे थे। दण्ड के ऊपर घण्टे अथवा उल्टे कमल की आकृति का शिखर, शिखर पर पीठिका के रूप में फलक और फलक पर पशु प्रतिमा है। सारनाथ का सिंहशीर्ष मौर्य कला का अत्यन्त सुन्दर उदाहरण है।

इसी प्रकार हाथी की प्रतिमा भी सजीव लगती है। स्मिथ  के अनुसार, “किसी भी देश में प्राचीन पशु प्रतिमाओं का इतना सुन्दर उदाहरण नहीं मिलता है।” बिहार में गया के पास बराबर एवं नागार्जुनी पहाड़ियों में मौर्यकालीन सात गुहा-आवास प्राप्त हुए हैं। बराबर पर्वत समूह से चार गुफायें मिली हैं तथा नागार्जुनी पहाड़ियों से तीन गुफायें मिली हैं। इन गुफाओं की दीवारों एवं छतों पर की गयी अत्यन्त चमकदार पॉलिश मौर्यकालीन कला की विशिष्टता को परिलक्षित करती हैं।

मौर्य साम्राज्य का कला
  • हर्मिका     —  स्तूप के अंढ के शीर्ष की चौकोर रेलिंग को हर्मिका कहते है। यह यष्टि लट को घेरे रहती है।
  • मेधि   —  स्तूप के चारों ओर ऊँचे उठे पथ (पटरी) को मेधि कहते हैं। इसे स्तूप की प्रदक्षिणा पथ कहते हैं।
  • प्रदक्षिणा पथ  —   मन्दिर या पूजा-स्थल के चारों तरफ बने सामान्य सतह से ऊँचे पथ को प्रदक्षिणा पथ कहते हैं।
  • तोरण    —    तोरण मूरतः प्रवेश-द्वार होता है। इसके दो ऊर्ध्वाधर स्तम्भ रहते हैं। इनके बीच निकल कर श्रद्धालुगण स्तूप में प्रवेश करते हैं।
  • वेदिका   —  पवित्र स्थल की सुरक्षा के लिये बनाई गई रेलिंग को वेदिका कहते  है।

पाटलिपुत्र, मथुरा, विदिशा तथा अन्य क्षेत्रों में मौर्य युग की अनेक प्रस्तर मूर्तियाँ उपलब्ध हुई है। इनमें सबसे प्रसिद्ध दीदारगंज, पटना से प्राप्त चामरग्राहिणी यक्षी की मूर्ति है। मथुरा के परखम गाँव से प्राप्त यक्ष की मूर्ति भी बहुत विशाल एवं प्रसिद्ध है। मौर्य युग की बहुत-सी मृण्मूर्तियाँ भी उपलब्ध हुई है। ये पटना, अहिच्छत्र, मथुरा, कौशाम्बी आदि के भग्नावशेषों से मिली हैं। बुलंदीबाग (पटना) से प्राप्त एक नर्तकी की मूर्ति उल्लेखनीय है।

साहित्य एवं शिक्षा | literature and education

बहुत से साहित्यिक ग्रन्थों की रचना मौर्यकाल में हुई। इस काल का सबसे प्रसिद्ध ग्रन्थ कौटिल्य का अर्थशास्त्र है। ऐसा अनुमान है कि वात्स्यायन ने पाणिनी की अष्टाध्यायी पर अपने वार्तिक इसी समय लिखे। बौद्ध-साहित्य की दृष्टि से मौर्यकाल महत्त्वपूर्ण है। इसी काल में तृतीय बौद्ध संगीति, त्रिपटकों का संगठन तथा मोगलिपुत्र तिस्म द्वारा अभिधम्मपिटक के कथावस्तु की रचना ये सब कार्य हुए।

आचारांग सूत्र, समवाय सूत्र, भगवती सूत्र, उपासक दशांग आदि जैन ग्रन्थों के अधिकांश भाग इसी समय लिखे गये थे। मौर्यकाल में शिक्षा का जनमानस में प्रचार था। ऐसा प्रतीत होता है कि इस समय तक्षशिला उच्चतम शिक्षा का प्रसिद्ध केन्द्र था।

मौर्य साम्राज्य का प्रशासन | Administration of the Maurya Empire

मौर्य प्रशासन के शीर्षस्थ अधिकारी तीर्थ (महामात्य) कहलाते थे | ऐसे अधिकारियों की संख्या 18 थी | प्रमुख तीर्थ अधिकारी

  • समाहर्ता – राजस्व विभाग का सर्वोच्च अधिकारी, वित्त मंत्री (कर संग्राहक)
  • सन्निधाता – राजकीय कोषागार का प्रधान अधिकारी (कोषाध्यक्ष)
  • कर्मान्तिक – उद्योग धंधो का प्रधान निरीक्षक
  • अंत:पाल – सीमावर्ती दुर्गों का रक्षक
  • व्यावहारिक – दीवानी न्यायालय का प्रमुख न्यायाधीश
प्रांतराजधानी
उत्तरापथतक्षशिला
अवन्तिराष्ट्रउज्जयिनी
कलिंगतोसली
दक्षिणापथसुवर्णगिरि
प्राची (पूर्वी प्रदेश)पाटलिपुत्र

मौर्य साम्राज्य में प्रचलित मुद्रा | Currency prevalent in Maurya Empire

अर्थशास्त्र में विस्तृत मुद्रा प्रणाली की चर्चा की गई है | अर्थशास्त्र में अनके मौर्यकालीन मुद्राओं के नाम आते हैं | इनमें प्रमुख हैं सुवर्ण (स्वर्ण मुद्रा), कार्षपण, पण और धरण (रजत मुद्रा), माषक (ताम्रमुद्रा), काकणी (ताम्रमुद्रा) आदि |विभिन्न प्रकार के सिक्कों का उल्लेख मिलता है | उत्खनन से भारी संख्या में प्राप्त आहत सिक्के या पंचमार्ग सिक्को के कुछ समूहों को मौर्यकाल से संबंधित माना है पंचमार्क सिक्के केवल चांदी और तांबे के हैं लेकिन तांबे के सिक्के बहुत कम मिलते हैं |

मौर्य साम्राज्य का विस्तार | Expansion of Mauryan Empire

मौर्य साम्राज्य का विस्तार

  1. पंजाब पर विजय
  2. नंद वंश का विनाश एवं मगध पर अधिकार
  3. सेल्यूकस की पराजय और ईरान तक राज्य विस्तार
  4. पश्चिमी भारत पर विजय
  5. दक्षिण भारत पर विजय

निष्कर्षत: यह कहा जा सकता है किक चंद्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य हिंदूकुश से लेकर बंगाल तक और हिमालय से लेकर कर्नाटक तक विस्तृत था | इसके अंतर्गत अफगानिस्तान और बलूचिस्तान के विशाल प्रदेश, पंजाब, सिंध, कश्मीर, नेपाल, गंगा – जमुना का दोआब, मग, बंगाल, सौराष्ट्र, मालवा और दक्षिण भारत में कर्नाटक तक का प्रदेश सम्मिलित था |

मौर्य साम्राज्य नोट्स – FAQs

Q. मौर्य साम्राज्य की राजधानी

उत्तर: मौर्य साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र था जिसे अब पटना के नाम से जानते है |

Q. मौर्य साम्राज्य का प्रथम शासक

उत्तर: चन्द्रगुप्त मौर्य मौर्य साम्राज्य के प्रथम शासक थे | चन्द्रगुप्त मौर्य ने चाणक्य की सहायता से अंतिम नन्द वंश के शासक घनानंद की हत्या कर मौर्य साम्राज्य की स्थापना की |

Q. मौर्य साम्राज्य का अन्तिम शासक कौन था?

उत्तर: बृहद्रथ मौर्य साम्राज्य का अंतिम शासक था | जो 187 ईसा पूर्व से 185 ईसा पूर्व तक शासन किया | ये बौद्ध धर्म के अनुयायी थे।

Q. मौर्य साम्राज्य की स्थापना कब हुई? और किसने की?

उत्तर: चन्द्रगुप्त मौर्य ने चाणक्य की कूटनीति एवं रणकौशल द्वारा नन्दवंश के अंतिम शासक धनानन्द को पराजित कर 322 ई० पू० में मगध में मौर्य साम्राज्य या मौर्य वंश की स्थापना की |

Q. मौर्य साम्राज्य की स्थापना कब हुई?

उत्तर: मौर्य साम्राज्य की स्थापना 322 ई० पू० में हुई |

Q. मौर्य साम्राज्य के सबसे महान शासक का नाम बताओ?

उत्तर: चक्रवर्ती सम्राट अशोक मौर्य, मौर्य साम्राज्य के सबसे महान शासक हैं अशोक को इसलिए महान नहीं कहा जाता है कि उसने प्राचीन भारत के सबसे बड़े साम्राज्य पर शासन किया था बल्कि विश्व को शांत अहिंसा का संदेश देने एवं उनकी जनकल्याण की भावना के कारण ही उसे महान कहा गया है | विश्व के इतिहास में सम्राट अशोक के महान उदार व मानवतावादी सम्राट आज तक न कोई हुआ और न ही शायद कभी होगा |

Q. मौर्य साम्राज्य का संस्थापक कौन था/थे ?

उत्तर: मौर्य साम्राज्य का संस्थापक चक्रवर्ती सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य जी थे / था |

Q. मौर्य साम्राज्य के चार प्रमुख राजनीतिक केंद्रों के नाम लिखिए

उत्तर: मौर्य साम्राज्य के चार प्रमुख राजनीतिक केंद्र के नाम
1. तोसली
2. उज्जयिनी
3. पाटलिपुत्र
4. तक्षशिला
इन प्रांतों का शासन राजकुमारो द्वारा चलाया जाता था और यही प्रांत जिलों में बैठे हुए थे जिन्हें आहार या विषय कहा जाता था |

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