इस आर्टिकल में हम रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का जीवन परिचय पढेंगे, तो चलिए विस्तार से पढ़ते हैं Ramdhari Singh Dinkar Ka Jivan Parichay हिंदी में | Ramdhari Singh Dinkar Biography in Hindi –
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ – दिनकर जी आधुनिक युग के एक ऐसे उदीयमान साहित्यकार है जिन्होंने वाल्यावस्था से वृध्दावस्था तक हिंदी – साहित्य की अनवरत सेवा की है | हिंदी साहित्य में कविवर दिनकर जी एक क्रन्तिकारी और युग – प्रवर्तन कवि के रूप में सुविख्यात है कविता – कामिनी के प्रेम क्षेत्र में ‘दिनकर जी’ राष्ट्र प्रेम लेकर उपस्थित होते है जिसमे हमें उनके विद्रोही कवि के रूप का दर्शन होता है |
कवि क्रान्ति का सजग – सशक्त दूत है इसलिए वाणी में विद्रोह का आगमन स्वाभाविक है | कवि की क्रान्तिकारी लेखनी से कोई भी अछूता नहीं रहा | भारतीय जनमानस में जागरण की विचारधारा को प्रखर बनाने का पुनीत कार्य रामधारी सिंह ”दिनकर” जी ने किया | उनकी कविताओ में ओज है , तेज है और अग्नि जैसा तीव्र ताप है | दिनकर जी जनसाधारण के प्रति समर्पित रहे है और राष्ट्रीय जागरण के प्रणेता होने के कारण उन्हें “राष्ट्रिय हिंदी – कविता का वैतालिक” भी कहा जाता है |
रामधारी सिंह ”दिनकर” के जीवन परिचय से संबंधित महत्वपूर्ण पंक्ति संक्षिप्त में
मुंगेर जिले के ग्राम सिमरिया
में दिनकर का उदय हुआ |
पटना से बी.ए. पास किये
प्राणभंग काव्य आरम्भ किया |
हुँकार , रेणुका रसवन्ती
कुरुक्षेत्र उर्वशी रश्मिरथी |
“हारे के हरि नाम” रामधारीसिंह दिनकर थे महारथी |
रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय – Ramdhari Singh Dinkar Ka Jivan Parichay (संक्षिप्त जीवन परिचय)
नाम | रामधारी सिंह ‘दिनकर’ |
जन्म | 23 सितंबर 1908 ई० |
जन्म – स्थान | सिमरिया घाट, मुंगेर , बिहार |
मृत्यु | 24 अप्रैल सन् 1974 ई० |
मृत्यु स्थान | मद्रास ( चेन्नई) |
पिता का नाम | रवि सिंह |
माता का नाम | मनरूप देवी |
बड़े भाई का नाम | बसंत सिंह |
रचनाएँ | कुरुक्षेत्र और उर्वशी, संस्कृति के चार अध्याय, रेणुका आदि |
रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय – Ramdhari Singh Dinkar Biography in Hindi
प्रस्तावना
गंभीर साहित्य के सृजन के रूप में जन – चेतना के गायक और क्रांतिकारी कवि रामधारी सिंह दिनकर जी को हिंदी साहित्य में विशिष्ट स्थान प्राप्त है| रामधारी सिंह दिनकर जी को कविता लिखने का शौक विद्यार्थी जीवन से ही था |अपने विद्यार्थी जीवन में ही इन्हें अनेक आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ा | इनकी 2 वर्ष की अवस्था में ही इनके पिता का देहांत हो गया अतः अपने बड़े भाई वसंत सिंह और माता की छत्रछाया में ही यह पले और बड़े हुए | ग्रामीण परंपराओं के कारण दिनकर जी का विवाह किशोरावस्था में ही हो गया | अपने पारिवारिक कर्तव्यों के प्रति दिनकर जी सदैव सचेत रहते थे | हिंदी साहित्य की दुनिया में “दिनकर जी” ने अपना आमूल्य योगदान दिया |
जन्म
रामधारी सिंह दिनकर जी का जन्म 23 सितंबर 1908 ई० ( संवत् 1965 वि.) में हुआ था
जन्म – स्थान
राष्ट्रीय भावनाओं के ओजस्वी गायक कविवर रामधारी सिंह दिनकर का जन्म बिहार राज्य में स्थित मुंगेर जिले के सिमरिया घाट नामक गांव के साधारण किसान परिवार में हुआ था |
माता – पिता (mother-father)
रामधारी सिंह दिनकर जी के माता का नाम श्रीमती मनरूप देवी था | तथा इनके पिता का नाम श्री रवि सिंह था|
रामधारी सिंह दिनकर के बड़े भाई (Elder brother)
रामधारी सिंह दिनकर जी के बड़े भाई का नाम बसंत सिंह था |
रामधारी सिंह दिनकर की शिक्षा (education)
रामधारी सिंह दिनकर जी की प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई | इन्होंने मैट्रिक (हाई स्कूल) की परीक्षा मोकामा घाट स्थित रेलवे हाई स्कूल से उत्तीर्ण किया और हिंदी में सार्वजनिक अंक प्राप्त करके | इन्होंने “ भूदेव” नामक स्वर्ण पदक जीता | सन् 1932 ई० मैं इन्होंने पटना से बी०ए० की परीक्षा भी उत्तीर्ण की | श्री रामधारी सिंह दिनकर जी को अनेक भाषाओं का ज्ञान प्राप्त था | “ दिनकर” जी के ज्ञान का कोई अंत नहीं है |
श्री रामधारी सिंह दिनकर जी के द्वारा किए गए महत्वपूर्ण कार्य
रामधारी सिंह दिनकर जी ने सन् 1932 में बी०ए० शिक्षा ग्रहण करने के बाद एक माध्यमिक विद्यालय में प्रधानाचार्य बने| सन् 1934 ई० मैं इस पद को छोड़कर सीतामढ़ी में सब रजिस्ट्रार बने | सन् 1950 ई० में बिहार सरकार ने इन्हें मुजफ्फरपुर के स्नातकोत्तर महाविद्यालय में हिंदी विभागाध्यक्ष के पद पर नियुक्त किया | सन् 1952 ई० से सन् 1963 ई० तक ये राज्यसभा के सदस्य मनोनीत किए गए | सन् 1964 ई० ये भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति बने |तथा इन्हें केंद्रीय सरकार की हिंदी समिति का परामर्शदाता भी बनाया गया |
मृत्यु – स्थान (Place of death)
रामधारी सिंह दिनकर जी का स्वर्गवास मद्रास ( चेन्नई) में हुआ था |
रामधारी सिंह दिनकर की मृत्यु (Death)
हिंदी साहित्य की अनवरत सेवा करते हुए 24 अप्रैल सन् 1974 (संवत् 2031 बि०) मैं हिंदी साहित्यकाश का यह “दिनकर” सदा – सदा के लिए अस्त हो गया |
रामधारी सिंह दिनकर का साहित्यिक व्यक्तित्व
अपने राष्ट्रीय भाव से जनमानस की चेतना की नई स्फूर्ति प्रदान करने वाले राष्ट्रीय कवि दिनकर छायावादोत्तर काल के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं | इन्हें प्रगतिवादी कवियों में भी सर्वश्रेष्ठ माना जाता है | दिनकर जी आधुनिक युग के एक ऐसे उदीयमान साहित्यकार हैं जिन्होंने बाल्यावस्था से लेकर वृद्धावस्था तक हिंदी साहित्य की अनवरत सेवा की है | दिनकर जी की काव्यात्मक प्रतिभा ने इन्हें अपार लोकप्रियता प्रदान की |
इन्होंने सौंदर्य, प्रेम, राष्ट्रप्रेम, लोक – कल्याण, आदि अनेक विषयों पर काव्य – रचना की | परंतु इनकी राष्ट्रीय भाव पर आधारित कविताओं ने जनमानस को सर्वाधिक प्रभावित किया | दिनकर जी को क्रांतिकारी कवि रूप में भी प्रतिष्ठा मिली | इन्होंने “ रश्मिरथी” एवं “ कुरुक्षेत्र” जैसी रचनाओं में अपनी जिस प्रतिभा का परिचय दिया है वह सदैव अविस्मरणीय रहेगा | इस प्रकार दिनकर जी ने अपने हिंदी साहित्य की महान सेवा की है | अतः आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रणेताओ में “दिनकर” जी का स्थान दिनकर के समान सर्वोच्च है |
रामधारी सिंह दिनकर जी को प्राप्त सम्मान
दिनकर जी को कभी रूप में पर्याप्त सम्मान मिला | ( सन् 1972 ई० ) रामधारी सिंह दिनकर के “ उर्वशी” काव्य पर राष्ट्रीय ज्ञानपीठ का पुरस्कार प्राप्त हुआ तथा राष्ट्रपति द्वारा पदम भूषण से दिनकर जी को सम्मानित किया गया | “संस्कृत के चार अध्याय” नामक साहित्यिक रचना पर इन्हें “ साहित्य अकादमी” पुरस्कार प्राप्त हुआ | मैथिलीशरण गुप्त के बाद “ राष्ट्रकवि” की उपाधि “ दिनकर” के नाम के साथ अपने आप जुड़ गया | बाद में “ द्विवेदी पदक” , “डी० लिट्०” की नामक उपाधि , “राज्यसभा की सदस्यता” आदि इनके कृतित्व की राष्ट्र द्वारा स्वीकृति के प्रमाण हैं |
एक क्रांतिकारी कवि के रूप में दिनकर जी का परिचय
विश्व में अनेक प्रचलित कहावत विद्यमान है – “ जहां न पहुंचे रवि, वहां पहुंचे कवि | ” प्रत्येक कवि और रचनाकार की रचनाएं उनके विचारों और भावनाओं के चतुर्दिक परिभाम्रण करती है इसलिए उनके विचार चिंतन का प्रभाव भी उन रचनाओं पर सुस्पष्ट दिखाई देता है | राष्ट्रीय भावो की अभिव्यक्ति के लिए दिनकर जी अपने ओजपूर्ण प्रखर वाणी के साथ मुखरित होते दिखाई देते हैं | निद्रामग्न मानवता मानवता को जागरण का बिगुल सुना कर जिस प्रकार उनकी तन्द्रा भंग करने का प्रयास दिनकर जी ने किया वह उनके क्रांतिकारी व्यक्तित्व और विचारों का द्योतक है |
दिनकर जी के हृदय में उफनता राष्ट्रप्रेम और धधकती क्रांति की ज्वाला है | तथा कवि क्रांति का सजग – सशक्त दूत है इसलिए वाणी में विद्रोह का होना स्वाभाविक है | समाज की दुर्दशा देखकर उनका मन बिलख़ उड़ता है और फिर वे शोषित – दलित – पीड़ित , कुचलित लोगों को अपने कर्तव्य के लिए क्रांति का संदेश देकर सचेत करते हैं | कब की क्रांतिकारी लेखनी से कोई भी अछूता नहीं रहा है |
रामधारी सिंह दिनकर की भाषा (Language)
दिनकर जी की भाषा की सबसे बड़ी विशेषता है – अभिव्यक्ति की सटीकता व सुस्पष्टता | दिनकर जी की भाषा शुद्ध और परिमार्जित खड़ीबोली है इनकी भाषा में संस्कृत के तमाम शब्दों का भी अधिक मात्रा में प्रयोग हुआ है दिनकर जी की भाषा सहज प्रवाहमयी है मुहावरों और कहावतो के प्रयोग से भाषा सजीव और ओजमयी हो गई है | विषय के अनुरूप दिनकर जी की भाषा सदैव परिवर्तित होती रहती है |
रामधारी सिंह दिनकर की शैली
ओज और प्रसाद इनकी शैली के प्रधान गुण है | दिनकर जी की शैली को तीन भागों में विभाजित किया गया है विवेचनात्मक शैली, उद्धरण शैली और सूक्ति शैली | इनकी गद्य की प्रमुख शैली विवेचनात्मक ही है | यह शैली प्रभावोत्पादक तथा सारयुक्त है इस प्रकार दिनकर जी एक चतुर भाषा – शिल्पी और कुशल शैलीकार भी हैं
रामधारी सिंह दिनकर की रचनाएँ – Ramdhari Singh Dinkar ki Rachnaye?
दिनकर जी मूल्यत: सामाजिक चेतना के कवि थे इनके व्यक्तित्व की छाप इनकी प्रत्येक रचना में स्पष्ट दिखाई देती है इनकी प्रमुख काव्य रचनाओं का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है –
गद्य ग्रंथ – (Prose treatise)
अर्धनारीश्वर, मिट्टी की ओर, रेती के फूल, बट पीपल, उजली आग, भारतीय संस्कृति के चार अध्याय तथा हमारी सांस्कृतिक एकता आदि |
काव्य ग्रंथ (Poetry)
प्राण भंग, रेणुका, रसवंती सामधेनी, बादू , हुंकार, रश्मिरथी, परशुराम की प्रतीक्षा आदि |
- रेणुका – इस कृति में अतीत के गौरव के प्रति कवि का आदर – भाव तथा वर्तमान की नीरसता से दु:खी मन की वेदना का परिचय मिलता है |
- हुंकार – इसका भी रचना में वर्तमान तथा के प्रति आक्रोश व्यक्त हुआ है |
- रसवंती – इस रचना में सौन्दर्य का काव्यमय वर्णन हुआ है |
- सामधेनी – इसमें सामाजिक चेतना, स्वदेश – प्रेम तथा विश्व – वेदना संबंधी कविताएं संकलित हैं |
महाकाव्य – (Epic)
कुरुक्षेत्र और उर्वशी |
- कुरुक्षेत्र – इनमें “ महाभारत” के “शांति – पर्व” के कथानक को आधार बनाकर वर्तमान परिस्थितियों का चित्रण किया गया है |
- उर्वशी – दिनकर जी काव्य – प्रतिभा का चरमोत्कर्ष उनके नाटकीय कथाकाव्य “उर्वशी” में दृष्टिगत होता है ||
बाल – निबंध (Child Essay)
मिर्च का मजा, सूरज का ब्याह, चित्तौड़ का सांका आदि | दिनकर जी की गद्य – रचनाओं में उनका विराट् ग्रंथ “ संस्कृति के चार अध्याय ” है | दिनकर जी की प्रथम कृति “ प्राण – भांग” तथा अंतिम कृति “हारे के हरि नाम” है |
रामधारी सिंह दिनकर हिंदी साहित्य में स्थान – (Place in hindi literature)
रामधारी सिंह दिनकर की गाना आधुनिक युग के सर्वश्रेष्ठ कवियों में की जाती है हिंदी काव्य जगत में क्रांति, ओज और प्रेम के सर्जक के रूप में उनका योगदान सदैव स्मरणीय रहेगा | विशेष रुप से राष्ट्रीय चेतना एवं जागृति उत्पन्न करने वाले कवियों में उनका विशिष्ठ स्थान है | दिनकर जी सह्दय कवि और कुशल गति कार के रूप में साहित्य जगत में जाने जाते हैं | दिनकर जी भारतीय संस्कृति के रक्षक, क्रांतिकारी चिंतक, अपने युग का प्रतिनिधित्व करने वाले अमर कवि और भारतीय जन – जीवन के निर्भीक शंखनाद थे |
दिनकर जी की सबसे बड़ी विशेषता है , उनका समय के साथ निरंतर गतिशील रहना | यह उनके क्रांतिकारी व्यक्तित्व और ज्वलंत प्रतिभा का परिचायक है | इन्होंने राष्ट्र की आशाओं – आकांक्षाओं को सदा वाणी दी है | फलस्वरुप गुप्त जी के बाद यही राष्ट्रकवि पद के सच्चे अधिकारी बने और इन्हें “ युग – चरण” , “राष्ट्रीय – चेतना का वैतालिक” और “ जन – जागरण का अग्रदूत” जैसे विशेषणों से भी विभूषित किया गया |
“यह हिंदी के गौरव हैं, इन्हें पाकर सचमुच हिंदी कविता धन्य हुई”
FAQs – रामधारी सिंह ‘दिनकर’
Ans. अर्धनारीश्वर, मिट्टी की ओर, रेती के फूल, बट पीपल, उजली आग, भारतीय संस्कृति के चार अध्याय, प्राण भंग, रेणुका, रसवंती सामधेनी, बादू , हुंकार, रश्मिरथी, परशुराम की प्रतीक्षा, कुरुक्षेत्र और उर्वशी, मिर्च का मजा, सूरज का ब्याह, चित्तौड़ का सांका आदि |
Ans. रामधारी सिंह दिनकर जी का जन्म 23 सितंबर 1908 ई० ( संवत् 1965 वि.) में हुआ था
Ans. 65 years ( 23 सितंबर 1908 ई० ( संवत् 1965 वि.) – 24 अप्रैल सन् 1974 (संवत् 2031 बि०))
Ans. रामधारी सिंह दिनकर जी के माता का नाम श्रीमती मनरूप देवी था | तथा इनके पिता का नाम श्री रवि सिंह था|
Ans. उर्वशी (राष्ट्रीय ज्ञान पीठ का पुरस्कार, पदम भूषण), संस्कृत के चार अध्याय (साहित्य अकादमी, द्विवेदी पदक,डी० लिट्०)
Ans. रामधारी सिंह दिनकर का मृत्यु 24 अप्रैल सन् 1974 (संवत् 2031 बि०) में हुआ |
Ans. रश्मिरथी, कुरुक्षेत्र, उर्वशी, संस्कृत के चार अध्याय आदि |
Ans. रामधारी सिंह दिनकर का जन्म बिहार राज्य में स्थित मुंगेर जिले के सिमरिया घाट नामक गांव में हुआ था |
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