सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ – Suryakant Tripathi Nirala Biography in Hindi

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आज के इस लेख में हम सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ (Suryakant Tripathi Nirala) का जीवन परिचय पढेंगे। Suryakant Tripathi Nirala Biography in Hindi को आप अपने Notebook में लिख सकते है नीचे दिए गये सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ का जीवन परिचय आप किसी भी परीक्षा में लिख सकते है और अच्छा अंक प्राप्त कर सकते है।

Suryakant Tripathi Nirala Biography in Hindi
Suryakant Tripathi Nirala Biography in Hindi

“महात्मा कबीर के बाद हिन्दी साहित्य – जगत में यदि किसी फक्कड़ और निर्भीक कवि का जन्म हुआ तो वो थे — महाकवि निराला जी |”

विषय-सूची

सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला” जी —

सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला (Suryakant Tripathi Nirala) एक ऐसे विशिष्ट रचनाकार है, जो अपने नाम के अनुरूप हर क्षेत्र में निराले है। छायावाद की वृहतयी और चतुष्टयी में भी उनका सम्मानित स्थान है। निराला के काव्य में कबीर का फक्कड़पन और निर्भीकतासूफियों का सादापन, सूर – तुलसी की प्रतिभा और प्रसाद की सौन्दर्य चेतना साकार हो उठी है। वे एक ऐसे विद्रोही कवि थे, जिन्होंने निर्भीकता के साथ अनेक रुढ़ियों को तोड़ डाला और काव्य के क्षेत्र में अपने नवीन प्रयोगों से युगान्तरकारी परिवर्तन किए | निराला जी ‘यथा नाम तथा गुण‘ के सबल प्रमाण थे | निराले व्यक्तित्व के कारण इन्हें सैकड़ों में सरलता से पहचाना जा सकता था।

जिस ओर इनकी लेखनी चली, उधर से ही विजयिनी होकर लौटी | अपनी उग्र स्वच्छंदता और फक्कड़पन में निराला कबीर से तुलनीय हैं | दोनों की करुणा दिनों के लिए फूट – फूट बहती रही | स्वाभिमान भी दोनों में ऊंची श्रेणी का था | अंतर केवल इतना ही था कि एक संत पहले और कवि बाद में था और दूसरा कवि पहले और संत बाद में था | ऐसा स्वाभिमानी और ओजस्वी व्यक्तित्व वाला ‘कवि निराला‘ पार्थिव शरीर से ना रहते हुए भी, जन-जन के हृदय में अमर है और अमर रहेगा |

सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ का जीवन परिचय – Suryakant Tripathi Nirala Biography in Hindi

नामसूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’
जन्म28 फरवरी सन् 1899 ई०
जन्म – स्थानमहिषादल
मृत्यु15 अक्टूबर 1961 ई०
मृत्यु – स्थानप्रयाग (इलाहाबाद)
पिता का नामपंडित रामसहाय त्रिपाठी
माता का नामकोई साक्ष्य – प्रमाण प्राप्त नहीं
पत्नीमनोहरा देवी
पुत्रीसरोज

सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ प्रारम्भिक जीवन— Suryakant Tripathi Nirala Biography in Hindi

अपने युग की काव्य – परम्परा के प्रति प्रबल विद्रोह का भाव लेकर काव्य – रचना करने वाले महाकवि निराला को हिंदी – काव्य जगत में एक विशिष्ट कवि के रूप में जाना जाता है | निराला जी को अपने प्रारंभिक जीवन में अनेक संकटों का सामना करना पड़ा | उनके पिता पंडित रामसहाय जी ने महिषादल में नौकरी कर ली थी | वहां की रियासत में उनका बड़ा सम्मान था | उस समय उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी थी , अतः उन्होंने अपने बालक का पालन – पोषण बड़े दुलार – प्यार से किया | जब निराला जी मात्र 3 वर्ष के थे तभी उन्हें मातृ – स्नेह से वंचित होना पड़ा दुर्भाग्यवश उनकी मां परलोक सिधार गयी |

तेरह वर्ष की अल्पायु में ही साहित्यिक अभिरुचि से सम्पन्न मनोहरा देवी से इनका विवाह हुआ | लेकिन वह भी शीघ्र ही इनमें साहित्यिक संस्कार जगाकर एक पुत्र और पुत्री का भार इनके ऊपर छोड़ कर इस संसार से विदा हो गयी | सन् 1919 ईस्वी की महामारी में इनकी चाचा एवं पिता की भी मृत्यु हो गयी | पिता की मृत्यु के बाद उन्होंने अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए महिषादल में नौकरी कर ली | किन्तु स्वजनों के स्नेह से वंचित होने के कारण उनके हृदय को बड़ा आघात लगा और नौकरी छोड़कर वह घुमक्कड़ बन गये | इस बीच उन्हें पर्याप्त आर्थिक संकटों से जूझना पड़ा | 1942 ईस्वी तक किसी प्रकार निराला जी लखनऊ में रहे | बाद में वे प्रयाग आ गये |

यहां उन्हें परम प्रिय युवा एवं विवाहिता पुत्री सरोज की दु:खद मृत्यु का सामना करना पड़ा | सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ जी अपनी इस विवाहिता पुत्री व आर्थिक दुरवस्था एवं काल के क्रूर थपेड़ों से चोट खाकर वे मानसिक दृष्टि से विक्षिप्त से हो गये | उनमें दार्शनिकता का समावेश होता गया | मैथिलीशरण गुप्तसुमित्रानंदन पंत एवं महादेवी वर्मा से उन्हें पर्याप्त आत्मीयता मिली | विषम परिस्थितियों एवं जीवन – संघषों ने उन्हें बाहर से तो पर्याप्त कठोर बना दिया, पर उनका हृदय भीतर से मृदुल एवं कुसुम – कोमल बना रहा | जो भी हो, जीवन में प्रतिकूलता एवं व्यथा झेलते हुए वे थक से गए थे | अतः इनका पारिवारिक जीवन अत्यन्त कष्टमय रहा |

जन्म – स्थान—

स्वच्छन्दतावादी भावधारा के कवियों में सर्वाधिक अनोखे व्यक्तित्व की गरिमा से मण्डित ‘कविवर निराला‘ का जन्म बंगाल प्रांत के महिषादल राज्य के मेदिनीपुर जिले की महिषादल नामक रियासत में 28 फरवरी सन् 1899 ई० में हुआ था |

माता – पिता —

मुक्त -छन्द के प्रवर्तक महाकवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ के पिता का नाम पंडित रामसहाय त्रिपाठी था | तथा इनके माता के नाम के सम्बन्ध में हिंदी – साहित्य में कोई साक्ष्य – प्रमाण प्राप्त नहीं है

सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ जी के बचपन का नाम —

सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ (Suryakant Tripathi Nirala) जी के बचपन का नाम ‘सूर्यकुमार‘ था |

सूर्यकान्त त्रिपाठी जी का नाम ‘निराला’ क्यों पड़ा ? —

सूर्यकान्त त्रिपाठी की माता जी सूर्य का व्रत रखती थी तथा रविवार को ही ‘निराला’ का जन्म हुआ, अतः पहले उनका नाम सूर्यकुमार रखा गया | बाद में इनका यही नाम सूर्यकान्त हो गया और उनके विशिष्ट व निराले स्वभाव के कारण लोग उन्हें ‘निराला‘ कहने लगे | इस प्रकार इनका नाम सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला‘ पड़ा |

शिक्षा —

सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ (Suryakant Tripathi Nirala) जी की प्रारंभिक शिक्षा – व्यवस्था महिषादल के हाई स्कूल में की गई, पर वह पध्दति उन्हें कम रुचिकर लगी | राज्य में समय-समय पर संगीतज्ञो का आना – जाना लगा रहता था, अतः उनका रुझान संगीत की ओर भी गया | बचपन से ही सदग्रंथों के अवलोकन से दर्शन – शास्त्र के अध्ययन में भी उनकी रुचि जगी | रामकृष्ण परमहंस तथा स्वामी विवेकानंद से भी बहुत प्रभावित थे | स्कूली शिक्षा तो उनकी नवे दर्जे तक ही हुई थी, किंतु स्वाध्यय से उन्होंने हिंदी, अंग्रेजी, बँगला एवं संस्कृत का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया था | संगीतकला में उनकी अच्छी अभिरुचि थी |

निराला जी का स्वभाव एवं व्यक्तित्व —

हिंदी के साहित्यकारों और कवियों में निराला – जैसे व्यक्तित्व के लोग बहुत कम मिलेंगे | उनमें पौरुष का हुंकार था, वाणी का और था, जीवन की मस्ती थी, विचारों की अक्खड़ता थी और सबसे बढ़कर उनका स्वभाव था | निराला जी को बचपन से ही घुड़सवारी, कुश्ती और खेती का बड़ा शौक था | वे यथा – गुण तथा नाम की उक्ति को चरितार्थ करने वाले साधारण पुरुष थे | बहुत कवि एवं लेखक ऐसे होते हैं जिनकी कृतियों को पढ़कर उनका जो रूप सामने आता है वैसा ही या उससे भी अधिक भव्य -सबल उनका वास्तविक जीवन होता है |

निराला जी इसी प्रकार के अनन्य साधारण व्यक्ति थे | अपने उदार व निराले स्वभाव के कारण निराला जी को बार-बार आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था | आर्थिक आभावो के बीच ही पुत्री सरोज का देहांत हो गया | इस अवसादपूर्ण घटना से व्यथित होकर ही उन्होंने सरोज – स्मृति नामक कविता लिखी | दु:ख और कष्ट से परिपूर्ण उनके व्यक्तित्व में अहम की मात्रा बहुत अधिक थी | निराला जी अपने लिए कठोर तो दूसरों के लिए नितान्त कोमल थे | निराला जी का बाह्म आकर्षण से पूर्ण था |

प्रयाग में रहते हुए निराला जी अपने साहित्य में स्वयं तीर्थराज थे ; क्योंकि कविता की गंगा, कथा – साहित्य की यमुना और निबंध की सरस्वती, तीनों का संगम उनकी कृतियों को त्रिवेणी का महत्व प्रदान करने वाला है | वास्तव में निराला का व्यक्तित्व सबसे अनूठा, पर समग्र को अपने भीतर संजोये हुए अद्भुत विरोधाभास का प्रतीक था | उनके अंदर की विषमताओं ने ही उन्हें असाधारण, असामान्य और निराला बना दिया था |

सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ जी का रंग – रूप व वेश – भूषा—

निराला जी का शरीर पौरुष का प्रतीक था | उनका ऊंचा – पूरा, विशाल – पुष्ट शरीर, सतेज आँखे, तेजस्वी ललाट, आकर्षक केशराशि,घन – गम्भीर वाणी और ओजस्विनी मुद्रा एक बार भी दर्शन कर लेने वाले व्यक्ति के चित्र पर सदा के लिए प्रभाव डालने वाली थी | उनका शारीरिक गठन यूनानी देव – प्रतिमाओं का स्मरण कराने वाला था | “खादी का लम्बा पंजाबी कुर्ता, लूंगी, पैरों में चप्पल अथवा उसका भी अभाव, ऐसे देश में दारागंज की सड़कों से गुजरते हुए उन्हें कोई भी देख सकता था | कुछ समय पहले निराला का वेश – विन्यास बड़ा रोमांटिक था | धोती और कुर्ता साफ धुले हुए | इत्र से चुपड़ी हुई स्कन्ध केश राशि उनके व्यक्तित्व में एक नवीन आकर्षण भर देती थी |”

सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ जी का वैवाहिक जीवन—

निराला जी का विवाह 13 वर्ष की अल्पायु में ही सन् 1911 ई० में मनोहरा देवी से कर दिया गया | वे रूप – गुण सम्पन्न और सुशिक्षित युवती थी | उन्हें संगीत से प्रेम था तथा उस समय साहित्यिक जानकारी में वे निराला जी से आगे थी | इसलिए उनसे निराला जी बहुत प्रेरित – प्रभावित हुए | मनोहरा देवी प्राय: मायके में ही रही और अधिक दिनों तक कवि – पति का साथ ना दे सकी | दुर्भाग्यवश उनकी पत्नी स्वर्ग सिधार गयी | मात्र 20 वर्ष की आयु में निराला जी विधुर हो गये |

पुत्री—

सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ (Suryakant Tripathi Nirala) जी की प्रिय पुत्री का नाम “सरोज” था |

मृत्यु – स्थान—

निराला जी का देहावसान 15 अक्टूबर 1961 ई० रविवार को चित्रकार कमला शंकर के दारागंज प्रयाग (इलाहाबाद) वाले मकान में प्रात: लगभग 9 बजकर 23 मिनट पर हुआ था |

सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ जी द्वारा किए गए महत्वपूर्ण कार्य—

आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी से प्रभावित होकर इन्होंने कलकात्ता में अपनी रुचि के अनुरूप रामकृष्ण मिशन के पत्र का समन्वय का सम्पादन भार संभाला | उसके बाद मतवाला के सम्पादक मण्डल में सम्मिलित हुए | 3 वर्ष बाद लखनऊ आकर गंगा पुस्तकमाला का संपादन करने लगे | तथा सुधा के संपादकीय लिखने लगे | फक्कड़ और अक्खड़ स्वभाव के कारण यहां भी उनकी नहीं निभी और लखनऊ छोड़कर यह प्रयाग (इलाहाबाद) में रहने लगे | अपना शेष जीवन उन्होंने इलाहाबाद में ही स्वतंत्र रूप से काव्य – साधना करते हुए व्यतीत किया |

सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ साहित्यिक – परिचय—

वाणी के विरद् – पुत्र निराला जीवन भर अपने काव्य – सृजन को अर्थगाम्भीय, भव्यता, वेदना और अनुराग से भरते रहे | उसमें रंग और सुगंध है, आसक्ति और आनंद के झरनों का संगीत है तथा अनासक्ति एवं विषाद का स्वर भी है | उसे पढ़ते समय आनंद के अमृत – बिंदुओं का संस्पर्श होता है तो कभी मन का हर कोना अवसाद एवं वेदना की घनी काली परतो से घिरता भी जाता है |

अपनी उग्र स्वच्छन्दता और फक्कड़पन में निराला कबीर से तुलनीय हैं | वैसे ही मस्त – मौला स्वभाव वैसी ही ललकार, वैसा ही फक्कड़पन, वैसा ही क्रांतिकारी स्वर और वैसी ही प्रगाढ़ तन्मयता- दोनों की ओजभरी वाणी रूढ़ियों और बंधनों के विरोध में बेलगाम रही है | निराला ने भी लुकाठा लेकर अपना घर जलाकर ही साहित्य रचा था | इसके पीछे उस भारती के पुत्र ने अपना सब कुछ लुटा दिया, अपने आप लुट गया, पर मरते दम तक उस स्वाभिमानी, निर्भीक कवि ने हार नहीं मानी और साहित्यकार की सम्मान को सबसे ऊंचा रखा |

निराला ने विविध प्रकार के नवीन भावो एवं विचारों पर आधारित रचनाओं का सृजन किया | उन्होंने छंद संबंधित तत्कालीन नियमों को तोड़कर छंदमुक्त रचनाएं की और हिंदी काव्य के क्षेत्र में एक नए शिल्प का सूत्रपात किया | वर्तमान युग की छंदमुक्त कविताओं के सूत्रधार निराला ही थे | निस्संदेह वे एक ऐसे युग – प्रवर्तक साहित्यस्रष्टा थे जिन्होंने युगो से बहती हवा के रुख को हठात् मोड़ दिया | उसका पौरुष साहित्य की बलिवेदी पर चढ़कर बलिदान की अक्षर सुगंध बिखेर गया है | इस बलिदान को भी उन्होंने एक चुनौती के रूप में ही स्वीकार किया है — “मरण को जिसने वरा है, उसी ने जीवन भरा है | परा भी उसकी, उसी के अंक सत्य यशोधरा है ||” निराला जी हिंदी – साहित्य के युग प्रतिनिधि कवि थे |

कृतियाँ—

निराला बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न साहित्यकार थे | बंगला और पाश्चात्य साहित्य के अनुशीलन से प्रेरित होकर निराला ने सन् 1916 ई० में प्रकाशित अपनी रचना “जूही की कली” से हिंदी – जगत में अनुप्रवेश किया | इसमें स्वच्छंदतावादी काव्यधारा की संपूर्ण विशेषताएं निहित हैं | इसके बाद वे सतत काव्य – रचना में संलग्न रहे | उनकी अनेक रचनाओं का हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान है | सम्पूर्ण निराला साहित्य का विहंगावलोकन निम्न प्रकार से किया जा सकता है —

काव्य —

अनामिका, परिमल, गीतिका, अनामिका (दूसरा संग्रह ) तुलसीदास, कुकुरमुत्ता, अणिमा, अपरा, बेला, नये पत्ते, अर्चना, आराधना, गीतगुंज एवं सांध्य – काकली आदि |

उपन्यास—

अप्सरा, अलका, प्रभावती, निरुपमा, चोटी की पकड़, काले कारनामे एवं चमेली (अपूर्ण) !

कहानी – संग्रह—

लिली, सखी, सुकुन की बीबी एवं चतुरी चमार |

रेखाचित्र—

कुल्लीभाट, बिल्लेसुर बकरिहा |

निबंध – संग्रह—

प्रबन्ध – पद्म, प्रबन्ध – प्रतिभा एवं चाबुक |

आलोचना – ग्रंथ—

रविंद्र कविता कानन, ग्यारह बंगला उपन्यासों का हिंदी अनुवाद , तीन अप्रकाशित नाटक एवं दो जीवन – चरित्र |

अनुदित – कृतियां—

देवी चौधरानी, कपाल कुंडला, चंद्रशेखर, स्वामी विवेकानंद के भाषण, आनन्दमठ एवं हिंदी – बंगला – शिक्षा |

भाषा—

निराला की भाषा को चार वर्गों में विभक्त किया जा सकता है |

  1. पौढ़, सशक्त एवं ओजस्वी भाषा माधुरी पूर्ण समय भाषा |
  2. माधुर्यपूर्ण सौष्ठवमयी भाषा |
  3. सरल, सुबोध एवं व्यवहारिक भाषा |
  4. बोलचाल की चलती भाषा |

निराला जी ने स्पष्ट लिखा है कि—

“हम किसी भाव को जल्दी और आसानी से तभी व्यक्त कर सकेंगे, जब भाषा पूर्ण स्वतंत्र और भावो की सच्ची अनुगामिनी होगी |”

शैली—

शैली मनुष्य का स्वरूप है | वह उसके आन्तरिक भावों का प्रतिरूप है ढांचा है, नमूना है | महाप्राण निराला की शैली के कई रूप हैं | इनकी शैलियों को प्रमुख रूप से पांच भागों में विभक्त किया गया है —

  1. समास – प्रधान शैली |
  2. सरल – व्यावहारिक शैली |
  3. सुबोध एवं सौष्ठव – प्रधान शैली |
  4. व्यंग – प्रधान शैली |
  5. अलंकृत शैली |

हिंदी – साहित्य में स्थान—

हिंदी – साहित्य में निराला जी का गौरवपूर्ण स्थान है | साहित्य जगत में मुक्त – छंद के प्रणेता सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ है | ‘महाप्राण निराला’ नवीनता के कवि हैं | वे जीवन, साहित्य तथा समाज में सर्वत्र नवीनता के पक्षपाती तथा रूढ़ियों के कट्टर विरोधी हैं | वे छायावादी होने के साथ प्रगतिवादी और प्रगतिवादी होने के साथ ही दार्शनिक एवं अद्वितीय प्रतिभा के महान कवि हैं | उनके कृतित्व में छायावादी और प्रगतिवादी दोनों युगों की विचारधाराओं का सुंदर समन्वय है |

उनके काव्य में छायावाद, प्रगतिवाद, प्रयोगवाद और नई कविता की समस्त विशेषताएं साकार हुई हैं | उन्होंने छंद, भाषा और भाव आदि को नवीनता प्रदान की है | निराला पर बंग – साहित्य और उसकी शैली तथा उनकी द्वारा प्रतिपादित दर्शन पर स्वामी विवेकानंद के दार्शनिक सिद्धांतों का प्रभाव दृष्टिगत होता है | वह तत्वज्ञानी और रहस्यवादी भी हैं, साथ ही उनमें सामाजिक चेतना भी उत्कृष्ट रूप में विद्यमान है | उनकी इन्हीं विशेषताओं ने उन्हें हिंदी साहित्य – जगत में निराला स्थान प्रदान किया |

“इन्होंने अपने निराले व्यक्तित्व से हिंदी साहित्य – जगत को जो निराला पथ दिखाया, निराला रूप दिया, निराली दिशा दी और निराली वाली प्रदान की उसके लिए हिंदी साहित्य संसार अपनी इस निराली विभूति को कभी विस्मृत न कर सकेगा”

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Biography / Education

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