इस आर्टिकल में हम तुलसीदास का जीवन परिचय (Tulsidas Ka Jivan Parichay) पढेंगे, तो चलिए विस्तार से पढ़ते हैं Tulsidas Biography in Hindi – बहुत ही सरल भाषा में लिखा गया है जो परीक्षा की दृष्टि से बहुत ही उपयोगी है।
“तुलसी एक ऐसी महत्वपूर्ण प्रतिभा थे, जो युगों के बाद एक बार आया करती है तथा ज्ञान-विज्ञान, भाव-विभाव अनेक तत्तों का समाहार होती है।”

गोस्वामी तुलसीदास जीः- रामभक्ति शाखा के कवियों में गोस्वामी तुलसीदास (Goswami Tulsidas) सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं। इनका प्रमुख ग्रन्थ “श्रीरामचरितमानस” भारत में ही नहीं वरन् सम्पर्ण विशव में विख्यात है। यह भारतीय धर्म और संस्कृति को प्रतिबिम्बित करनेवाला एक ऐसा निर्मल दर्पण है, जो सम्पूर्ण विश्व में एक अनुपम एवं अतुलनीय ग्रंथ के रूप में स्वीकार किया जाता है। इसलिए तुलसीदास जी न केवल भारत के कवि वरन् सारी मानवता के, सारे संसार के कवि माने जाते हैं। इनकी प्रतिभा इतनी विराट थी कि उसने भारतीय संस्कृति की सारी विराटता को आत्मसात् कर लिया था। ये महान द्रष्टा थे, परिणामतः स्रष्टा थे। ये विश्व कवि थे और हिन्दी साहित्य के आकाश थे, सब कुछ इनके घेरे में था। Tulsidas Biography in Hindi.
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Tulsidas Ka Jivan Parichay – Tulsidas Biography in Hindi
नाम | तुलसीदास |
जन्म | संवत् 1554 (सन् 1497 ई०) |
जन्म – स्थान | राजापुर(बाँदा) |
मृत्यु | सवत् 1680 पि० (सन् 1623 ई०) |
मृत्यु – स्थान | असीघाट |
पिता का नाम | आत्मा राम दुबे |
माता का नाम | हुलसी |
गुरु | बाबा नरहरिदास |
भाषा | अवधि और ब्रज |
रचनाएँ | श्रीरामचरितमानस, विनयपत्रिका, कवितावली, गीतावली, दोटावली |
गोस्वामी तुलसीदास का जीवन परिचय, रचनाएँ, भाषा – शैली और साहित्यिक परिचय लिखिए। Tulsidas Ka Jivan Parichay
तुलसीदास का प्रारम्भिक जीवन (Tulsidas early life)
तुलसीदास जी का प्रारम्भिक जीवन अनेक संकटों से घिरा हुआ था। इनका जन्म अमुक्तमूल नक्षत्र में हुआ था। इनका जब जन्म हुआ तब ये पाँच वर्ष के बालक मालूम होते थे, दाँत सब मौजूद थे और जन्मते ही इनके मुख से राम का शब्द निकला। आश्चर्यचकित होकर इन्हें राक्षस समझकर माता-पिता ने इनका त्याग कर दिया। ये दाने-दाने के लिए द्वार-द्वार भटकने लगे। जनश्रुतियों के आधार पर यह कहा जाता है कि तुलसीदास का बचपन अत्याधिक कष्टमय था। स्वयं तुलसी ने अपनी कृतियों में कहा है कि वे बाल्यकाल से ही माता-पिता द्वारा परित्यक्त कर दिये गये तथा संतत्प एवं अभिशप्त की तरह इधर-उधर घूमा करते थे—
“माता पिता जग जायि तज्यो, विधि हूँ न लिखी कुछ भाल भलाई।
बारे ते ललात बिलतात द्वार द्वार दीन, जानत हौं चारि फल चारि ही चनक कौं।
लगभग 20 वर्षों तक इन्होंने समस्त भारत का व्यापक भम्रण किया, जिससे इन्हें समाज को निकट से देखने का सुअवसर प्राप्त हुआ। ये कभी काशी, कभी अयोध्या और कभी चित्रकूट में निवास करते रहे। अधिकांश समय इन्होंने काशी में ही बिताया।
तुलसीदास का जन्म-स्थान (Birth place of Tulsidas)
बेनीमाधव प्रणीत मूल गोसाई चरित तथा महात्मा रघुवरदास रचित “तुलसीचरित” में तुलसीदास जी का जन्म विक्रमी संवत् 1554 (सन् 1497 ई०) बताया जाता है। बेनीमाधवदास की रचना में गोस्वामी जी की जन्म तिथि श्रावण शुक्ल सप्तमी का भी उल्लेख है। इस सम्बन्ध में निम्नलिखित दोहा प्रसिद्ध है—
पन्द्रह सौ चौवन बिसै, कालिंदी के तीर।
श्रावण सुक्ला सप्तमी, तुलसी धरयो शरीर।
तथा निष्कर्ष रूप में जन श्रुतियों एवं सर्वमान्य तथ्यों के अनुसार इनका जन्म सन् 1532 ई०(संवत 1589 वि०) को वर्तमान चित्रकूट जिले के अन्तर्गत राजापुर(बाँदा) के सरयूपारीण ब्राह्मण कुल में माना जाता है।
माता-पिता
गोस्वामी तुलसीदासजी के माता का नाम श्रीमती हुलसी एवं पिता का नाम श्री आत्मा राम दुबे था।
तुलसीदास के बचपन का नाम (Tulsidas childhood name)
लोकनायक गोस्वामी तुलसीदास जी के बचपन का नाम तुलाराम था।
तुलसीदास के गुरु (Guru of Tulsidas)
गोस्वामी तुलसीदास जी के गुरु बाबा नरहरिदास जी थे। तुलसीदास जी ने अपने इन्हीं गुरु का स्मरण इस पंक्ति में किया है—
‘बन्दौ गुरुपद कंज, कृपासिन्धु नर-रूप हरि।’
तुलसीदास की शिक्षा (Tulsidas education)
तुलसीदास जी का पालन-पोषण प्रसिद्ध सन्त बाबा नरहरिदासजी ने किया और इन्हें ज्ञान एवं भक्ति की शिक्षा प्रदान की। तुलसीदास जी बाबा नरहरिदासजी को अपना गुरु मानते थे। और उन्हीं से वेदशास्त्र, इतिहास पुराण और काव्य कला का अध्ययन करके तुलसी महान् विद्वान हुए।
गोस्वामी तुलसीदास का गार्हस्थ्य जीवन व वैराग्य की भावना
कविपय प्रबल जनश्रुतियों और बाह्म साक्ष्यों के आधार पर 23 – 24 वर्ष की अवस्था में बदरिका ग्राम के निवासी दीनबन्धु पाठक की कन्या “रत्नावली” से उनका विवाह हुआ | प्रसिध्द है कि रत्नावली की फटकार से ही इनके मन में वैराग्य उत्पन्न्य हुआ | तुलसीदास जी अपनी रूपवती पत्नी के प्रति अत्याधिक आसक्त थे | कहा जाता है कि एक दिन जब तुलसीदास घर पर नहीं थे तब रत्नावली बिना बताये ही मायके चली गयी | घर आने पर रत्नावली को न पाकर उसी क्षण जोरो की वर्षा होने व नदी में अत्याधिक बाढ़ होते हुए भी प्रेमातुर तुलसी अर्ध्दरात्रि में ही आंधी – तूफान का सामना करते हुए अपनी ससुराल जा पहुंचे | उन्हें इस अवस्था में देखकर पत्नी ने उन्हें धिक्कारते हुए कहा –
“लाज न आवत आपको , दौरे आयउ साथ |
धिक – धिक ऐसे प्रेम को, कहाँ कहौं मैं नाथ |
अस्थि चर्म माय देह मम, तामें ऎसी प्रीति |
तैसी जो कहूँ राम में, होति न तब भवभीति ||”
कहा जाता है कि पत्नी के इसी फटकार ने तुलसी के मानस पटल को खोल दिया और वे अपने जीवन से विरक्त हो वैराग्य की ओर उन्मुख हुए पत्नी के एक ही व्यंग्य से आहत होकर ये घर – बार छोड़कर काशी आये और सन्यासी हो गये |
तुलसीदास की मृत्यु – स्थान (Tulsidas death place)
जीवन का अधिकांश समय इन्होने काशी में बिताया और यही सवत् 1680 पि० (सन् 1623 ई०) में श्रावन कृष्ण पक्ष तृतीया शानिवार को असीघाट पर तुलसीदास राम – राम कहते हुए परमात्मा में विलीन हो गये | इनकी मृत्यु के सम्बन्ध में निम्न दोहा प्रचलित है –
” संवत् सोलह सौ असी, असी गंग के तीर |
श्रावण कृष्णा तीज शन, तुलसी तज्यो शारीर|| “
गोस्वामी तुलसीदास जी को ‘लोकनायक’ क्यों कहा जाता है
“भारत का लोकनायक वही हो सकता है जो समन्वय कर सके | बुध्य समन्वयकारी थे, गीता में समन्वयवाद को अपनाया गया है, तुलसी भी समन्वयवादी थे |” कविकुल चूड़ामणि गोस्वामी तुलसीदास जी का अविर्भाव ऐसे युग में हुआ, जब धर्म, समाज और राजनीति के क्षेत्रो में सर्वत्र पारास्परिक वैषम्य एवं विभेद का ताण्डव नृत्य हो रहा था | तत्कालीन संत कवि सारे भारत में भावात्मक एकता स्थापित करने का प्रयास कर रहे थे | गोस्वामी जी उन्ही सन्त कवियों में से एक थे जिन्होंने तत्कालीन परिस्थिति का गहराई से अध्ययन एवं अनुशीलन करके समाज में व्याप्त विषमता एवं वैमनस्य को दूर करने का प्रयत्न किया गोस्वामी जी ने इस विकृत रूप को दूर करने के लिए समन्वयात्मक बुध्दि से काम लिया |
इस समन्वय के लिए तुलसी ने सामाजिक, पारिवारिक, अध्यात्मिक, आर्थिक, राजनैतिक आदि क्षेत्रो को चुना और इनमे समन्वय स्थापित करते हुए जन – जीवन में व्याप्त तत्कालीन घोर अशांति एवं अत्याचार आदि को दूर करने की सफल चेष्टा की | इसीलिए उनका सारा काव्य समन्वय की विराट् चेष्टा से ओत – प्रोत कहा जाता है और इसी समन्वयात्मक दृष्टिकोण के कारण ही तुलसीदास जी को ‘लोकनायक‘ कहा जाता है |
तुलसीदास का साहित्यिक परिचय (Literary Introduction of Tulsidas)
महाकवि तुलसीदाल एक उत्कृष्ट कवि ही नहीं, महान लोकनायक और तत्कालीन समाज के दिशा – निर्देशक भी है इनके द्वारा रचित महाकाव्य ‘श्रीरामचरितमानस‘ भाषा, भाव, उद्देश्य , कथावस्तु, चरित्र – चित्रण तथा संवाद की दृष्टि से हिंदी साहित्य का एक अद्भुत ग्रन्थ है | इसमे तुलसी के कवि, भक्त एवं लोकनायक रूप का चरम उत्कर्ष दृष्टिगोचर होता है | ‘श्रीरामचरितमानस‘ में तुलसी ने व्यक्ति, परिवार, समाज राज्य, राजा, प्रशासन, मित्रता, दाम्पत्य एवं भ्रातृत्व आदि का जो समाज का पथ – प्रदर्शन करता रहा है |
‘विनयपत्रिका’ ग्रन्थ में ईश्वर के प्रति इनके भक्त ह्रदय का समर्पण दृष्टिगोचर होता है | इसमे एक भक्त के रूप में तुलसीदास ईश्वर के प्रति दैन्यभाव से अपनी व्यथा – कथा कहते है | तुलसी की भक्ति राम के प्रति अनन्यभाव की है | जैसे चातक और बादल का प्रेम होता है | थिओक उसी प्रकार तुलसी की भक्ति चातक जैसी है जिसे केवल राम ही का बल हैं, उन्हीं पर उनका आस और विशवास टिका है –
एक भरोसा एक बल, एक आस विश्वास |
एक राम धनस्याम हित, चातक तुलसीदास ||
तुलसीदास एक विलक्षण प्रतिभा से सम्पन्न तथा लोकहित एवं समन्वय भाव से युक्त महाकवि थे | भाव – चित्रण, चरित्र – चित्रण एवं लोकहितकारी आदर्श के चित्रण की दृष्टि से इनकी काव्यात्मक प्रतिभा का उदाहरण सम्पूर्ण – विश्व – साहित्य में भी मिलाना दुर्लभ है |
तुलसीदास की रचनाएँ (Tulsidas Ki Rachnaye)
- श्रीरामचरितमानस
- विनयपत्रिका
- कवितावली
- गीतावली
- दोहावली
- बरवै रामायण
- रामलला नहछू
- श्रीकृष्ण गीतावली
- वैराग्य संदीपनी
- जानकी मंगल
- पार्वती मंगल
- रामाज्ञा प्रश्न
तुलसीदास की भाषा (Tulsidas language)
तुलसी का शब्द – भण्डार अत्यन्त विशाल है | गोस्वामी जी ने अपने समय की प्रचलित दोनों काव्य भाषाओं अवधि और ब्रज में समान अधिकार से रचना की है | भाषा भावाभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम होती है | भाषा पर जैसा अधिकार तुलसी का था वैसा शायद किसी अन्य कवि का नहीं था | भाषा के सम्बन्ध में – श्री वियोगी हरी का मत है – “भाषा के ऊपर गोस्वामी जी का पूरा अधिकार था | वे भाषा के पीछे – पीछे नहीं चलते थे वरन् भाषाए उनका अनुकरण किया करती थी |” इस प्रकार तुलसीदास ने अपनी विभिन्न कृतियों में परिस्थितियों के अनुकूल सशक्त भाषा का अधिकार पूर्ण प्रयोग किया है | वस्तुत: वे भाषा के सम्राट है |
तुलसीदास की शैली (Tulsidas style)
शैली की दृष्टि से भी तुलसी का काव्य उच्चकोटि की है तुलसी ने अपने समय में प्रचलित सभी काव्य शैलियों को अपनाया | वे इस प्रकार है –
- भाटो की कवित्त – सवैया शैली
- रहीम की बरवै शैली
- जायसी की दोहा – चौपाई शैली
- सूर की गेय – पद (गीतिकाव्य ) शैली
- वीरगाथाकाल की छप्पय शैली
तुलसी के विभिन्न पद्य – शैलियों के सफल विधान की ओर दृष्टिपात करने पर कोई भी व्यक्ति चकित हुए बिना नहीं रह सकता |
तुलसीदास का साहित्य में स्थान (Tulsidas place in literature)
वास्तव में तुलसी हिंदी – साहित्य की महान विभूति है | उन्होंने रामभक्ति की मंदाकिनी प्रवाहित करके जन – जन का जीवन कृतार्थ कर दिया | इस प्रकार रस,भाषा, छन्द, अलंकार, नाटकीयता , संवाद – कौशल आदि सभी दृष्टियों से तुलसी का काव्य अव्दितीय है | उनके साहित्य में रामगुणगान , भक्ति – भावना , समन्वय , शिवम् की भावना आदि अनेक ऐसी विशेषताएं देखने को मिलाती है , जो उन्हें महाकवि के आसन पर प्रतिष्ठित करती है | इनका सम्पूर्ण काव्य समन्वयवाद की विराट चेष्ठा है | ज्ञान की अपेक्षा भक्ति का राजपथ ही इन्हें अधिक रुचिकर लगता है | महाकवि हरिऔधजी ने सत्य ही लिखा है कि तुलसी की कला का स्पर्श प्राप्तकर स्वंय कविता ही सुशोभित हुई है —
“कविता करके तुलसी न लेस |
कविता लसी पा तुलसी की कला ||”
गोस्वामी तुलसीदास जी एक ऐसी महान विभूति जिनको पाकर कविता – कामिनी धन्य हो गयी
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Tulsidas Ka Jivan Parichay: इसे लेख में मैंने तुलसीदास (Goswami Tulsidas) जी का प्रारंभिक जीवन, जन्म – स्थान, माता – पिता,बचपन का नाम, तुलसीदास की शिक्षा, गुरु, विवाह, मृत्यु – स्थान, तुलसीदास जी को ‘लोकनायक’ क्यों कहा जाता है, गार्हस्थ्य जीवन व वैराग्य की भावना, साहित्यिक – परिचय, तुलसीदास की रचनाएँ, भाषा – शैली और हिंदी – साहित्य में स्थान के बारे में पूरी जानकारी शेयर की है अगर आपका कोई सवाल या सुझाव है तो आप नीचे दिए गए Comment Box में जरुर लिखे ।