तुलसीदास की रचनाएँ – Tulsidas Ki Rachnaye

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इस आर्टिकल में हम तुलसीदास की रचनाएँ (Tulsidas Ki Rachnaye) पढेंगे, तो चलिए विस्तार से पढ़ते हैं तुलसीदास की रचनाएँ – Tulsidas Ki Rachnaye. जो परीक्षा की दृष्टि से बहुत ही उपयोगी है।

Tulsidas Ki Rachnaye

गोस्वामी तुलसीदास जी रामभक्ति शाखा के कवियों में गोस्वामी तुलसीदास सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं। इनका प्रमुख ग्रन्थ “श्रीरामचरितमानस” भारत में ही नहीं वरन् सम्पर्ण विशव में विख्यात है। तुलसीदास जी का जन्म विक्रमी संवत् 1554 (सन् 1497 ई०) बताया जाता है। गोस्वामी तुलसीदासजी के माता का नाम श्रीमती हुलसी एवं पिता का नाम श्री आत्मा राम दुबे था। गोस्वामी तुलसीदास जी के गुरु बाबा नरहरिदास जी थे।

तुलसीदास की रचनाएँ – Tulsidas Ki Rachnaye

यद्दपि नम्रतावश तुलसी ने अपने को कवि नहीं मन पर काव्यशास्त्र के सभी लक्षणों से युक्त इनकी रचनाएँ हिंदी का गौरव है। श्रृगार का जैसा मर्यादित वर्णन इन्होने किया है वैसा आज तक किसी दूसरे कवि से न बन पड़ा।

तुलसीदास की रचनाएँ (Tulsidas Ki Rachnaye):

  • श्रीरामचरितमानस
  • विनयपत्रिका
  • कवितावली
  • गीतावली
  • दोहावली
  • बरवै रामायण
  • रामलला नहछू
  • श्रीकृष्ण गीतावली
  • वैराग्य संदीपनी
  • जानकी मंगल
  • पार्वती मंगल
  • रामाज्ञा प्रश्न

तुलसीदास की रचनाएँ: गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा लिखित 37 ग्रन्थ माने जाते है किन्तु प्रामाणिक ग्रन्थ 12 ही मान्य है, जिनमे पांच प्रमुख है – श्रीरामचरितमानस, विनयपत्रिका, कवितावली, गीतावली, दोटावली

श्रीरामचरितमानस

अवधी भाषा में रचित रामचरितमानस बड़ा लोकप्रिय ग्रन्थ है | विश्व साहित्य के प्रमुख ग्रन्थो में इसकी गणना की जाती है | तुलसी के ग्रन्थ ‘श्रीरामचरितमानस‘ दिशाहीन भारतीय समाज को प्रत्येक क्षेत्र में मार्ग दिखाया और उसके सामने जीवन के ऐसे आदर्श को रखा जो वास्तव में संसार के प्रत्येक मनुष्य और प्रत्येक समाज के लिए आदर्श हो सकता है।

“एक भरोसा एक बल, एक आस – विश्वास।
रामचरित – मानस रचौं, जय हो तुलसीदास।।”

विनयपत्रिका

इसमे भक्त के रूप में तुलसी ने अपने ह्रदय की ग्लानि, दैन्य, विरक्ति , रिराशा , कुण्ठा , पीड़ा , एकनिष्ठता और विश्वास का सुन्दर परिचय दिया है उनका भक्ति – भाव उनके अंत: करण का इतिहास है ‘विनयपत्रिका‘ में उनका सर्वोत्कृष्ट भक्त रूप मुखरित हुआ है।

कवितावली

भावानुरूप भाषा ही इस ग्रन्थ की सबसे बड़ी विशेषता है इसमे राम के शौर्य का वर्णन एवं हनुमान का लंकादहन सर्वश्रेष्ठ है।

गीतावली

इस ग्रन्थ की अधिकांश कथावस्तु ‘रामचरितमानस’ से मिलती – जुलती | उस समय की लगभग समस्त सग – रानिगियाँ गीतावली में समाहित है।

दोहावली

इन दोहों में सामान्यत: नीति – धर्म, भक्ति – प्रेम, राम – महिमा, खल – निन्दा, सज्जन – प्रशंसा आदि वर्णित है | इस ग्रन्थ का काव्य – गुण उच्यकोटि का है।

अन्य ग्रन्थ: बरवै रामायण , रामलला नहरू , श्री कृष्णा गीतावली , वैराग्य संदीपनी , जानकी मंगल, पार्वती मंगल , रामाज्ञा प्रश्नावली।

बरवै रामायण

इस ग्रन्थ में 69 बरवै छन्दों में ‘रामचरितमानस‘ की पूरी कथा वर्णित है | बरवै छंद पहले से ललित तो माना जाता था , साथ ही तुलसी जैसे महाकवि के हाथ में पड़कर यह उत्कृष्ट काव्य सौन्दर्य से और भी प्रोद्भाषित हो उठा है |

रामलला नहछू

इस ग्रन्थ की गणना रसिक पूर्ण श्रृंगारिक ग्रंथो में की गई है | लोक – जीवन का सजीव एवं पूर्ण चित्र उपस्थित करने में यह रचना अकेली ही बहुत ललित एवं सशक्त है | इस रचनाकाल सवत् 1611 माना गया है।

श्रीकृष्ण गीतावली

इस ग्रन्थ का रचनाकाल संo 1658 विo है | इसकी भी रचना ब्रजभाषा में हुई है | विभिन्न सुन्दर राग – रागनियों में बंधे 61 पदों में गोस्वामी जी ने श्रीकृष्ण के चरित्र का गान किया है।

वैराग्य संदीपनी

यह कवि की प्रारम्भिक रचना है | इस ग्रन्थ का रचनाकाल संवत् 1614 वि० है | इसमे कुल 62 दोहे चौपाइयों में राम लक्ष्मण सीता का ध्यान , सन्त स्वभाव वर्णन और शान्ति वर्णन है |

जानकी मंगल

राम – जानकी विवाह पर मंगल छंद में यह ग्रन्थ लिखा गया है |

पार्वती मंगल

इस ग्रन्थ में शिव – पार्वती के विवाह का वर्णन है | इस ग्रन्थ का रचनाकाल सं० 1643 वि० | इसमें कुल 164 छन्द है | काव्य – सौन्दर्य और प्रौढता की दृष्टि से यह उच्चकोटि की रचना मानी जाती है |

रामाज्ञा प्रश्न

इस ग्रन्थ का रचनाकाल सं० 1621 वि० है | इस ग्रन्थ में कुल मिलाकर 243 छन्द है |

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