वासुदेव शरण अग्रवाल का जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय, भाषा – शैली और रचनाएं

इस लेख में हम डाॅ० वासुदेव शरण अग्रवाल का जीवन परिचय पढेंगे, तो चलिए विस्तार से पढ़ते हैं वासुदेव शरण अग्रवाल का जीवन परिचय, साहित्यिक परिचय, भाषा – शैली और रचनाएं. जो परीक्षा की दृष्टि से बहुत ही उपयोगी है।

डाॅ० वासुदेव शरण अग्रवाल का जीवन परिचय

नामडाॅ० वासुदेव शरण अग्रवाल
जन्मसन् 1904 ई०
जन्म – स्थानलखनऊ (उ० प्र०)
पिताकोई साक्ष प्रमाण प्राप्त नहीं है।
माताकोई साक्ष प्रमाण प्राप्त नहीं है।
मृत्युसन् 1967 ई०
रचनाएँकल्पवृक्ष, पृथिवीपुत्र, भारत की एकता, मातृभूमि आदि
वासुदेव शरण अग्रवाल का जीवन परिचय

प्रस्तावना

डाॅ० वासुदेवशरण अग्रवाल हिन्दी के महान साहित्यकार है। वे भारतीय संस्कृति और पुरातत्व के मर्मज्ञ विध्दान के रुप में प्रतिष्ठित रहे हैं। इन विषयों को लालित्यपूर्ण एवं परिमार्जित भाषा तथा उत्कृष्ठ शैली में प्रस्तुत कर उन्होंने हिंदी साहित्य की महान सेवा की है | इनका निबन्ध साहित्य की हिन्दी साहित्य में अमूल्य निधि के रुप में स्वीकार किया जाता है | आजीवन साहित्य – साधना में संलग्न रहकर उन्होंने अनेक उत्कृष्ट कृतियों का सृजन किया | अग्रवाल हिंदी साहित्य जगत के उच्चकोटि के विचारक, समालोचक एवं निबन्धकार भी है। इनकी रचनाएँ भारतीय साहित्य की महान उपलब्धि के रूप में स्वीकार की जाती है। इनका नाम हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाता है |

जन्म

डॉ० वासुदेवशरण अग्रवाल का जन्म सन् 1904 ई० में हुआ था।

जन्म – स्थान

डॉ० वासुदेवशरण अग्रवाल का जन्म – स्थान लखनऊ (उ० प्र०) में हुआ था।

माता – पिता

डॉ० वासुदेवशरण अग्रवाल के माता – पिता के विषय मे कोई साक्ष प्रमाण प्राप्त नहीं है।

शिक्षा

डॉ० वासुदेवशरण अग्रवाल जी ने प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त की। इन्होंने ‘काशी हिन्दू विश्वविद्यालय‘ से एम० ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। लखनऊ विश्वविद्यालय ने ‘पाणिनिकालीन भारत’ शोध प्रबन्ध पर इनको पी० एच० डी० की उपाधि से विभूषित किया ।

मृत्यु

डाॅ० वासुदेवशरण अग्रवाल की मृत्यु सन् 1967 ई० मे हो गया ।

वासुदेव शरण अग्रवाल का साहित्यिक परिचय

इन्होंने प्रगौतिहासिक, वैदिक तथा पैराणिक साहित्य के मर्म का उद्घाटन किया और अपनी रचनाओं में संस्कृति और प्राचीन भारतीय इतिहास का प्रामाणिक रूप प्रस्तुत किया | हिन्दी निबंधकार के रूप में उनके साहित्यिक योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता है।

भाषा

अग्रवाल जी की भाषा विषयानुकूल, प्रौढ़ तथा परिमार्जित है और इनकी भाषा देशज शब्दों का प्रयोग किया है|

शैली

इनकी शैली का प्रधान रूप विवेचनात्मक है सामान्य इनके निबन्ध विचारात्मक शैली में ही लिखे गये है।

कृतियाँ

कल्पवृक्ष, पृथिवीपुत्र, भारत की एकता, मातृभूमि इनकी प्रमुख कृतियाँ है।

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