बिहारी लाल का जीवन परिचय हिंदी में – Bihari Lal Biography In Hindi

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इस आर्टिकल में हम बिहारी लाल का जीवन परिचय पढेंगे, तो चलिए विस्तार से पढ़ते हैं बिहारी लाल का जीवनी हिंदी में (कक्षा 7, 8, कक्षा 9, कक्षा 10, कक्षा 11 और कक्षा 12 के लिए) | Biharilal Ka Jivan Parichay –

बिहारी लाल हिन्दी रीतिकाल के अन्तर्गत उसकी भावधारा को आत्मसात् करके भी प्रत्यक्षत: आचार्यत्व न स्वीकर करने वाले मुक्त कवि है | कविवर बिहारी अनुपम श्रृंगारी कवि है श्रृंगार रस के ग्रन्थो में जितनी ख्याति और जितना मान – सम्मान ‘बिहारी सतसई‘ का हुआ , उतना और किसी ग्रन्थ का नहीं | इसका एक -एक दोहा हिन्दी – साहित्य में रत्न माना जाता है |

बिहारी लाल का जीवन परिचय हिंदी में

बिहारी की ‘सतसई‘ हिन्दी साहित्य की एक अमूल्य निधि है जिसके आधार पर बिहारी लोक प्रसिद्ध है | इनकी सतसई में भक्ति , निती और श्रृंगार की त्रिवेणी प्रवाहित है | इसलिए बड़े – बड़े महाकवियो ने इस पर टीका लिखने में गर्व का अनुभव किया हिन्दी – साहित्य में श्रृंगार रस की धारा बहाने में महाकवि बिहारी का सर्वश्रेष्ठ स्थान है | बिहारी गागर में सागर भरने के लिए विख्यात है | दोहे जैसे छोटे छन्द में बिहारी ने भाव का सागर लहरा दिया है यह वास्तव में गागर में सागर भरने जैसा कार्य है |

डॉ ० अवधद्विवेदी ने लिखा है कि – ” सम्भवत: विश्व – साहित्य में ऐसे उदाहरण बिरले ही मिलेगे, जो गागर में सागर भरने की क्षमता के विचार से बिहारी की समता कर सके |” अत: हम कह सकते है कि बिहारी उच्चकोटि के कवि एवं कलाकार थे |

बिहारी लाल का जीवन परिचय – Bihari Lal Biography In Hindi

नामबिहारी लाल
अन्य नामबिहारी , कविवर विहारी
जन्मसन् 1603 (संवत् 1660 वि०)
जन्म – स्थानवसुआ गोविन्दपुर
मृत्युसन् 1663 ई० (संवत् 1720)
मृत्यु – स्थानवृंदावन
पिता का नामकेशवराय
माता का नामसम्बन्ध में कोई साक्ष्य – प्रमाण प्राप्त नही
गुरुस्वामी बल्लभाचार्य
भाषाहिन्दी, बुंदेलखंडी, उर्दू, फारसी
कृतियाँबिहारी सतसई

बिहारी लाल का जीवन परिचय हिंदी में – Poet Bihari Lal Biography In Hindi

प्रस्तावना:-

भारत की पावन भूमि पर अनेक कवियों का जन्म हुआ उन कवियों में बिहारी जी एक है | बिहारी बचपन से ही कुशाग्रबुध्दि के थे | बिहारी के एक भाई और एक बहन भी थी | बिहारी के जन्म बाल्यकाल और तरुणावस्था से सम्बन्ध स्थानों का उल्लेख एक दोहे से प्राप्त है जो बिहारी का लिखा हुआ माना जाता है | वह दोहा इस प्रकार है –

“जन्म ग्वालियर जानिए, खण्ड बुन्देल बाल |
तरुनाई आई सुखद, मथुरा बसि ससुराल ||”
“प्रकट भयै व्दिजराज कुल, सुवस बसे बज्र आइ |
मेरो हरौ क्लेस सब, कैसौ – कैसौ राइ ||”

इनका विवाह मथुरा के एक बाह्मण परिवार में हुआ था | विवाह के बाद बिहारी ससुराल में रहने लगे किन्तु अधिक दिनों तक ससुराल में रहने के कारण इनका आदर कम हो गया तथा उन्हें वहां जब निरादर का अनुभव हुआ तो वो ससुराल छोड़कर आगरा आ गये | आगरा से जयपुर राजा जयसिंह के दरबार में चले गये | बिहारी जयपुर – नरेश महाराजा जयसिंह के दरबारी कवि थे | कहा जाता है कि जयपुर नरेश राजा जयसिंह उस समय अपनी नवविवाहिता पत्नी के साथ भोग – विलास में लिप्त थे और राज – काज का पूर्णत: त्याग कर चुके थे | महाराजा जयसिंह की यह दशा देखकर बिहारी ने सामन्तो की सलाह से महाराज के पास निम्नांकित दोहा लिखकर भेजा –

नहिं परागु नहिं मधुर मधु, नहिं विकास यहिं काल |
अली कली ही सौं विन्ध्यौ, आगे कौन हवाल ||

इस दोहे को पढकर राजा की आँखे खुल गयी तथा राजा के ह्रदय पर इस दोहे ने जादू – सा असर किया और फिर पुन: वो अपने राजकाज में लग गये | राजा जयसिंह बिहारी की काव्य प्रतिभा पर बड़े मुग्ध थे | इन्होने अपनी काव्य – प्रतिभा से जयपुराधीश जयसिंह तथा उनकी पटरानी अनन्तकुमारी को विशेष प्रभावित किया, जिनसे इन्हें पर्याप्त पुरस्कार और काली पहाड़ी नामक ग्राम मिला तथा राजा जयसिंह ने बिहारी को अपना राजकवि बना लिया | उन्होंने बिहारी को प्रत्येक दोहे की रचना पर एक स्वर्ण मुद्रा देने का वचन दिया जयपुर के राजकुमार रामसिंह का विद्यारम्भ संस्कार भी इन्होने ही कराया था तथा राज दरबार में रहकर ही बिहारी ने अपनी “सतसई” की रचना की |

बिहारी लाल का जन्म – स्थान (Bihari Lal Birth Place)

हिन्दी – साहित्य के जाज्वल्यमान नक्षत्र रीतकाल के प्रतिनिधि कवि “कविवर बिहारी” का जन्म सन् 1603 (संवत् 1660 वि०) के लगभग मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले के अन्तर्गत वसुआ गोविन्दपुर नामक ग्राम में हुआ था |

बिहारी लाल के माता – पिता (Biharilal Mother – Father)

कविवर बिहारी जी के पिता का नाम केशवराय था | इनके पिता निम्बार्क – सम्प्रदाय के सन्त नरहरिदास के शिष्य थे | तथा इनकी माता के नाम के सम्बन्ध में कोई साक्ष्य – प्रमाण प्राप्त नही है |

बिहारी लाल की शिक्षा (Bihari Lal Education)

कहा जाता है कि केशवराय इनके जन्म के सात – आठ वर्ष बाद ग्वालियर छोड़कर ओरछा चले गये | वहीं बिहारी ने हिंदी के सुप्रसिध्द कवि “आचार्य केवशदास” से काव्य – ग्रंथों के साथ ही संस्कृत और प्राकृत आदि का अध्ययन किया | आगरा जाकर इन्होने उर्दू – फारसी का अध्ययन किया और अब्दुर्रहीम खानखाना के सम्पर्क में आये | बिहारी जी को अनेक विषयों का ज्ञान था |

बिहारी लाल के गुरु (Bihari Lal Guru)

बिहारी जी के गुरु स्वामी बल्लभाचार्य जी थे |

बिहारी लाल के काव्य – गुरु (Biharilal Poetry – Guru)

रीतिकाल के प्रतिनिधि कवि बिहारी जी के काव्य – गुरु आचार्य केशवदास जी थे |

बिहारी लाल का विवाह (Bihari Lal marriage)

कविवर बिहारी का विवाह मथुरा के किसी बाह्मण की कन्या से हुआ था | इनके कोई संतान न होने के कारण इन्होने अपने भतीजे निरंजन को गोद ले लिया था |

बिहारी लाल का मृत्यु – स्थान (Bihari Lal Place of Death)

अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद बिहारी भक्ति और वैराग्य की ओर उन्मुख हो गए और दरबार छोड़कर वृंदावन चले गये | वहीं पर सन् 1663 ई० (संवत् 1720) में उन्होंने अपने नश्वर शरीर का त्याग कर दिया |

बिहारी लाल का साहित्यिक – परिचय (Literary Introduction of Bihari Lal)

रीतिकालीन कवियों में महाकवि बिहारी की गणना अपनी कला के प्रतिनिधि कवि के रूप में की जाती है| बिहारी के श्रृंगार सम्बन्धी दोहे अपनी सफल भावाभिव्यक्ति के लिए विशिष्ट समझे जाते हैं| इनमें संयोग और वियोग श्रृंगार के मर्मस्पशी चित्र मिलते हैं| इनमें आलम्बन के विशद वर्णन के साथ – साथ उद्दीपन के चित्र हैं| 719 दोहों की सतसई सन् 1719 में समाप्त हुई | इनके दोहों के विषय में यह उक्ति प्रसिध्द है –

सतसैया के दोहरे , ज्यों नाविक के तीर |
देखन में छोटे लगैं , घाव करैं गम्भीर ||

वास्तव में नाविक के नन्हे – नन्हे वाणों के समान ही बिहारी के छोटे – छोटे दोहे भी सहृदय पाठकों के मर्म को वेध देते है| हिंदी साहित्याकाश में बिहारी पीयूषवर्षी भेद के समान है| श्रृंगार के अतिरिक्त बिहारी ने नीति, भक्ति, ज्योतिष, गणित, आयुर्वेद तथा इतिहास आदि विषयों पर भी दोहों की रचना की है जो श्रृंगार के दोहों की बात ही सशक्त भावाभिव्यक्ति से पूर्ण है| बिहारी के दोहो का अध्ययन करने के पश्चात् पाठक इनकी बहुमुखी प्रतिभा पर आश्चर्यचकित हुए बिना नहीं रहते| आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इनके दोहों की प्रशंसा में लिखा है-

“बिहारी का प्रत्येक दोहा एक – एक उज्जवल रत्न है| उन्होंने गागर में सागर भर दिया है| उनके दोहे रस की पिचकारियाँ हैं| वे एक – एक ऐसीमीठी रोटी है जिसको जिधर से तोड़ा जाए उधर से ही मीठी लगती हैं|”

संक्षेप में बिहारी का काव्य उनकी काव्यात्मक प्रतिभा के ऐसे विलक्षण एवं अद्भुत स्वरूप को प्रस्तुत करता है, जो हिंदी काव्य जगत के विख्यात कवियों के लिए भी विस्मयपूर्ण रहा है |

बिहारी लाल की रचनाएँ (Writing of Bihari Lal)

बिहारी की एकमात्र रचना “बिहारी सतसई” है| इसमें बिहारी ने कुल 719 दोहे लिखे हैं| ‘सतसई‘ में नीति, भक्ति और श्रृंगार सम्बन्धी दोहे हैं| ‘बिहारी –
सतसई’
के सामान लोकप्रियता रीतिकाल के किसी अन्य ग्रंथ को प्राप्त ना हो सकी | इस कृति ने बिहारी को हिंदी – काव्य – जगत में अमर कर दिया है |

बिहारी लाल की भाषा (Bihari Lal language)

बिहारी की भाषा साहित्यिक ब्रजभाषा है, जिसमें पूर्वी – हिन्दी, बुंदेलखंडी, उर्दू, फारसी आदि भाषाओ के शब्दों का भी प्रयोग हुआ है| शब्द चयन की दृष्टि से बिहारी अद्वितीय है | मुहावरो और लोकोक्तियों की दृष्टि से भी उनका भाषा – प्रयोग अद्वितीय है| बिहारी की भाषा इतनी सुगठित है कि उनका एक शब्द भी अपने स्थान से हटाया नहीं जा सकता | भाषा की दृष्टि से इनका काव्य उच्चकोटि का है |

बिहारी लाल जी की शैली (Biharilal Style)

बिहारी ने मुक्तक काव्य – शैली को स्वीकार किया है जिसमें समास शैली का अनूठा योगदान है | इसलिए ‘दोहा’ जैसे छोटे छन्द में इन्होंने अनेक भावो को भर दिया है | बिहारी की शैली समय के साथ बदलती है | भक्ति एवं नीति के दोहों में प्रसाद गुण की तरह तथा श्रृंगार के दोहों में माधुर्य एवं प्रसाद की प्रधानता है| शैली की दृष्टि से बिहारी जी का काव्य अनुपम व अद्वितीय है |

बिहारी लाल का हिंदी – साहित्य में स्थान (Biharilal Place in Hindi Literature)

रीतिकालीन कवि बिहारी अपने युग के अद्वितीय कवि हैं| बिहारी उच्चकोटि के कवि एवं कलाकार थे | असाधारण कल्पना शक्ति मानव – प्रकृति के सूक्ष्म ज्ञान तथा कला – निपुणता ने बिहारी के दोहों में अपरिमित रस भर दिया है | इन्हीं गुणों के कारण इन्हें रीतिकालीन कवियों का प्रतिनिधि कवि कहा जाता है तत्कालीन परिस्थितियों से प्रेरित होकर उन्होंने जिस साहित्य का सृजन किया, वह हिंदी – साहित्य की अमूल्य निधि है | सौन्दर्य – प्रेम के चित्रण में, भक्ति एवं नीति के समन्वय में, ज्योतिष – गणित – दर्शन के निरूपण में तथा भाषा के लाक्षणिक एवं मधुर व्यंजक प्रयोग की दृष्टि से बिहारी बेजोड़ हैं | भाव और शिल्प दोनों दृष्टियों से इनका काव्य श्रेष्ठ है |

इसलिए सुप्रसिध्द साहित्यकार पं० पद्मसिंह शर्मा ने बिहारी के काव्य की सराहना करते हुए लिखा है –

“बिहारी के दोहों का अर्थ गंगा की विशाल जलधारा के समान है, जो शिव की जटाओं में तो समा गयी थी, परंतु उसके बाहर निकलते ही वह इतनी असीम और विस्तृत हो गई कि लम्बी – चौड़ी धरती में भी सीमित न रह सकी | बिहारी के दोहे रस के सागर हैं, कल्पना के इंद्रधनुष है , भाषा के मेघ हैं, उनमें सौंदर्य के मादक चित्र अंकित है |”

“कविवर बिहारी हिंदी – काव्य – जगत के एकमात्र ऐसे कवि हैं जिन्होंने केवल एक छोटे से ग्रंथ की रचना करके इतनी अधिक ख्याति प्राप्त की है | “

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संबंधित प्रश्न (FAQs)

Q 1. बिहारी किस काल के कवि थे?

Ans: रीति काल

Q 2. बिहारी के श्रृंगार रस के दोहे

Ans: बतरस लालच लाल की, मुरली घरी लुकाय ।
सौंह करै, भौहन हंसे, दैन कहै, नटि जाय ॥

इसे लेख में मैंने बिहारी लाल जी (साहित्यकार) का प्रारंभिक जीवन, जन्म – स्थान, माता – पिता, बिहारी लाल की शिक्षा, गुरु, काव्य – गुरु, विवाह, मृत्यु – स्थान, साहित्यिक – परिचय, बिहारी लाल की रचनाएँ, भाषा – शैली और हिंदी – साहित्य में स्थान के बारे में पूरी जानकारी शेयर की है अगर आपका कोई सवाल या सुझाव है तो आप नीचे दिए गए Comment Box में जरुर लिखे।

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