आचार्य रामचंद्र शुक्ल की भाषा शैली पर प्रकाश डालिए

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प्रश्न: आचार्य रामचंद्र शुक्ल की भाषा शैली पर प्रकाश डालिए

उत्तर: भाषा – शैली: आचार्य पद के अनुरूप शुक्ला जी की भाषा पौढ़, परिमार्जित, सशक्त एवं प्रभावपूर्ण है। जिसका वर्णन निम्नलिखित इस प्रकार है-

(i) भाषा: आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी का भाषा पर पूर्ण अधिकार था। उनकी सभी रचनाओं में शुद्ध साहित्यिक भाषा का प्रयोग हुआ है। उनकी परिष्कृत भाषा में संस्कृत की तत्सम शब्दावली की प्रधानता है, किंतु उसमे स्पष्टता सर्वत्र विद्यमान है। शुक्ल जी की भाषा का दूसरा रूप अधिक सरल और व्यावहारिक है। इसमें संस्कृतनिष्ठ भाषा के स्थान पर हिंदी की प्रचलित शब्दावली का प्रयोग हुआ है। जहाँ – तहाँ उर्दू, फारसी और अंग्रेजी के शब्द भी प्रयुक्त हुए है। शुक्ला जी की रचनाओं में अनेक भाषाओं का वर्णन मिलता है। उनकी भाषाओं में भावानुकूलता, सरलता तथा सुंदर प्रवाह सर्वत्र विद्यमान है। तथा कथन में ओज लाने के लिए शुक्ल जी ने आलंकारिक भाषा का भी प्रयोग अपनी रचनाओं में किये है।

(ii) शैली: आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी की शैली सामासिक है। कम से कम शब्दों में बड़ी से बड़ी बात कहना शुक्ल जी की शैली की विशेषता है। शुक्ल जी की रचनाओं में प्रातः निम्नलिखित शैलियों के दर्शन होते हैं-

  1. आलोचनात्मक शैली
  2. वर्णनात्मक शैली
  3. हास्य व्यंग्यात्मक शैली
  4. विचारात्मक शैली
  5. विवेचनात्मक शैली
  6. व्याख्यात्मक शैली
  7. भावात्मक शैली

1. आलोचनात्मक शैली: गंभीर तथा आलोचनात्मक निबंधों में शुक्ल जी ने इस शैली को अपनाया है। वस्तुतः हिंदी में इस शैली के जन्मदाता स्वयं आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी ही है

2. वर्णनात्मक शैली: इस शैली में भाषा सुबोध तथा व्यवहारिक है।

3. हास्य व्यंग्यात्मक शैली: गम्भीर निबंधों में व्यंग्यात्मक शैली का प्रयोग कर उसमें हास्य – व्यंग्य की झलक प्रदान की है।

4. विचारात्मक शैली: शुक्ल जी के विचार प्रधान निबंधों में इस शैली का प्रयोग मिलता है।

5. विवेचनात्मक शैली: यह शुक्ल जी की प्रमुख शैली है। शुक्ल जी के निबंधों में इसी शैली का प्रयोग हुआ है। इस शैली में वैचारिकता एवं गम्भीरता है।

6. व्याख्यात्मक शैली: शुक्ल जी शिक्षक थे अतः कठिन विषयों को स्पष्ट रूप से समझने के लिए उन्होंने स्थान – स्थान पर व्याख्यात्मक शैली का प्रयोग किया है।

7. भावात्मक शैली: शुक्ल जी के निबंध और उनकी आलोचनाएं प्राय: विचारप्रधान है। इस कारण उसमें शुष्कता की अधिक्ता है किंतु शुक्ल जी ने विचारों के शुष्क मरुस्थल में भावपूर्ण सरसता का संचार करके पाठक के हृदय को भाव – विभोर करने का भी प्रयास किया है।

इस प्रकार शुक्ल जी ने विषय के अनुसार भाषा – शैली का प्रयोग किया है।


प्रश्न: आचार्य रामचंद्र शुक्ल की भाषा शैली संक्षिप्त में लिखिए

उत्तर: शुक्ल जी अपनी रचनाओं में शुद्ध साहित्यिक भाषा तथा सरल और व्यावहारिक भाषा का प्रयोग किया है। तथा शुक्ल जी की रचनाओ में निम्नलिखित शैलियों का प्रयोग हुआ है। जैसे – आलोचनात्मक शैली, वर्णनात्मक शैली, हास्य व्यंग्यात्मक शैली, विचारात्मक शैली, विवेचनात्मक शैली, व्याख्यात्मक शैली, भावात्मक शैली ।

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