जनसंख्या वृद्धि के कारण एवं नियंत्रण

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आज की लेख में हम जनसंख्या वृद्धि के कारण एवं नियंत्रण के बारे में जानने वाले है।

जनसंख्या वृद्धि का अर्थ

  • किसी भौगोलिक क्षेत्र की जनसंख्या के आकार में एक निश्चित समय में होने वाले परिवर्तन को जनसंख्या वृद्धि कहा जाता है।
  • वर्तमान समय मे राष्ट्रीय स्तर पर मुख्यत: जनसंख्या वृद्धि ही दृष्टिगत होती है जिसके कारण जनसंख्या परिवर्तन को ही जनसंख्या वृद्धि का स्वरूप माना जाने लगा है।
  • जनसंख्या वृद्धि धनात्मक या ऋणात्मक दोनों ही हो सकती है।

जनसंख्या विस्फोट और जनसंख्या वृद्धि में अन्तर

जनसंख्या विस्फोट जनसंख्या वृद्धि
जनसंख्या विस्फोट एक निश्चित क्षेत्र मे अचानक से होने वाली प्रक्रिया है।जनसंख्या वृद्धि निश्चित समयांतराल में हो रहे जनसंख्या परिवर्तन को दर्शाती है।
जनसंख्या विस्फोट सदैव धनात्मक वृद्धि को दर्शाती है।जनसंख्या वृद्धि धनात्मक व ऋणात्मक दोनों हो सकता है।
जनसंख्या विस्फोट सीमित क्षेत्रों में ही होती है।जनसंख्या वृद्धि सभी जगहों पर होती है।
उदाहरण के लिए भारत और चीन।विश्व के सभी जगहों पर जनसंख्या वृद्धि होती है।

जनसंख्या वृद्धि से सम्बन्धित विभिन्न विचारकों का कथन

कुछ विचारकों का मानना है कि यह जनसंख्या वृद्धि आर्थिक विकास में सहायक है तो कुछ इसे आर्थिक विकास में बाधक मानते है।

प्रो. हैन्सेन के अनुसार – जनसंख्या वृद्धि आर्थिक विकास की एक पूर्व शर्त है।

प्रो. हर्बमैन के अनुसार – जनसंख्या दबाव आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करता है।

प्रो. सिंगर का कहना है कि – जनसंख्या वृद्धि आर्थिक विकास की दर पर ऋणात्मक प्रभाव डालती है बचत दर को घटाती है और विनियोग की उत्पादकता को कम करता है।

डेविस रॉक कैलर के अनुसार – अति जनसंख्या वृद्धि आर्थिक संवृद्धि की समस्याओं मे से एक सबसे कठिन समस्या है।

इस विचारधारा के समर्थक अर्थशास्त्री है- माल्थस नवमाल्थसवादी, मायर, सिंगर, नेल्सन एवं लाइबेन्सटीन आदि है।

जनसंख्या वृद्धि से सम्बन्धित अन्य महत्वपूर्ण तथ्य

  • भारत में जनसंख्या की वृद्धि बहुत तेजी से हो रही है। यदि इसे शीघ्र नियन्त्रित न किया गया तो इसके गम्भीर परिणाम हो सकते हैं।
  • 1901 में भारत की जनसंख्या 23.8 करोड़ थी। 1991 में बढ़कर 84.6 करोड़ तथा 2001 मे 21.54 फीसदी की दशकीय बढ़ोत्तरी देखी गयी।
  • जबकि वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार बीते एक दशक में आबादी 17.64 फीसदी बढ़ी है।
  • वर्ष 2011 की जनसंख्या जनगणना के अनुसार अब भारत की जनसंख्या 1.21 अरब की आबादी हो गयी हैं।
  • जनसंख्या की दृष्टि से विश्व में भारत का चीन के बाद दूसरा स्थान है।
  • जनसंख्या में इस वृद्धि के परिणामस्वरूप नियोजित आर्थिक विकास के सारे प्रयास निष्फल, सिद्ध हो रहे है तथा देश मे भोजन, वस्त्र एवं आवास की समस्या विकराल होती जा रही है।
  • अद्भुत औषधियों के अन्वेषण और आर्थिक सम्पन्नता मे सतत् सुधार के परिणामस्वरूप मृत्यु की सम्भावना घटती जा रही है, लेकिन उसी अनुपात में जन्म दर मे कमी नहीं हो पा रही है अतः इसके फलस्वरूप जनसंख्या में अभूतपूर्व वृद्धि होती जा रही है।
  • इस तरह जन्म दर और मृत्यु दर के बीच यह दूरी जैसे – जैसे बढ़ती जा रही है वैसे – वैसे कुल जनसंख्या में भी वृद्धि होती जा रही है।

जनसंख्या वृद्धि के चरण

चरण – I → (1901-1921) – की अवधि को भारत की जनसंख्या के विकास की स्थिर अवधि के रूप मे जाना जाता है।

  • इस अवधि में नकारात्मक विकास दर (-0. 31) देखी गयी।
  • इस अवधि मे जन्मदर व मृत्युदर दोनों उच्च थी।
  • 1921 की अवधि को महाविभाजक वर्ष की संज्ञा दी जाती हैं।

चरण-II (1921- 1951) – के दशको को स्थिर जनसंख्या की अवधि के रूप मे जाना गया। पूरे देश में स्वच्छता एवं स्वास्थ्य में समग्र सुधार से मृत्युदर मे कमी आई तथा जन्मदर उच्च बनी रही।

चरण-III → (1951-1981) – के दशको को जनसंख्या विस्फोट की अवधि के रूप में जाना गया।

इस अवधि में मृत्यु दर मे तेजी से गिरावट तथा उच्च प्रजनन दर देखने को मिली। इस अवधि के दौरान प्रत्येक दशक मे जनसंख्या वृद्धि देखी गयी ।

चरण- IV → (1981) – के बाद से अब तक वृद्धि दर हाॅलाकि उच्च बनी हुई है परन्तु धीरे-2 धीमी होने लगी है। इस अवधि के दौरान प्रत्येक दशक मे जनसंख्या वृद्धि मे गिरावट आई है। हाॅलाकि जनसंख्या की वृद्धि दर देश में अभी भी अधिक है और विश्व विकास रिपोर्ट के द्वारा अनुमान लगाया गया है कि भारत की जनसंख्या 2025 तक 1.350 बिलियन को छू लेगी।

भारत में जनसंख्या वृद्धि के कारण

भारत में जनसंख्या वृद्धि के निम्न कारण है-

ऊँची जन्म दर

  • भारत में जन्म दर को बढ़ाने वाले सामाजिक आर्थिक तथा जनांकिकीय सभी प्रकार के कारण विद्यमान रहे है तथा अभी भी विद्यमान है।
  • देश की सामाजिक आर्थिक पारिस्थितियां भी बदल रही है, परन्तु इनके परिवर्तन की गति बहुत धीमी है और इसलिए यहाँ जन्म दर भी धीमी गति से ही घट रही है।

भारत में जन्म दर को बढ़ावा देने वाले कारकों में से मुख्य कारक इस प्रकार है –

  1. शिक्षा का निम्न स्तर
  2. परम्परावादी समाज
  3. धार्मिक अंधविश्वास
  4. संयुक्त परिवार
  5. लड़कों का महत्व
  6. ग्रामीण समाज
  7. निम्न विवाह आयु

मृत्यु दर में कमी

  • भारत में विगत 80 वर्षो से मृत्यु दर में पर्याप्त गिरावट आयी है। वर्ष 1901-11 के दशक में भारत में मृत्यु दर 42.6 प्रतिहजार थी जो क्रमश: घटते हुए 1980 -81 में 10.8 रह गयी। 2010 में जहाँ 85 .1 लाख मौतें हुई थी, वही 2018 में यह 80.5 लाख रही।
  • 2013 से 2018 के बीच पूरे भारत की मृत्यु दर 7.2 से घटकर 6.2 रह गई।
  • इसका नतीजा यह हुआ कि जनसंख्या में करीब 10 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई और वह 118 करोड़ से 130 करोड हो गई।

इसका प्रमुख कारण लोगों की आय में वृद्धि तथा रहन – सहन के स्तर सुधार, औषधि विज्ञान तथा शल्य चिकित्सा में हुई अभूतपूर्व प्रगति, स्त्रियों की दशा में सुधार, साक्षरता मे वृद्धि मनोरंजन के साधनो मे वृद्धि, विवाह की आयु, अन्धविश्वासों मे कमी, शहरीकरण मे वृद्धि तथा परिवार नियोजन के प्रति लोगों का बढ़ता रुझान आदि है।

विवाह की अनिवार्यता

भारत में अनेक ऐसे धार्मिक कार्य किये जाते हैं। जिनमें पति – पत्नी का होना अनिवार्य है | इस दृष्टि से विवाह करना अनिवार्य समझा जाता है। इसके अतिरिक्त भारतीय समाज में अविवाहित स्त्री और पुरुष को सम्मान की दृष्टि सें नहीं देखा जाता है। इसलिए भी भारतीय विवाह करते हैं, क्योंकि वंश का नाम पुत्र से ही चलता है।

जनसंख्या वृद्धि के दुष्प्रभाव / हानियाँ

  • किसी भी देश की जनसंख्या का प्रभाव उसके आर्थिक सामाजिक, सांस्कृतिक रवं राजनीतिक संरचना पर जरूर पड़ता है।
  • जनसंख्या का प्रभाव किसी भी देश पर अच्छा या बुरा दोनों ही पड़ सकता है।
  • अलग – अलग देशों की सामाजिक ढांचे के अनुसार इसका मूल्यांकन किया जा सकता है।
  • उदाहरण के लिए 19वीं शताब्दी के आरम्भ में पश्चिमी देशो पर जनसंख्या की वृद्धि का अच्छा प्रभाव पड़ा।
  • श्रमिकों की संख्या होने के कारण श्रम विभाजन में सहायता मिली। जिससे यहाँ एक तरफ उत्पादन मे वृद्धि हुई वहीं औद्योगीकरण का विकास भी हुआ।

ऑस्ट्रिलिया, न्यूजीलैण्ड जैसे देशों पर जनसंख्या की वृद्धि का अच्छा प्रभाव पड़ा। यदि वही भारत की बात करें तो स्वतंत्रता के बाद भारत की तेजी से होने वाले जनसंख्या वृद्धि भारत के लिए आज बहुत बड़ी समस्या बन गई है।

  • जनसंख्या वृद्धि के प्रभाव अथवा दुष्प्रभाव इस प्रकार है-

कृषि पर प्रभाव

  • भारत जैसे विकासशील देश में जनसंख्या का प्रभाव कृषि व्यवस्था पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है । कृषि भूमि सीमित है, कृषि से जुड़े हुए साधन अभी भी प्राचीन है।
  • आधुनिक कृषि के उपकरणों को धनी किसानी ही प्रयोग कर पाते है। सीमित उत्पादन से ग्रामीण जनसंख्या की आवश्यकताएं पूर्ण नहीं हो पाती, वही भूमि के टुकड़े – 2 भी हो रहे है।
  • परिवार के प्रत्येक व्यक्ति ने भूमि का बंटवारा कर लिया जिससे उत्पादन भी कम हुआ और कृषि व्यवसाय की प्रगति जितनी होनी चाहिए थी उतनी नहीं हो पा रही है।

पौष्टिक खाद्य पदार्थों का अभाव

विकासशील देशों के लिए अधिक जनसंख्या निर्धनता की भी घातक है। व्यक्ति की स्वास्थ्य कार्य क्षमता और उसे दृष्ट- पुष्ट बनाये रखने के लिए कम से कम 2500 कैलोरी प्रतिदिन भोजन से प्राप्त होनी चाहिए। किन्तु अधिक जनसंख्या होने के कारण भारतीय निर्धन भी है और बेकार भी। 2500 कैलोरी तो बड़ी बात है उसे ठीक से दो समय का भोजन भी नहीं मिल पाता । इसलिए उनका स्वास्थ्य और कार्यक्षमता निरन्तर खराब और कम होती जा रही है।

वस्तुओं के मूल्य पर प्रभाव

अधिक जनसंख्या का प्रभाव सबसे अधिक मूल्यों पर पड़ता है। मांग और पूर्ति का नियम यहां पर पूर्ण रुप से लागू होता है। चीजें कम होती है और मांग कहीं अधिक इसलिए वस्तुओं के मूल्य में निरंतर वृद्धि होती जाती है।

अत्यधिक गरीबी

देश की प्रमुख समस्या गरीबी है। बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण देश की गरीबी मे और अधिक वृद्धि होती है। भातर मे स्वतंत्रता के समय यदि 17 करोड़ लोग गरीब की रेखा के नीचे रह रहे थे, तो अब 27 करोड़ से भी अधिक लोग गरीबी की रेखा के नीचे गुजर-बसर कर रहे है। जैसे-जैसे देश की जनसंख्या बढ़ रही है

रोजगार का अभाव

हमारे यहाँ अधिक बेरोजगारी है। यद्यपि नये-नये उद्योग खुल रहे है, औद्योगिकरण बढ़ रहा है, फिर भी इन उद्योगों मे उतना काम नही है, जितने लोग पैदा हो रहे है। इसका नतीजा यह है कि बेरोजगारी की समस्या का समाधान होने के बजाय वह और अधिक भयावह होती जा रही है।

अपराधों मे वृद्धि 

देश मे जनसंख्या मे बढ़ौत्तरी के साथ, क्योंकि गरीबी मे वृद्धि हो रही है, गंदी बस्तियों का फैलाव हो रहा है, तो साथ ही साथ अपराधों मे भी वृद्धि हो रही है।

जनसंख्या वृद्धि  नियंत्रण या रोकने के उपाय अथवा सुझाव

  • अतिशय जनसंख्या के कारण कोई भी देश प्रगति नही कर सकता है।
  • प्राचीनकाल मे प्राकृतिक तथा महामारियां जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण रखती थी लेकिन आज विज्ञान ने प्राकृतिक प्रकोपों पर विजय प्राप्त कर ली है।
  • अतः इस कारण जरूरी हो गया है कि किसी दूसरे स्त्रोत से जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित किया जाये।

अतः जनसंख्या वृद्धि को रोकने करने के प्रमुख उपाय इस प्रकार हैं-

  1. विवाह की आयु बढ़ा दे जाए – अप्रत्यक्ष रूप से विवाह का उद्देश्य सन्तानोत्पत्ती है। जीव विज्ञान के अनुसार स्त्रियाँ जीवन के पूर्वार्द्ध मे अधिक प्रजनन क्षमता रखती है, अतः यदि विवाह की आयु को बढ़ा दिया जाये तो जनसंख्या मे कमी आयेगी।
  2. जन्मदर को कम करके – जन्मदर जनसंख्या वृद्धि का प्रमुख कारण है। अतः इसे कम करके जनसंख्या वृद्धि को कम किया जा सकता है।
  3. शिक्षा का प्रसार करके – जनसंख्या वृद्धि का सबसे मुख्य कारढ आम जनता मे अज्ञानता, प्रचलित रूढ़ियों तथा धर्मान्धता का प्रसार है।
  4. परिवार नियोजन के तरीको का उपयोग कर जनसंख्या वृद्धि को रोका जा सकता है।
  5. एक से अधिक महिलाओं से शादी करने पर प्रतिबंध लगाकर भी जनसंख्या वृद्धि को रोका जा सकता है।
  6. परिवार नियोजन के तरीको को अपनाना जनता को परिवार नियोजन के साधनों के बारे मे जानकारी देना चाहिए, जिससे वे इसे सरलतापूर्वक अपना कर अपने परिवार को नियंत्रित कर सकें।

जनसंख्या वृद्धि के कारण एवं नियंत्रण के बारे में जानकारी हिंदी में आपको कैसे लगी नीचे दिए गए Comment Box में जरुर लिखे ।

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