अनेकता में एकता पर निबंध | Anekta Mein Ekta Essay in Hindi

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अन्य सम्भावित शीर्षक: अनेकता में एकता पर निबन्ध – Anekta Mein Ekta Essay in Hindi

  • राष्ट्रीय एकता
  • राष्ट्रीय एकीकरण और उसके मार्ग की बाधाएँ
  • देश की एकता और अखण्डता
  • राष्ट्रीय एकता के पोषक तत्व।
  • राष्ट्रीय अखण्डता: आज की माँग ।
  • राष्ट्रीय एकता हेतु आवश्यक उपाय
  • भारत राष्ट्र की सांस्कृतिक एकता।
  • हिन्दू – मुस्लिम – सिक्ख – ईसाई आपस में सब भाई – भाई
  • साम्प्रदायिक सद्भाव |
  • साम्प्रदायिक एकता
  • राष्ट्रीय एकता एवं राष्ट्र-प्रेम।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा एवं एकता
  • हिन्दी है हम, वतन का हिन्दोस्तां हमारा।

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अनेकता में एकता पर निबंध – Anekta Mein Ekta Essay in Hindi

“भारत की संस्कृति अपने जन्मकाल से ही विभिन्न जातियों के सामूहिक योगदान का परिणाम है। अपने इस देश की संस्कृति से प्रेम न होना अथवा पारस्परिक भेदभाव रखना, राष्ट्रीय एकता के लिए सर्वाधिक घातक है।” – रामधारीसिंह ‘दिनकर’

अनेकता में एकता पर निबंध – Anekta Mein Ekta Essay in Hindi

अनेकता में एकता पर निबंध – Anekta Mein Ekta Essay in Hindi

रुपरेखा-

  1. प्रस्तावना
  2. राष्ट्र का स्वरूप
  3. राष्ट्रीय एकता से अभिप्राय
  4. राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता
  5. राष्ट्रीय सुरक्षा एवं राष्ट्रीय एकता के मार्ग मैं बाधाएँ : कारण और निवारण
    1. (i) साम्प्रदायिकता
    2. (ii) भाषागत विवाद
    3. (ii) प्रान्तीयता या प्रादेशिकता की भावना
  6. राष्ट्रीय एकता की दिशा मे हमारे प्रयास
  7. उपसंहार

प्रस्तावना-

हमारे देश भारत में अनेक प्रकार की विविधताएँ पायी जाती है। भारत अनेक धर्मो, जातियों और भाषाओं का देश है। परन्तु धर्म, जाति एवं भाषाओं की दृष्टि से विविधता होते हुए भी हमारे भारत देश मे एकता की भावना विद्यमान रही है। जब कभी भी हमारे देश की राष्ट्रीय एकता को तोड़ने का प्रयास किया जाता है, तो भारत का प्रत्येक नागरिक सजग हो उठता है और राष्ट्रीय एकता को खण्डित करने वाली शक्तियों के विरुद्ध आन्दोलन प्रारम्भ हो जाता है। राष्ट्रीय एकता हमारे राष्ट्रीय गौरव प्रतीक है।

मैथिलीशरण गुप्त के शब्दों में – “जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है। वह नर नहीं नर-पशु निरा है और मृतक समान हैं।।”

राष्ट्र का स्वरूप

राष्ट्रीय एकता के लिए प्रयत्नशील होने से पूर्व हमें राष्ट्र का स्वरूप जान लेना चाहिए। राष्ट्र की भूमि, भूमि के निवासी और इन निवासियों की संस्कृति से राष्ट्र का स्वरूप निर्मित होता है। तथा राष्ट्रीयता की जड़े राष्ट्र की भूमि में जितनी गहरी होंगी राष्ट्रीय भावों का अंकुर उतना ही पल्लवित होगा।

राष्ट्रीय एकता से अभिप्राय

राष्ट्रीय एकता का अभिप्राय है- सम्पूर्ण भारत की आर्थिक सामाजिक, राजनैतिक और वैचारिक एकता। हमारे कर्मकाण्ड, खान-पान, पूजा-पाठ, रहन-सहन और वेशभूषा मे अन्तर हो सकता है, तथा अनेकता हो सकती है; किन्तु हमारे राजनैतिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण में एकता है। इस प्रकार अनेकता में एकता (Anekta Me Ekta) ही भारत की प्रमुख विशेषता है।

राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता

हमें अपने देश की आन्तरिक शान्ति, सुव्यवस्था और बाहरी दुश्मनों से सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय एकता परम आवश्यक है। यदि हम भारतवासी किसी कारणवश छिन्न भिन्न हो गये तो हमारी पारस्परिक फूट को देखकर अन्य देश हमारी स्वतन्त्रता को हड़पने का प्रयास करेगें। अखिल भारतीय राष्ट्रीय एकता सम्मेलन मे बोलते हुए हमारी तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने कहा था “जब – जब भी हम असंगठित हुए, हमें आर्थिक राजनैतिक रूप मे इसकी कीमत चुकानी पड़ी। जब – जब भी विचारों मे संकीर्णता आई, आपस में झगड़े हुए | जब कभी नए विचारो से अपना मुख मोड़ा, हानि ही हुई और हम विदेशी शासन के अधीन हो गए।

राष्ट्रीय सुरक्षा एवं राष्ट्रीय एकता के मार्ग मैं बाधाएँ : कारण और निवारण

राष्ट्रीय एकता की भावना का अर्थ मात्र यही नहीं कि हम एक राष्ट्र से सम्बद्ध है । राष्ट्रीय एकता के लिए एक – दूसरे के प्रति भाईचारे की भावना भी आवश्यक है स्वतन्त्रता प्राप्त करने के बाद हमने सोचा था कि अब पारस्परिक भेद-भाव की खाई पट जाएगी, किन्तु साम्प्रदायिकता, क्षेत्रीयता, जातीयता, अज्ञानता और भाषागत अनेकता ने अब तक भी पूरे देश को आक्रान्त कर रखा है। राष्ट्रीय एकता को छिन्न- भिन्न कर देनेवाले कारकों को जानना हमारे लिए अत्यन्त आवश्यक है, जिससे उनको दूर करने का प्रयास किया जा सके। इन कारणों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है-

(i) साम्प्रदायिकता

‘साम्प्रदायिता की भावना हमारी राष्ट्रीय एकता के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है। साम्प्रदायिकता एक ऐसी बुराई है, जो मानव – मानव में फूट डालती है, दो दोस्तो के बीच घृणा और भेद की दीवार खड़ी करती है, भाई को भाई से अलग करती है और अन्त मे समाज के टुकड़े कर देती है। यदि राष्ट्र को एक सूत्र में बांधे रखना है तो साम्प्रदायिक विद्वेष, स्पर्द्धा, ईर्ष्या आदि राष्ट्र विरोधी भावों को हमें अपने मन से दूर रखना होगा और देश में साम्प्रदायिक सद्भाव जाग्रत करना होगा ।

साम्प्रदायिकता कटुता दूर करने के लिए आवश्यक है कि हम दूसरे धर्म या धर्मस्थलों को भी उसी प्रकार मान्यता दे, जिस प्रकार हम अपने धर्म या पूजास्थलों को देते है। यदि हम अपने देश को एक सूत्र मे बाँधना चाहते है तो इसके लिए आवश्यक है कि हम सभी भारतीयो को अपना भाई समझें, चाहे वे किसी भी धर्म या मत को मानते हो। “हिन्दू, मुस्लिम, सिख ईसाई आपस में सब भाई- भाई” का नारा हमारी राष्ट्रीय अखण्डता का मूलमन्त्र होना चाहिए। उर्दू के प्रसिद्ध शायर इकबाल ने धार्मिक और साम्प्रदायिक एकता की दृष्टि से अपने उद्गार प्रकट करते हुए कहा था –

मजहब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना। हिन्दी है हम, वतन है हिन्दोस्तां हमारा।।

(ii) भाषागत विवाद

भारत बहुभाषाभाषी राष्ट्र है। विभिन्न राज्यों की अलग-2 बोलियाँ और भाषाएँ है। प्रत्येक व्यक्ति अपनी भाषा को श्रेष्ठ और उस भाषा के साहित्य को उत्कृष्ट मानता है। इस आधार पर भाषागत विवाद खडे हो जाते हैं और राष्ट्र की अखण्डता भंग होने के खतरे बढ़ जाते है। यदि कोई व्यक्ति अपनी मातृभाषा के मोह के कारण दूसरी भाषा का अपमान या उसकी अवहेलना करता है तो वह राष्ट्रीय एकता पर प्रहार करता है। होना तो यह चाहिए कि हम अपनी मातृभाषा को सीखने के बाद संविधान में स्वीकृत अन्य प्रादेशिक भाषाओं को भी सीखे तथा राष्ट्रीय एकता के निर्माण में सहयोग प्रदान करें।

(ii) प्रान्तीयता या प्रादेशिकता की भावना

प्रान्तीयता या प्रादेशिकता की भावना भी राष्ट्रीय एकता के मार्ग मे बाधक है राष्ट्र एक सम्पूर्ण इकाई है। भारत के सभी प्रान्त राष्ट्रीयता के सूत्र मे आवद्ध है अत: उनमें अलगाव सम्भव नहीं है। राष्ट्रीय एकता के इस प्रमुख तत्व की प्रत्येक नागरिक को अपनी आँखों से ओझल नहीं होना देना चाहिए।

राष्ट्रीय एकता की दिशा मे हमारे प्रयास

हमारे देश के विचारक, साहित्यकार, दार्शनिक और समाज सुधारक अपनी – अपनी सीमाओं में निरन्तर इस बात के लिए प्रयन्तशील है कि देश मे भी भाईचारे और सद्भावना का वातावरण बने अलगाव की भावनाएँ पारस्परिक तनाव और विशेष की दीवारे समाप्त हो । फिर भी इस आग मे कभी पंजाब सुनम्न हो उठता है, कभी कश्मीर, कभी बिहार, कभी महाराष्ट्र, कभी गुजरात तो कभी उत्तर प्रदेश।

इस विषय में परिवार और महिलाओं के योगदान को अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाना चाहिए। हमारी माताएँ और बहनें प्रारम्भ से ही अपने बच्चों को यह समझाये कि तुम हिन्दू, मुसलमान, सिक्ख या ईसाई होते हुए भी पहले एक इन्सान हो और इन्सानों से प्यार करना तुम्हारा पहला कर्तव्य है तभी ऐसा वातावरण उत्पन्न होगा, जिसमें बच्चे अपने विद्यालयों और उससे आगे के वातावरण मे मानसिक स्तर पर पथभ्रष्ट नहीं हो सकेंगें

उपसंहार

संक्षेप में यह कहना उचित होगा कि ‘राष्ट्रीय एकता की भावना” एक श्रेष्ठ भावना और इस भावना को जाग्रत करने के लिए हमें स्वयं को सबसे पहले मनुष्य समझना होगा। मनुष्य एवं मनुष्य मे असमानता की भावना ही संसार में समस्त विद्वेष एवं विवाद का कारण है।

“इसलिए जब तक हममें मानवीयता की भावना का विकास नहीं होगा, तब तक मात्र उपदेशों, भाषणों तथा राष्ट्रीय गीत के माध्यम से ही ‘राष्ट्रीय एकता’ का भाव उत्पन्न नही हो सकता ।”

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3 thoughts on “अनेकता में एकता पर निबंध | Anekta Mein Ekta Essay in Hindi”

  1. मनुष्य जीवन अनमोल है, समजो जानो
    एकता मे मजबूत ताकत है.

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