इस आर्टिकल में हम रीतिकाल और रीतिकाल की प्रमुख विशेषताएं (Ritikal Ki Pramukh Pravritiyan) पढेंगे, जो बहुत ही सरल भाषा में लिखा गया है जो परीक्षा की दृष्टि से बहुत ही उपयोगी है।
रीतिकाल: हिंदी साहित्य के उत्तर मध्य काल में मुख्य रूप से शृँगारिक काव्य और लक्षण ग्रंथों की रचना हुई, इसलिए इस काल को रीतिकाल नाम दिया गया|
रीतिकाल का अन्य नाम
रीतिकाल को ‘उत्तर – मध्यकाल’ के नाम से भी जाना जाता है तथा शृँगार की रचनाओं की प्रमुखता के कारण इसे “शृँगार रस” भी कहा जाता है|
रीतिकाल का समय
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इसका समय सन् 1643 ई० (संवत् 1700 वि०) से 1843 ई० (संवत् 1900 वि०) तक निश्चित किया है।
रीतिकाल की प्रमुख विशेषताएं
रीतिकाल की प्रमुख विशेषताएं (प्रवृत्तियाँ) निम्नलिखित इस प्रकार हैं—
- रीतिग्रंथों का निर्माण
- शृँगार रस की प्रमुखता
- ब्रजभाषा की प्रतिष्ठा
- सवैया और दोहा छंदों का अधिक प्रयोग
- प्रकृति का उद्दीपन रूप में चित्रण
- राज – प्रशास्ति
- भक्ति की प्रवृत्ति
- नीति की प्रवृत्ति
- नीति एवं सूक्तियों की अधिकता
- प्रबंध एवं मुक्तक रूप में काव्य रचना
- आश्रयदाताओं की प्रशंसा
- कलापक्ष की प्रधानता आदि।
रीतिकाल के प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाएँ
प्रमुख कवि | रचनाएँ |
बिहारी | बिहारी सतसई |
केशवदास | रामचंद्रिका, कविप्रिया, रसिकप्रिया, नखशिख |
भूषण | शिवराज भूषण, शिवा बावनी, छत्रसाल दशक |
मतिराम | रसराज |
पद्माकर | गंगालहरी |
रीतिकाल की प्रमुख धाराओं के नाम
रीतिकाल की मुख्यतः तीन धाराएँ हैं—
- रीतिबद्ध काव्यधारा
- रीतिमुक्त काव्यधारा
- रीतिसिद्ध काव्यधारा
रीतिबद्ध काव्यधारा के प्रमुख कवि
रीतिबद्ध काव्यधारा के प्रमुख कवि चिंतामणि जी हैं तथा केशव, भूषण, मतिराम और पद्माकर भी रीतिबद्ध काव्यधारा से संबंधित हैं|
रीतिमुक्त काव्यधारा के प्रमुख कवि
रीतिमुक्त काव्यधारा के प्रमुख कवि ‘घनानंद’ जी हैं तथा आलम बोधा ठाकुर और द्विजदेव भी रीतिमुक्त काव्यधारा से संबंधित हैं
रीतिसिद्ध काव्यधारा के प्रमुख कवि
रीतिसिद्ध काव्य धारा के प्रमुख कवि प्रमुख बिहारी लाल जी हैं।
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