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धातु रूप (Dhatu Roop)

इस लेख में हम संस्कृत के धातु रूप (Dhatu Roop) के बारे में बहुत ही सरल और सुव्यवस्थित क्रमबद्ध तरीके से लिखा गया है जो परीक्षा की दृष्टि से बहुत ही उपयोगी है। Dhatu Roop in Sanskrit.

धातु रूप (Dhatu Roop)

धातु की परिभाषा

क्रिया का मूल रूप धातु कहलाता हैं अर्थात्

क्रिया के मूल रूप को ही धातु कहते हैं

क्रिया के भेद

धातुओ से ही काल भेद से अनेक प्रकार की किया बनती हैं क्रिया के निम्न लिखित दो भेद इस प्रकार हैं-

  1. सकर्मक क्रिया
  2. अकर्मक क्रिया

1. सकर्मक क्रिया : जिस क्रिया में कर्म की आवश्यकता होती है उसे सकर्मक क्रिया कहते हैं। जैसे:- राम पुस्तक पठति (राम पुस्तक पढ़ता है)

स्पष्टीकरण: इस वाक्य में पुस्तक कर्म है पुस्तक के बिना पढ़ने की क्रिया संभव नहीं हो सकती है इसलिए पड़ता है सकर्मक क्रिया है।

2. अकर्मक क्रिया: जिस क्रिया में कर्म की आवश्यकता नहीं होती है उसे अकर्मक क्रिया कहते हैं। जैसे:- मोहन: धावति (मोहन दौड़ता है)

स्पष्टीकरण: उपर्युक्त वाक्य में धावति (दौड़ता है) अकर्मक क्रिया है। अत: इसके लिए किसी कर्म की आवश्यकता नहीं होती।

नोट— क्रिया की रचना पर पुरुष, लिंग, वचन तथा वाक्य का प्रभाव पड़ता है।

पुरुष – परिचय

पुरुष की परिभाषा

संज्ञा या सर्वनाम के जिस स्वरूप से यह पता चले कि उसका प्रयोग वक्ता, बोद्धव्य अथवा इन दोनों से भिन्न किसी अन्य के नाम के लिए किया गया है उसे पुरुष कहते हैं।

पुरुष के प्रकार

पुरुष को मुख्यतः तीन भागों में बांटा गया है—

  1. प्रथम पुरुष
  2. मध्यम पुरुष
  3. उत्तम पुरुष

(1) प्रथम पुरुष: जिस सर्वनाम या संज्ञा का प्रयोग वक्ता तथा बोद्धव्य, दोनों के अतिरिक्त किसी अन्य के लिए होता है, उसे प्रथम पुरुष कहते हैं। इसी को अन्य पुरुष के नाम से भी जाना जाता है। उदाहरण:- स: (वह), अयम् (यह), सर्व: (सब) आदि।

नोट— समस्त संज्ञा शब्द प्रथम पुरुष होते हैं। 

(2) मध्यम पुरुष: जिस सर्वनाम का प्रयोग वक्ता, बोद्धव्य के नाम के बदले करता है उसे मध्यम पुरुष कहते हैं। उदाहरण:- संस्कृत में युष्मद् इसी प्रकार के सर्वनाम का उदाहरण है।

(3) उत्तम पुरुष: वक्ता जिस सर्वनाम का प्रयोग स्वयं के बदले या अपने बदले करता है, उसे उत्तम पुरुष कहते हैं। उदाहरण:- संस्कृत में अस्मद् इसी प्रकार के सर्वनाम का उदाहरण है।

कुछ अन्य महत्वपूर्ण निष्कर्ष

  1. कर्तृवाच्य: कर्तृवाच्य के प्रयोग में क्रिया पुरुष के अनुसार होती है। जिस पुरुष तथा जिस वचन का कर्ता होता है उसी पुरुष तथा उसी वचन की क्रिया का प्रयोग होता है। जैसे – स: पठति, युवा पठय: वयं पठाम: आदि
  2. कर्मवाच्य: कर्मवाच्य के प्रयोग में क्रिया कर्म के अनुसार होती हैं अर्थात् जो लिंग जो वचन कर्म में होता हैं उसी लिंग तथा उसी वचन की क्रिया होती हैं। जैसेः- तेन पुस्तकं पथयते, युवाभ्यां पुस्तके पठयेते, अस्माभिः पुस्तकानि पठितानि आदि।
  3. भाववाच्य: भाववाच्य के प्रयोग में सदैव नपुंसकलिंग एकवचन का ही प्रयोग होता हैं। जैसे:- बालकै: खेल्यते, अस्माभि: धावितम्, अस्माभिः तत्र भावितव्यम् आदि।

लकार का परिचय

लकार का परिचय

क्रिया के काल आदि को सूचित करने के लिए लकारों का प्रयोग किया जाता हैं।

लकार के भेद अथवा प्रकार

लकार मुख्यतः दस प्रकार के होते हैं जिनका परिचय निम्नलिखित इस प्रकार हैं —

  1. लट् लकार
  2. लिट् लकार
  3. लुट् लकार
  4. लृट् लकार
  5. लेट् लकार
  6. लोट् लकार
  7. लङ् लकार
  8. लिङ् लकार
  9. लुङ् लकार
  10. लृङ् लकार

1. लट् लकार

वर्तमान काल के प्रयोग में लट् लकार की क्रिया का प्रयोग होता हैं। जैसेः स: पठति।

2. लिट् लकार

परोक्ष (जिसे हमने न देखा हो) अर्थात् भूतकाल को सूचित करने के लिए लिट् लकार के रूपों का प्रयोग होता है। जैसेः स: पपाठ।

3. लुट् लकार

आज के बाद के भविष्यत् काल में लुट् लकार के रूपों का प्रयोग किया जाता हैं। जैसेः स: पठित।

4. लृट् लकार

सामान्य भविष्यत् काल के लिए लृट् लकार के रूपों का प्रयोग किया जाता हैं। जैसेः स: पठिष्यति।

5. लेट् लकार

लेट् लकार का प्रयोग केवल वेड में होता हैं।

6. लोट् लकार

विधि, आमन्त्रण, सम्प्रश्न आदि अर्थो में लोट् लकार के रूपों का प्रयोग होता हैं।

7. लङ् लकार

आज से पहले भूतकाल में लङ् लकार के रूपों का प्रयोग किया जाता हैं। जैसेः स: अपठत्।

8. लिङ् लकार

लिङ् लकार के निम्न दो भाग हैं –

(i) विधिलिङ् लकार

(ii) आशीर्लिङ् लकार

(i) विधिलिङ् लकार: विधि, निमन्त्रण आदि के अर्थो के तथा प्रेरणा में विधिलिङ् लकार के रूपों का प्रयोग होता हैं। जैसेः सुखं भूयात्।

(ii) आशीर्लिङ् लकार: आशीर्वाद के अर्थ में आशीर्लिङ् लकार के रूपों का प्रयोग होता हैं। जैसेः सुखं भूयात्।

9. लुङ् लकार

सामान्य भूतकाल में के रूपों का प्रयोग होता हैं। जैसेः स: अपाठीत्।

10. लृङ् लकार

हेतु – हेतुमद्भूत काल में लृङ् लकार के रूपों का प्रयोग होता हैं। जैसेः श्रमं चेदकरिब्यत् उत्तीर्ण: अभविष्यत्:

महत्वपूर्ण बिंदु— सभी लकारों के नाम  अक्षर से शुरू होते है इसलिए इन्हें लकार कहा जाता है। 

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