लड़का – लड़की एक समान पर निबंध

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आज के इस लेख में लड़का – लड़की एक समान अथवा बेटा बेटी एक समान पर निबंध बहुत ही सरल और सुव्यवस्थित हिन्दी भाषा में क्रमबद्ध तरीके से लिखा गया है जो परीक्षा की दृष्टि से बहुत ही उपयोगी है।

लड़का - लड़की एक समान पर निबंध, ladka ladki ek saman Nibandh

लड़का – लड़की एक समान पर निबंध

रुपरेखा-

  1. प्रस्तावना
  2. बेटा – बेटियों की पारिवारिक स्थिति
  3. समाज का त्रुटिपूर्ण दृष्टिकोण
  4. भावनात्मक व आर्थिक स्थिति में अंतर
  5. बेटा कुल का दीपक तो बेटी दो कुल की दीपक
  6. देश की बेटियाँ बेटों से काम नहीं
  7. बेटा – बेटी एक समान की शुरुआत घर से
  8. हमारा दायित्व अथवा कर्तव्य
  9. उपसंहार

लड़का – लड़की एक समान
दोनों से ही घर की शान

1.प्रस्तावना

ईश्वर ने मनुष्य को दो रूपों में बनाया है— स्त्री और पुरुष। उसने पुरुषो को कठोर बनाया है, ताकि वह कठिन कार्य कर सके, परन्तु ईश्वर ने स्त्री को कोमल बनाया है, ताकि वह प्रेम करुणा आदि कोमल भावनाओं का विकास करे। ईश्वर की दृष्टि में दोनों ही प्रकृति का आवश्यक अंग है। लड़के – लड़की का भेद समाज की देन है। प्राय: हमारे समाज में बेटे को महत्व दिया जाता है। और बेटी को बोझ समाझा जाता है।

हमारे समाज में लड़का – लड़की में भेदभाव किया जाता है लड़के के जन्म पर खुशियाँ मनाई जाती है। और लड़की के जन्म पर मातम छा जाता है। यह व्यवहार किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है। हमें लड़का – लड़की को एक समान समझना होगा। यदि आज के समय में देखा जाए तो हम देखते हैं कि लड़कियां किसी भी दृष्टि से लड़कों से काम नहीं है। वे पढ़ाई- लिखाई और नौकरी की दृष्टि से लड़कों से श्रेष्ठ साबित हो रही हैं। आज हर क्षेत्र में लड़कियां लड़कों को पीछे छोड़ते हुए आगे निकल रही हैं।

हमारे देश की कुछ महिलाएं जैसे— कल्पना चावला, बछेन्द्री पाल, इंदिरा गांधी, मदर टेरेसा, किरण वेदी, प्रतिभा पाटिल, सरोजनी नायडू आदि। महिलाओं ने देश में आगे बढ़कर सहयोग किया है। इन सभी महिलाओं के जीवन में हम सभी को प्रेरणा लेनी चाहिए कि बेटियां बेटो से काम नही होती है। अतः हमें दोनों को एक ही समान समझना चाहिए।

यदि बेटा भाग्य से मिलता है
तो बेटियाँ सौभाग्य से मिलती हैं

2. लड़का – लड़की की पारिवारिक स्थिति

जहाँ हमारे समाज में पुत्र के जन्म पर खुशियाँ मनाई जाती हैं और वही पुत्री के जन्म पर मौन रहकर उदासी प्रकट की जाती है। पिता जी के मन में एक चिंता सवार होती है, तो माता को ऐसा लगता है मानो पुत्री को जन्म देकर उसने कोई अपराध करा हो। ऐसा इसलिए है कि बेटी के विवाह पर दहेज देना पड़ता है और उसे दूसरे घर भेजने में उसके भविष्य की सुरक्षा के प्रति प्रश्नचिन्ह लगा रहता है।

परिवार में उसे बचपन से ही पुत्र के बराबर स्नेह – भाव नहीं मिलता। बात – बात उसे सैकड़ों हिदायते और नसीहते दी जाती हैं कि तुम्हें पराये घर जाना है। उसके व्यक्तित्व को विकसित होने से पहले ही कुंठित कर दिया जाता है। इस भेदभाव की समस्या को एक बेटी उम्र भर झेलती है।

3. समाज का त्रुटिपूर्ण दृष्टिकोण

समाज बेटियों से एक बँधे – बँधाए व्यवहार की अपेक्षा करता है वह चाहता है कि बेटी कोई प्रश्न ना करें। वह आज्ञाकारी हो, सेवाभावी हो, उन्हें चाहे जैसा भी व्यवहार मिले, वह मृदुभाषी बनी रहे अन्यथा उनकी कदु आलोचना की जाती है। बेटों की उददंडता को चंचलता कह क्षमा ही नहीं किया बल्कि उन्हें साथ ही साथ प्रोत्साहित भी किया जाता है। इस पक्षपातपूर्ण व्यवहार से बेटियाँ आहट रहती हैं। ससुराल में भी उनकी कड़ी अग्नि परीक्षा होती है। इस सामाजिक मापदंडों पर खरी उतरने की उलझन उनकी मानसिक शांति को खा जाती है।

4. भावनात्मक व आर्थिक स्थिति में अंतर

बेटियाँ अर्थात् लड़कियाँ भावनात्मक रूप से प्यार और सम्मान पाने के लिए लालायित रहती हैं। शारीरिक व मानसिक रूप से वे सदा स्वयं को असुरक्षित ही समझती हैं। उन्हें बहुत कम स्वतंत्रता दी जाती है, अतः वे प्राय: पुरुषों पर ही निर्भर रहती है। स्त्री की इसी पराधीनता पर दुखी होकर गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा था—

क्यों सिरजी नारी जग माही।
पराधीन सपनेहुँ सुख नाही।।

5. बेटा कुल का दीपक तो बेटी दो कुल की दीपक

बेटा तो एक ही कुल का दीपक कहलाता है लेकिन बेटी शादी के बाद में वह अपने मायके के साथ – साथ अपने ससुराल का भी नाम रोशन करती हैं। इसलिए दो कुल का नाम रोशन करती है बेटियाँ।

6. देश की बेटियाँ बेटों से काम नहीं

आज हमारे देश में लड़कियाँ बहुत ऊँचाइयों पर पहुँच चुकी है। अब लड़कियों के पैर जमीन पर ही नहीं, बल्कि अंतरिक्ष में भी देखने को मिले हैं कल्पना चावला, सुनीता विलियम को ही आप देख लीजिए। इन्होंने अंतरिक्ष में कदम रखकर अपने नाम के साथ ही साथ अपने देश का भी नाम रोशन किया है। आज हमारे देश की बेटियाँ देश के सभी कार्य – क्षेत्रो में अपनी भागीदारी बहुत अच्छे से निभा रहे हैं। हर सामाजिक क्षेत्र में बेटियाँ बढ़ – चढ़कर हिस्सा ले रही है। चिकित्सा क्षेत्र से लेकर पुलिस, सेना, शिक्षक आदि सभी क्षेत्रों में लड़कियाँ आगे बढ़ रही है।

7. बेटा – बेटी एक समान की शुरुआत घर से

बेटा – बेटी को एक समान दर्जा देने के लिए सबसे पहले हम को इसकी शुरुआत अपने घर से ही करनी होगी। उसके बाद ही हम समाज के लोगों को इस बात के लिए जागरूक कर पाएंगे। अपने घरों में ही अपनी छोटे भाई – बहन व बेटा – बेटी को इस बात को समझना होगा कि लड़का – लड़की में को अंतर नहीं होता है। पहले हमें अपने घर में ही भाई – बहन और बेटा – बेटी के बीच भेदभाव को खत्म करना होगा। तभी हम सभी लोगों को अच्छे से जागरूक कर पाएंगे।

8. हमारा दायित्व अथवा कर्तव्य

बेटे – बेटियों को एक समान समझने की बात एक आदर्श मात्र है, किंतु इसे यथार्थ बनाने के लिए हमें प्रयास करना होगा। पहले तो बेटियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उनके व्यक्ति को विकसित होने का अवसर देना होगा। बार-बार उन्हें कोसने की आदत को तुरंत बदलना चाहिए, ताकि यह हीन भावना उसके मन में न बैठे कि वह किसी भी प्रकार से लड़कों से कम है। उसके लिए दहेज न जुटाकर उसे उसके मनपसंद करियर को चुनने में सहायता करना अधिक श्रेस्कर होगा। साथ ही बेटो अर्थात् लड़कों को भी समझना होगा कि वह अपना मूल्यांकन गुणो के आधार पर करें और लड़कियों को मात्र एक सजावट की सामग्री ना समझे।

9. उपसंहार

यद्यपि वैधानिक रूप से लड़के – लड़कियों को समान अधिकार दिए गए हैं। परंतु सामाजिक रूप से अभी भी उनमें भेदभाव किया जाता है। इसके लिए इस अर्थप्रधान युग में यह आवश्यक है कि युक्तियाँ आर्थिक रूप से स्वावलंबी बने। वे किसी पर आश्रित न रहे और पारस्परिक सहयोग व सद्भावना द्वारा अपनी स्थिति को सुदृढ़ बनाएँ। लड़कियाँ आज लड़कों के बराबर ही हैं, बस हमको उनके हौसले की उड़ान को थोड़ी हवा देनी होगी फिर आप देखिए की लड़कियाँ कैसे आसमान को छूती हैं।

बेटी त्याग की मूरत है
तो बेटा संघर्ष की सूरत है।
कैसे कहूँ महान किसी एक को
घर के आँगन को दोनों की जरूरत है…।।

हमें उम्मीद है कि “लड़का – लड़की एक समान अथवा बेटा – बेटी एक समान पर निबंध” पर आधारित यह लेख आपको पसंद आया होगा। स्टडी नोट्स बुक विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए व्यापक नोट्स प्रदान करती है।

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