स्वदेश प्रेम पर निबंध | Swadesh Prem Par Nibandh

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इस लेख में स्वदेश प्रेम पर निबंध (Swadesh Prem Par Nibandh) बहुत ही सरल और सुव्यवस्थित हिन्दी भाषा में क्रमबद्ध तरीके से लिखा गया है जो परीक्षा की दृष्टि से बहुत ही उपयोगी है।

स्वदेश प्रेम पर निबंध, Swadesh Prem Par Nibandh

स्वदेश प्रेम पर निबंध (Swadesh Prem Par Nibandh)

रूपरेखा —

  1. प्रस्तावना
  2. स्वदेशप्रेम की स्वाभाविकता
  3. स्वदेश प्रेम का महत्व
  4. स्वदेश के प्रति कर्तव्यनिष्ठता
  5. स्वदेश प्रेमियों के दृष्टान्त
  6. स्वदेश प्रेम के विविध क्षेत्र व देशसेवा
    • राजनीति द्वारा
    • समाज सेवा द्वारा
    • धन द्वारा
    • कला द्वारा
  7. उपसंहार

“भरा नहीं जो भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं।
वह हृदय नहीं है, पत्थर हैं, जिसमें स्वदेश का प्यार नही”

1. प्रस्तावना:

स्वदेश प्रेम मन की एक पवित्र धारा है जिसमें गोता लगाकर हम अपने जीवन कर्म को सफल बनाते हैं।

” देशप्रेम वह पुण्य क्षेत्र है अमल असीम त्याग से विलसित।
आत्मा के विकास से जिसमें मानवता होती है विकसित ।।”

प्रत्येक मनुष्य जिस देश या समाज में जन्म लेता है। यदि उसकी उन्नति में समुचित सहयोग नहीं देता तो उसका जीवन व्यर्थ है। स्वदेश प्रेम की भावना ही मनुष्य को बलिदान और त्याग की प्रेरणा देती है। मनुष्य जिम भूमि पर जन्म लेता है, जिसका अन्न खाकर जल पीकर अपना विकास करता है, उसके प्रति प्रेम की भावना का उसके जीवन में सर्वोच्च स्थान होता है। इसी भावना से प्रभावित होकर कहा गया है

‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ।’

2. स्वदेश प्रेम की स्वाभाविकता:

स्वदेश प्रेम की भावना मनुष्य में स्वाभाविक रूप से विद्यमान रहती है। अपनी जन्मभूमि के लिए प्रत्येक मनुष्य के हृदय में मोह तथा लगाव अवश्य होता है। अपनी जन्मभूमि के प्रति मनुष्य ही नहीं, पशु-पक्षियों में भी प्रेम होता है। वे भी अपनी जन्मभूमि के लिए मर- मिटने की भावना रखते है

“आग लगी इस वृक्ष में जलते इसके पात,
तुम क्यों जलते पक्षियों, जब पंख तुम्हारे पास?
फल खाये इस वृक्ष के बीट लथडे पात,
यही हमारा धर्म है जले इसी के साथ ।”

देशप्रेम की भावना सर्वत्र और सब युगों में विद्यमान रहती है। मनुष्य जहाँ कहीं भी रहा है। अनेक कठिनाइयों के होते हुए भी उस स्थान के प्रति उसका मोह व लगाव बना रहता है। विश्व में बहुत से देश व प्रदेश है, जहाँ जीवन अत्यन्त कठिन है, परन्तु वहाँ के निवासियों ने स्वंय को उन परिस्थितियों के अनुरूप बना लिया और उस स्थान को नहीं छोड़ा

“विषुवत् रेखा का वासी जो जीता है नित हाँफ-हाँफ कर,
रखता है अनुराग अलौकिक फिर भी अपनी मातृभूमि पर ।
हिमवासी जो हिम में तम में, जी लेता है काँप – काँप कर,
वह भी अपनी मातृभूमि पर कर देता है प्राण न्यौछावर।।

मनुष्य, पशु-पक्षी आदि जीवधारियों की तो बात ही क्या, फूल – पौधों में भी अपने देश के लिए मर मिटने की चाह होती है। माखनलाल चतुवेर्दी ने पुष्प की इसी अभिलाषा का कितना सुन्दर वर्णन किया है

“मुझे तोड़ लेना बनमाली उस पथ पर तुम देना फेंक, मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जाएँ वीर अनेक।”

इम प्रकार सचमुच स्वदेश स्वर्ग से भी अधिक अलौकिक है। स्वदेश के चरणों पर एक नहीं कोटि-कोटि स्वर्ग न्यौछावर किये जा सकते है।

3.स्वदेश प्रेम का महत्व:

मानव जीवन में स्वदेश- का विशेष महत्व है। स्वदेश प्रेम विश्व के सभी आकर्षणों से बढ़कर है। यह एक ऐसा पवित्र एवं सात्विक भाव है, जो मनुष्य को निरन्तर त्याग की प्रेरणा देता है। स्वदेश प्रेम का सम्बन्ध मनुष्य की आत्मा से है। प्रत्येक मानव की हार्दिक इच्छा रहती है कि उसका जन्म जिस भूमि पर हुआ वही पर वह मृत्यु भी प्राप्त करें। विदेशों में रहते हुए भी व्यक्ति अन्त में अपनी मातृभूमि के दर्शन करना चाहता है।

वास्तव मे देशप्रेम की भावना मनुष्य की सर्वोच्च भावना है । स्वदेशप्रेम के सामने व्यक्तिगत लाभ का कोई महत्व नहीं है। जिस मनुष्य के मन में अपने देश के प्रति अपार प्यार और लगाव नहीं है, उस मानव के हृदय को कठोर पत्थर कहना हीं उचित होगा। और कहा भी गया है

” भरा नही जो भावों से, बहती जिसमें रामधार नहीं। वह हृदय नहीं है पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नही |||

जो मनुष्य अपने देश के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर देता है वह अमर हो जाता है, परन्तु जो मनुष्य देशप्रेम तथा मातृभूमि के महत्व को नही समझता, वह तो जीते हुए भी मृतक के समान होता है

जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है। वह नर नहीं, नर – पशु निरा है और मृतक समान हैं।।

वास्तव में कहा जाए तो मानव समुदाय के वश की बात नहीं है कि वह स्वदेश के महत्व तथा गौरव के गीत गा सके। इसीलिए कहा गया है

जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीरामी।

सचमुच स्वदेश स्वर्ग से भी अधिक अलौकिक है। स्वदेश के चरणों पर एक नहीं कोटि-कोटि स्वर्ग न्यौछावर किये जा सकते हैं।

4.स्वदेश के प्रति कर्तव्यनिष्ठता :

स्वदेश प्रेम अपनी संस्कृति और अपने धर्म की अराधना है। स्वदेश प्रेम में यदि कांटों की शय्या पर भी सोना पड़े तो, हँसते हुए सोना चाहिए। स्वदेश प्रेम में फाँसी पर भी चढ़‌ना पड़े, तो मुस्कुराते हुए चढ़ जाना चाहिए जो मनुष्य स्वदेश प्रेम के मार्ग पर चलता है वह सरलता से ही उस मुक्ति को प्राप्त कर लेता है, जिसके लिए योगीजन वर्षों तक वनों में तपस्या करते है।

5.स्वदेश प्रेमियो के दृष्टान्त:

भारत में ऐसे अनेक वीर पुरुष हुए हैं, जिन्होंने स्वदेश के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया। महाराणा प्रताप का नाम आज भी आकाश में सूर्य की भाँति उदीपमान है। कितनी विपत्तियाँ महाराणा प्रताप ने झेलीं। राजवंश में उत्पन्न होने पर भी उनके सुकुमार बच्चों ने घास की रोटियाँ खायीं और पत्थर की शिलाओं को अपनी शय्या बनाया किन्तु उस देशप्रेमी ने अपने देश की आन को न जाने दिया। अखण्ड भारत के रचयिता सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य, प्रियदर्शी सम्राट अशोक मौर्य तथा वीर शिवाजी का नाम आज भी इतिहास के पृष्ठों पर स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। दुर्गादास, लक्ष्मीबाई, गुरु‌गोविन्द सिंह आदि वीरों ने हँसते – हंसते स्वदेश की रक्षा के लिए अपने प्राण अर्पित कर दिये। वर्तमान युग मे महात्मा गाँधी, भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, सुखदेव, राजगुरु, चन्द्रशेखर आदि के नाम उल्लेखनीय है।

6.स्वदेश प्रेम के विविध क्षेत्र व देशसेवा

हमारे जिस कार्य से भी देश की उन्नति हो, वही कार्य स्वदेश प्रेम की सीमा मे आ जाता है। देश की वास्तविक उन्नति के लिए हमें सब प्रकार अपने देश की सेवा करनी चाहिए। देशसेवा के विभिन्न क्षेत्र हो सकते हैं

(ⅰ) राजनीति द्वारा:

भारत प्रजातन्त्रात्मक देश है, जिसके वास्तविक शक्ति जनता के हाथ में रहती है। अपने मताधिकार का उचित प्रयोग करके, जन- प्रतिनिधि के रूप में सत्य, निष्ठा तथा ईमानदारी से कार्य करके और देश को जाति, सम्प्रदाय तथा प्रान्तीयता की राजनीति से मुक्त करके, हम उसके विकास मे सहयोग दे सकते है।

(ii) समाज – सेवा द्वारा:

समाज में फैली विभिन्न प्रकार की कुरीतियों को दूर करके भी हमे अपने देश को सुधारना चाहिए। अशिक्षा, मद्यपान, बाल- विवाह, छूआछूत, व्यभिचार आदि अनेक प्रकार की बुराइयों को दूर करके हम अपने देश की अमूल्य सेवा कर सकते है और अपनी मातृ‌भूमि के प्रति देशप्रेम की भावना का परिचय दे सकते है।

(iii) धन द्वारा:

जो मनुष्य आर्थिक दृष्टि से अत्यधिक सम्पन्न है, उन्हें देश की विकास योजनाओं में सहयोग देना चाहिए तथा उन्हें देश के रक्षा कोष में उत्साहपूर्वक अधिकाधिक धन देना चाहिए, जिससे देश की प्रतिरक्षा – शक्ति सुदृढ़ हो सके।

(iv) कला द्वारा:

प्रत्येक कलाकार सक्रिय रूप से देश की सेवा कर सकता है। उसकी कृतियों में अद्‌भुत शक्ति होती है। कवि तथा लेखक अपनी रचनामों द्वारा मनुष्य में उच्च – विचारों तथा देश के लिए त्याग की भावना जगा सकते है। कलाकार की सुन्दर कृतियों को जब विदेशी लोग खरीदते है तो हमारे – देश को विदेशी मुद्रा का लाभ होता है यह भी एक प्रकार से देशसेवा ही है।

इस प्रकार केवल राष्ट्रहित में राजनीति करने वाला व्यक्ति ही देशप्रेमी नहीं हैं। स्वस्थ व्यक्ति सेना में भर्ती होकर, किसान, मजदूर अध्यापक अपना कार्य मेहनत, निष्ठा तथा लगन से करके और छात्र अनुशासन में रहकर – स्वदेश प्रेम का परिचय दे सकते है।

उपसंहार:

आज हमारा कर्तव्य है कि हम सच्चे स्वदेश प्रेम का आदर्श स्थापित करें और अत्यन्त कठिनाइयों से प्राप्त स्वतन्त्रता की रक्षा अपने प्राणों से भी अधिक करे हमारा एक ही उद्देश्य होना चाहिए

जिएँ तो देश के लिए मरें तो देश के लिए।

आज जबकि देश अनेक राष्ट्रीय एवं अन्तराष्ट्रीय समस्याओं का सामना कर रहा है, ऐसे समय में हमारा कतव्य है कि हम अपने व्यक्तिगत सुखों का त्याग करके देश के सम्मान रक्षा तथा विकास के लिए तन-मन-धन को न्योछावर कर दे।

कविवर जयशंकर प्रसाद जी के ये शब्द ही हमारा आदर्श होना चाहिए

“जिएँ तो सदा इसी के लिए, यही अभिमान रहे यह हर्ष।
न्यौछावर कर दे हम सर्वस्व, हमारा प्यारा भारतवर्ष ।।”


यदि परीक्षा में नीचे दिए सम्भावित शीर्षको में से किसी पर भी निबंध लिखना हो तब भी ऊपर लिखा हुआ निबंध लिख सकते हैं।

अन्य सम्भावित शीर्षक: स्वदेश प्रेम पर निबंध (Swadesh Prem Par Nibandh)

  • राष्ट्र-प्रेम का महत्व
  • राष्ट्र – प्रेम
  • देशप्रेम
  • जननी जन्मभूमि प्रिय अपनी
  • जननी और जन्मभूमि
  • देशभक्ति की महत्ता ।

यह भी देखें,

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